आयकर विभाग ने BBC के दिल्ली और मुंबई ऑफिस पर सर्वे किया। यह जानकारी भी सामने आई कि यह सर्वे क्यों किया गया। विभाग के अनुसार ट्रांसफर प्राइसिंग को लेकर सर्वे किया गया। यह सामान्य बात है। इस तरह के मामले उन कंपनियों के लिए साधारण हैं जिनकी पैरेंट कंपनियां भारत से बाहर की हैं। हाल ही में ED ने चीनी मोबाइल कंपनियों पर छापे मारे थे और यह पता चला था कि टैक्स अवॉयड करने के लिए उन्होंने पैसे चीन में अपनी पैरेंट कंपनियों को ट्रांसफर किये थे। इन कंपनियों द्वारा जो फंड बाहर भेजा गया, उसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि केवल एक ब्रांड द्वारा 62,476 करोड़ रूपये चीन भेजा गया।
BBC पर इस प्रशासनिक कार्रवाई का विरोध हो रहा है। समस्या यह है कि पिछले कुछ वर्षों में केंद्र सरकार की हर प्रशासनिक कार्रवाई का विरोध विपक्ष का स्थायी राजनीतिक दर्शन बन चुका है। प्रशासनिक कार्रवाई, फिर वो चाहे टैक्स सम्बन्धी हो, सुरक्षा सम्बन्धी या फिर किसी और कानून के नियम के उल्लंघन सम्बन्धी, विपक्ष और उसके नेता तुरंत विरोध करने के लिए खड़े हो जाते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ है। कांग्रेस से लेकर डीएमके, बीआरएस, जेडीयू या फिर अन्य दलों के नेता, सबको BBC के ऊपर आयकर विभाग के सर्वे में प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला दिखाई दे रहा है। यह बात अलग है कि ऐसी प्रशासनिक कार्रवाई मीडिया हाउस पर पूर्व में होती रही है।
इसी तरह से जब NDTV की फंडिंग और उसमें मनी लॉन्डरिंग को लेकर केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों ने कार्रवाई की तब भी विपक्षी दल, बुद्धिजीवी, पत्रकार, संपादक वगैरह सब एक होकर खड़े हो गए थे। कुछ वरिष्ठ लोगों ने टैक्स, FEMA और ED की चैनल पर कार्रवाई को प्रेस की उसी स्वतंत्रता के साथ जोड़ दिया था जिसके ऊपर उन्हें हमला आये दिन दिखाई देता रहता है। पर NDTV के मामले में क्या निकला? टैक्स की चोरी से लेकर FEMA का उल्लंघन तक, चैनल और उसके मालिकों ने कुछ भी छोड़ा नहीं था। ऐसा ही न्यूज़क्लिक की फंडिंग के मामले में भी हुआ जब पोर्टल की फंडिंग के पीछे अमेरिकन बिजनेसमैन और सोशल एक्टिविस्ट का नाम आया जिसके सम्बन्ध चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से हैं।
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प्रश्न यह है कि हर प्रशासनिक कार्रवाई को क्या प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला कहा जा सकता है? ऐसा कहने वाले क्या यह नजरअंदाज कर सकते हैं कि BBC पर ब्रिटेन में ही टैक्स चोरी के आरोप लगते रहे हैं? ऐसे में जब BBC पर ब्रिटेन की सरकार ने कार्रवाई की होगी तो क्या वहां भी इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला बताया गया होगा? ब्रिटेन में अलग-अलग वर्षों में अलग-अलग अथॉरिटी और डिपार्टमेंट की ओर से BBC पर कार्रवाई हो चुकी है। ऐसे में भारत में होने वाली कार्रवाई को प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला कहना किस तरह से तर्कसंगत है?
प्रशासनिक विभागों द्वारा सर्वे या छापे कंपनियों पर पड़ते रहते हैं। जाँच होती रहती है। आम भारतीय के लिए कॉर्पोरेट सेक्टर पर ऐसी कार्रवाई साधारण बात है। पर एक बदलाव हुआ है जिस पर बहुत कम चर्चा होती है। दरअसल पहले जब कंपनियों या व्यवपारिक प्रतिष्ठानों पर छापे पड़ते थे तब जनता संतोष की सांस लेती थी, यह सोचते हुए कि सरकार मुस्तैद है और उद्योगपतियों को रगड़ रही है। अब उद्योगों पर छापे पड़ते हैं या आयकर और GST सम्बंधित या अन्य प्रशासनिक कार्रवाई होती है तो सरकार पर यह आरोप लगता है कि वह जानबूझकर व्यापारियों और उद्योगपतियों को परेशान कर रही है। यह ऐसा बदलाव है जो अचानक दिखाई देने लगा है।
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अन्य सेक्टर की कंपनियों पर ऐसी कार्रवाई से शिकायत बहुत कम दिखाई देती है पर जैसे ही यह कार्रवाई किसी मीडिया हाउस पर होती है तब सीधा आरोप लगाया जाता है कि प्रेस की स्वतंत्रता खतरे में आ गई है। यह ऐसा टेम्पलेट है जिसमें भारत का राजनीतिक विपक्ष चक्कर लगाता रहता है क्योंकि उसे वर्तमान केंद्र सरकार का विरोध करना है। प्रेस की स्वतंत्रता पर पिछले हमला राजीव गांधी के समय हुआ था जब उनकी सरकार ने 1988 में लोकसभा में बहुमत का सहारा लेते हुए प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला किया था। हर प्रशासनिक कार्रवाई को प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला बताने वाले विपक्षी इसे भूल जाते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि विरोध करना इसलिए जरूरी है क्योंकि ऐसी हर कार्रवाई नरेंद्र मोदी की आलोचना का मौका लेकर आती है और यह आलोचना ही गाय की वह पूँछ है जिसे पकड़कर विपक्ष राजनीति की वैतरणी पार कर सकता है।