वर्ष, 2020 में भारत ने अपने हाथ जब क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) से वापस खींच लिए थे तब देश को आलोचना का सामना करना पड़ा था। आर्थिक सलाहकारों ने इसे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए गलत कदम बताया था। हालाँकि इसका सही प्रकार से विश्लेषण किया जाता तो निष्कर्ष सामने आता कि भारत का यह निर्णय देश को आत्मनिर्भर और घरेलू बाजार को सुदृढ़ करने के लिए था। भारत ने RCEP से बाहर निकलकर अपने द्विपक्षीय व्यापारिक संबंधों को बढ़ाने और भारतीय उद्योगों को बाहरी बाजारों में पहुँचाने की दिशा में जबरदस्त काम किया है।
भारत ने अपने आपको वैश्विक फ्रंट पर रखकर यूएई और ऑस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौता साइन करने में सफलता हासिल की और अब इसका विस्तार इजरायल, यूरोप एवं खाड़ी देशों तक करने की कोशिश है।
भारत की आत्मनिर्भरता और मेड इन इंडिया को बढ़ावा देने का परिणाम आज ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत के मजबूत व्यापारिक रिश्तों के रूप में सामने आ रहे हैं। इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया भारत का रणनीतिक साझेदार हैं। दोनों देश क्वाड का हिस्सा हैं और क्षेत्र में चीन की गतिविधियों को सीमित करने के लिए आपस में सहयोग भी कर रहे हैं। सुरक्षा और भू-सामरिक रिश्तों के साथ ही ऑस्ट्रेलिया भारत के लिए व्यापारिक, शैक्षिक और राजनीति की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
फिलहाल ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री भारत के दौरे पर हैं। उनके दौरे पर व्यापार और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण समझौते सामने आए हैं। भारत के करीब 60,000 विद्यार्थी ऑस्ट्रेलिया में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। वहीं ऑस्ट्रेलिया का बाजार भारत के सर्विस सेक्टर के विकास के लिए जरूरी है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के अनुसार ECTA से भारत के आईटी सेक्टर में बड़ा बूम देखा जा सकता है।
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वस्तु और सेवा व्यापार में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच वर्ष 2021 में 27.5 बिलियन डॉलर का आदान-प्रदान हुआ। साथ ही वर्ष, 2019 से 2021 के बीच भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच व्यापार में 135 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली है। भारत ऑस्ट्रेलिया का 9वां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले वर्षों में दोनों देशों के बीच व्यापार 70 बिलियन डॉलर को पार कर सकता है। संभव भी है क्योंकि ऑस्ट्रेलिया भारत को कच्चा माल और मिनरल्स उपलब्ध करवाता है। मिनरल्स भारत के मेड इन इंडिया उत्पादों जैसे मोबाइल फोन, फ्लैट स्क्रीन मॉनिटर, पवन टर्बाइन, सौर पैनल और इलेक्ट्रिक कार आदि के निर्माण में उपयोगी हैं। ऐसे में ECTA भारत को आत्मनिर्भर बनने में मदद करेगा। साथ ही ऑस्ट्रेलिया सैन्य क्षेत्र में अधिक उत्पादन नहीं करता है। INS विक्रांत पर ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री की तस्वीरें सैन्य क्षेत्र में भारत और ऑस्ट्रेलिया के सहयोग को मजबूत दिखा रही हैं। भारत अपने सैन्य उत्पादों को भी ऑस्ट्रेलिया के बाजार में उतार सकता है।
व्यापारिक क्षेत्र में सबसे अधिक समस्या छोटे और मझले उद्योगों की सामने आती है। मुक्त व्यापार समझौतों से देश को न सिर्फ विदेशी बाजारों में आसान पकड़ मिलेगी बल्कि ड्यूटी मुक्त होने के कारण छोटे व्यापारी भी इसका हिस्सा बन पाएंगे। दोनों देशों के बीच हुए व्यापारिक समझौते में भारत को सेवा एवं माल क्षेत्र 100% का फायदा दिया गया है। साथ ही भारत के उत्पादों को ‘Preferential market access’ भी दिया गया है अर्थात देश के उत्पाद प्राथमिकता के साथ प्रवेश पा सकेंगे।
भारत और ऑस्ट्रेलिया के राजनीतिक संबंधों में सक्रियता बढ़ी है। आज दोनों देश अपनी समस्याओं के साथ समाधानों को भी साझा कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री के भारत दौरे पर सभी की नजरें हैं और इसमें सामने आए समझौते एवं भारत की सॉफ्ट पावर ने देश की वैश्विक बाजार तक पहुँच सुनिश्चित की है। ऑस्ट्रेलिया एवं भारत दो ऐसे देश हैं जो चीन की विस्तारवादी एवं आर्थिक रणनीतियों के निशाने पर रहे हैं। चीन की व्यापारिक नीतियों के चलते ही कहीं न कहीं भारत ने अपने आपको RCEP से अलग भी किया था। हालाँकि भारत अपने आपको वैश्विक बाजार से दूर करना वहन नहीं कर सकता है। ऐसे में चीन के सैन्य एवं औद्योगिक प्रभाव को रोकने के लिए ऑस्ट्रेलिया और भारत का आर्थिक मोर्च पर काम करना स्वभाविक है।
भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते के मायने
भू-राजनीति के बदले दौर में आज भले ही परमाणु संपन्नता सुरक्षा का एक जरिया माना जा सकता है पर आने वाले समय में आर्थिक आत्मनिर्भरता ही देश की जीत-हार सुनिश्चित करेगी। रूस–युक्रेन युद्ध ने आर्थिक प्रतिबंधों, व्यापारिक समझौतों और आयात-निर्यात में सहयोग की परिभाषाओं को बदल दिया है। ऐसे में जरूरी है कि भारत अपने रणनीतिक साझेदार सूझ-बूझ के साथ चुनें। ऑस्ट्रेलिया के साथ प्रगाढ़ हुए संबंध इस दिशा में पहला कदम माने जा सकते हैं पर अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए भारत को यूरोप और खाड़ी देशों के साथ भी मुक्त व्यापार समझौते को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।