प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 77वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा कि 2014 में भारत दुनिया की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी लेकिन अब हम पांचवें स्थान पर है। उन्होंने अपने पहले जारी वक्तव्य को दोहराते हुए कहा कि साल 2028 तक भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा। साथ ही उन्होंने कहा कि; “यह मोदी की गारंटी है”
अब सवाल यह उठता है कि उन्होंने ऐसी गारंटी इतने दृढ़ निश्चय और विश्वास से कैसे दी? राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो भी इस तरह की गारंटी दोधारी तलवार की तरह होती है। खासकर इसलिए भी कि आज के ग्लोबल परिवेश में जहाँ दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएँ एक-दूसरे से किसी न किसी तरह से जुड़ी हुई हैं और विश्व के एक भौगोलिक इलाक़े में अर्थव्यवस्था पर बुरा असर दूसरे किसी कोने में अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर किन परिस्थितियों को आगे रखकर प्रधानमंत्री मोदी इस तरह की गारंटी देने में नहीं हिचक रहे?
वैसे भारत 2028 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा, यह बात केवल प्रधानमंत्री मोदी ही नहीं कहते रहे हैं। दरअसल यह बात प्रमुख वैश्विक रेटिंग एजेंसियों और आर्थिक संस्थानों की कई हालिया रिपोर्ट्स ने भारत की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए पिछले कुछ वर्षों में किए गए सुधारों और उनके परिणाम को देखकर कहा है।
भारतीय स्टेट बैंक की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि Q1FY24 के लिए भारत की जीडीपी का विकास दर 8% से अधिक होने की संभावना है और वर्ष 2028 तक भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का स्थान मिलने की संभावना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि FY24 के लिए भारत की वार्षिक जीडीपी विकास दर के 6.5% से अधिक रहने की संभावना है।
SBI की इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की आर्थिक यात्रा 2014 से परिवर्तनकारी रही है। आर्थिक आकार के संदर्भ में दसवें स्थान पर होने और वैश्विक जीडीपी में 2.6% योगदान देने से, भारत ने एक नया और बड़ा संरचनात्मक बदलाव किया है। मार्च 2023 तक वास्तविक जीडीपी रिकॉर्ड के आधार पर, भारत 2027 (FY28) तक सात स्थान ऊपर चढ़ कर तीसरा स्थान हासिल करने के लिए तैयार है।
हाल ही में एसएंडपी ग्लोबल ने एक रिपोर्ट पब्लिश की जिसमें उन्होंने यह अनुमान लगाया है कि भारत 2031 तक 6.7% की औसत वार्षिक जीडीपी वृद्धि दर प्राप्त करेगा। इसी रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया कि मैनुफैक्चरिंग और सर्विसेज एक्सपोर्ट, बढ़ती उपभोक्ता मांग और दीर्घकालिक मौद्रिक सुधारों के आधार पर होगा। एसएंडपी ने मार्च 2024 में समाप्त होने वाले मौजूदा वित्त वर्ष के लिए भारत की विकास दर को 6% के अपने पूर्वानुमान पर बरकरार रखा है। यह देखते हुए कि इस दर पर भी, भारत G-20 में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा।
आईएमएफ 6.1% दर के साथ और आरबीआई 6.5% दर के साथ चालू वित्त वर्ष के लिए भारत की वृद्धि होने का अनुमान लगाया है। वैश्विक वित्तीय फर्म मॉर्गन स्टैनली ने भी पिछले साल अनुमान लगाया है कि साल 2027 तक भारत अमेरिका और चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। वहीं एसएंडपी ग्लोबल का अनुमान है कि 2031 तक भारत की अर्थव्यवस्था 6.7 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगी जिसके परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आय बढ़कर 4,500 डॉलर हो जाएगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्पादन में, आपूर्ति श्रृंखला विविधीकरण की दिशा में वैश्विक रुझान में तेजी से नई संभावनाएं उभरने की उम्मीद है क्योंकि सरकार ने उत्पादकों को प्रोत्साहन और बुनियादी ढांचे के फैलाव को लेकर बड़े सुधार किए हैं। कर सुधारों से दक्षता लाभ, डिजिटल और भौतिक बुनियादी ढांचे को राष्ट्रीय सहायता और सरकारी सब्सिडी हस्तांतरण से रिसाव में कमी से अर्थव्यवस्था को लाभ होने की उम्मीद है।
