चीन, भारत की जमीन पर अवैध अतिक्रमण करने के प्रयासों के बाद अब संचार तंत्र पर भी रोक लगाने का पूरा प्रयास कर रहा है। चीन ने राजधानी बीजिंग में मौजूद भारतीय पत्रकारों के वीजा रिन्यू करने से मना कर दिया है और कुछ वीजा को फ्रीज कर दिया है। इस पूरे विवाद की शुरुआत चीन के एक कदम से हुई है।
मामला यहां तक पहुँच गया है कि दोनों देशों की राजधानियों में एक-दूसरे देश के केवल 1-1 पत्रकार ही बचे हुए हैं और उनके भी आगे रुकने की संभावना पर असमंजस की स्थिति बनी हुई है, यह जानकरी सामने आई है कि भारत में मौजूद आखिरी चीनी पत्रकार का भी वीजा समाप्त हो चुका है। यह पूरा विवाद अप्रैल माह से चालू हुआ है और लगातार जारी है, दोनों देश मामले पर अपने तर्क दे रहे हैं।
भारत एवं चीन के बीच क्या है पूरा मामला?
भारत और चीन के बीच पत्रकारों के वीजा को लेकर पूरा विवाद 5 अप्रैल, 2023 से चालू हुआ जब चीन के विदेश मंत्रालय ने भारत के दो पत्रकारों के वीजा रोक दिए। जानकारी के अनुसार, इनमें से एक पत्रकार प्रसार भारती जबकि एक पत्रकार अंग्रेजी समाचार पत्र द हिन्दू से जुड़ा हुआ था। प्रसार भारती से जुड़े हुए पत्रकार का चीन में अपना कार्यकाल पूरा हो गया था और उसके स्थान पर दूसरा पत्रकार चीन के वीजा का इन्तजार कर रहा था, उसका वीजा नहीं जारी किया गया।
वहीं द हिन्दू के पत्रकार, जो कि तब भारत में थे, उनका वीजा भी फ्रीज कर दिया गया। चीन द्वारा वीजा ना दिए जाने से प्रभावित होने वाले पत्रकारों का नाम अंशुल मिश्रा और अनंत कृष्णन है। अंशुल प्रसार भारती और कृष्णन द हिन्दू से जुड़े हुए हैं।
इसके अतिरिक्त चीन की राजधानी बीजिंग में बचे हुए दो पत्रकारों, जिनमें से एक अंग्रेजी समाचार पत्र हिन्दुस्तान टाइम्स और दूसरा समाचार एजेंसी पीटीआई से जुड़ा हुआ है, उन्हें भी चीन के विदेश मंत्रालय ने यह सूचित किया गया था कि इस बात पर विचार किया जा रहा है कि उनको दी जा रही पत्रकारिता से जुड़ी सुविधाएं भी ले ली जाएं।
चीन के विदेश मंत्रालय ने इस पूरी घटना पर कहा कि उनके पत्रकारों के साथ नई दिल्ली में सौतेला व्यवहार होता है ऐसे में उनका यह कदम जायज है। चीन की तरफ से यह कदम उसके अरुणाचल प्रदेश के 11 स्थानों के नाम बदलने के 3 दिनों के भीतर उठाया गया था। इससे पहले अरुणाचल में ही भारत और चीन के सैनिकों के बीच टकराव की खबरें आई थीं।
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भारत के पत्रकारों को क्यों वीजा नहीं दे रहा चीन?