प्रमुख रेटिंग एजेंसियां और विश्लेषक भारत को 2028 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान क्यों लगा रहे हैं, इसके प्रमुख कारण इसमें शामिल हैं:—
मजबूत घरेलू मांग
भारत में एक बड़ा और अप्रत्याशित रूप से बढ़ता मध्यम वर्ग है जो उपभोक्ता वस्तुओं, आवास, ऑटोमोबाइल आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में मजबूत घरेलू खपत को बनाए रखेगी।
युवा जनसांख्यिकीय लाभांश
वर्तमान में देखा जाए तो भारत में 35 साल से कम उम्र की आबादी लगभग 65% है। भारत की युवा जनसांख्यिकी उच्च मौद्रिक विकास दर को बनाए रखने में मदद करेगी क्योंकि यह आबादी अगले दशक में कार्यबल में शामिल हो जाएगी।
बढ़ती आय
मजबूत जीडीपी वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति आय बढ़ने से घरेलू मांग को बढ़ावा मिलेगा और मध्यम वर्ग के उपभोक्ता आधार का विस्तार होगा।
अर्बेनाइजेशन/शहरीकरण
तेजी से हो रहा शहरीकरण प्रचुर रोजगार के अवसर पैदा कर रहा है और साथ ही भारत को विभिन्न उद्योगों और सेवाओं के लिए एक आकर्षक बाजार में बदल रहा है।
डिजिटल रिवोल्यूशन
भारत में डिजिटल प्रौद्योगिकियों, स्टार्टअप और डिजिटल भुगतान में बड़े पैमाने पर वृद्धि देखी जा रही है, जो उत्पादकता को बढ़ा रही है और विभिन्न क्षेत्रों का आधुनिकीकरण कर रही है।
हर क्षेत्र में हो रहे रिफॉर्म्स
जीएसटी, बैंकरप्सी कोड, बैंकिंग सुधार और उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन जैसे सुधार व्यापार करने में आसानी और प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार कर रहे हैं। पिछले लगभग सात वर्षों में ये सुधार अधिक निवेश आकर्षित करने में सफल रहे हैं जिससे मैन्युफ़ैक्चरिंग में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है।
लचीलापन
सुधारों के परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था ने हाल के वैश्विक संकटों के दौरान अभूतपूर्व लचीलापन दिखाया है। यहां तक कि देश अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अपेक्षाकृत अछूता है, जिससे इसे तेज गति से विस्तार जारी रखने की अनुमति मिलती है।
सही नीतियों, निवेश और कार्यान्वयन के साथ भारत के पास 2031 तक वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने का अवसर है लेकिन बहुत कुछ आर्थिक सुधारों में तेजी लाने, बुनियादी ढांचे में सुधार करने और अपने डेमोग्राफी का लाभ उठाने की भारत की क्षमता पर निर्भर करता है।
मैनुफैक्चरिंग में बाधाओं पर काबू पाना, सेवाओं के निर्यात की क्षमता का दोहन, आय वृद्धि के माध्यम से उपभोक्ता मांग को बढ़ावा देना और संरचनात्मक सुधारों को लागू करना भारत के लिए अपनी अनुमानित उच्च विकास दर को हासिल करने और बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण होगा।
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के आकार का मानक उस देश की जीडीपी होती है और बीते नौ वर्षों में भारत की जीडीपी में तेज उछाल दर्ज किया गया है। यदि सही तकनीक और सूझ–बूझ से भारत की अर्थव्यवस्था प्रति वर्ष 6-7% की अपनी आधुनिक औसत दर से बढ़ती रही, तो यह जर्मनी और जापान को पीछे छोड़ते हुए 2028 तक तीसरा सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था बन जाएगी।
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