चीन, इसे एक प्रतिक्रिया के तहत किए गए कार्य का नाम दे रहा है। चीन का कहना है कि उसके पत्रकारों को भारत में वह सुविधाएं नहीं मिलती जो कि भारतीय पत्रकारों को चीन में मिलती हैं। दरअसल, वर्तमान में भारत में उपस्थित चीनी पत्रकारों को 3 माह के लिए वीजा दिया जाता है, चीन चाहता है कि इस अवधि को बढ़ा कर कम से कम 1 वर्ष किया जाए।
भारत ने चीनी पत्रकारों को दिए जाने वाले वीजा की समयावधि को वर्ष 2017 में घटा दिया था। इससे पहले, वर्ष 2016 में चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के तीन पत्रकारों को भारत से निकाल दिया गया था। सुरक्षा एजेंसियों ने यह बताया था कि यह पत्रकार प्रतिबंधित इलाकों में जा रहे थे और पहचान बदल कर तिब्बती शरणार्थियों से पहचान बढ़ा रहे थे।
चीन के विदेश मंत्रालय का दावा है कि वर्ष 2021 में भी चीन के CGTN मीडिया के एक पत्रकार को उसकी समयावधि पूरी होने से पहले 10 दिनों के भीतर भारत छोड़ने का आदेश दिया गया था। इसके अतिरिक्त चीन के विदेश मंत्रालय का दावा है कि कुछ दिनों पहले भी शिन्हुआ के एक पत्रकार को 31 मार्च 2023 तक देश छोड़ने का आदेश दिया गया था क्योंकि उसे भारत में रहते हुए 6 वर्ष हो गए थे।
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने 31 मई को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारतीय पत्रकारों को चीन से बाहर भेजने की बात स्वीकारी है और कहा है कि यह भारत में चीनी के पत्रकारों के साथ पक्षपाती रवैये के खिलाफ उठाया गया कदम है। निंग ने यह भी कहा कि चीन में कई भारतीय पत्रकार तो 10 वर्षों से रह रहे हैं और चीन उन्हें अपने परिवार जैसा मानता है।
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क्यों भारत नहीं देता चीनी पत्रकारों को लम्बी समयावधि के लिए वीजा?
चीन में सूचनातंत्र पूरी तरह से कम्युनिस्ट सरकार और पार्टी के नियन्त्रण में है। चीन में चलने वाले सभी समाचार पत्र और न्यूज चैनल भी पार्टी या सरकार से जुड़े होते हैं। इनकी तरफ से आने वाले पत्रकार भी परोक्ष रूप से सरकार से ही जुड़े हुए होते हैं और कई बार चीन के रणनीतिक हितों की पूर्ति के लिए अपने कार्य के अतिरिक्त भी कई गतिविधियों में संलिप्त पाए जाते हैं जैसा कि वर्ष 2016 के तिब्बती शरणार्थियों के मामले में हुआ था।
भारत के अतिरिक्त अन्य देशों में भी चीनी पत्रकारों पर जासूसी के आरोप लगते आए हैं। वर्ष 2020 में अमेरिका ने चीन के पत्रकारों पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे। अमेरिका ने चीनी मीडिया से अपने कर्मचारी घटाने को कहा था। अमेरिका ने यह कदम चीन द्वारा अमेरिकी पत्रकारों पर एक्शन लिए जाने के बाद उठाया था।
चीन के पत्रकारों को लम्बे समय के लिए इन्हीं कारणों से वीजा नहीं देता है। चीन के कई राजनयिक भी कई बार दूसरे देशों में अनैतिक गतिविधियों में संलिप्त पाए जा चुके हैं। पत्रकारों को ढाल बनाकर चीन भारत में अपने रणनीतिक उद्देश्य पूरे कर सकता है इसीलिए गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय इस विषय को लेकर अत्यंत गंभीर हैं। भारत और चीन के बीच सम्बन्ध वर्ष 2020 के बाद से और बिगड़े हैं जब लद्दाख के गलवान इलाके में हुई एक झड़प में 20 भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे।
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क्या है वर्तमान स्थिति?
चीन का कहना है कि वर्तमान में उसका मात्र 1 पत्रकार भारत में उपस्थित है और उसके वीजा के नवीनीकरण के लिए भी भारत देरी कर रहा है। यदि भारत समय रहते पत्रकारों के वीजा के मामले को हल नहीं करता तो भारत में उसके पत्रकारों की उपस्थिति शून्य हो जाएगी। वहीं, भारत के पत्रकारों की चीन में उपस्थिति की बात की जाए तो यह भी शून्य होने के कगार पर है।
इस मामले पर शुक्रवार(2 जून,2023) को भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है कि भारत के अंदर चीन समेत अन्य देशों के पत्रकार बिना किसी रुकावट के अपना काम करते आए हैं। हमें आशा है कि चीन भी भारतीय पत्रकारों की सहायता करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय पत्रकार चीन में सफ़र के दौरान समस्याओं का सामना करते हैं। भारत, विदेशी पत्रकारों की सहायता करता आया है लेकिन साथ ही वीजा से संबंधित नियमों और पत्रकारिता से जुड़े व्यहार में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए।
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