भारत ने लगभग एक दशक लम्बे ‘रेगुलेट्ड ट्रेड प्रोटेक्शन’ की नीति पर विराम लगाकर, पिछले 2 वर्षों में मॉरिशस, संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया के साथ 3 मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किया है।
इसके अलावा, भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते पर भी बातचीत चल रही है। भारत और ब्रिटेन दोनों ही विश्व के पांचवें और छठे नम्बर की सबसे बड़ी अर्थव्यस्था हैं, साथ ही दोनों देश कॉमनवेल्थ के सदस्य हैं, इस लिहाज से भी यह समझौता बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।
क्या है मुक्त व्यापार समझौता?
यह समझौता दो या दो से अधिक देशों के बीच एक व्यापारिक समझौता होता है। इसमें उत्पाद व सेवाओं को इन देशों के अन्तरराष्ट्रीय सीमाओं से व्यापारिक गतिरोध को दूर कर न्यूनतम अथवा बिना सरकारी टैरिफ, सब्सिडी, सीमा शुल्क के आयत या निर्यात किया जाता है। इससे भागीदार देशों के छोटे-बड़े उद्योगों को समान व्यापारिक अवसर मिलते हैं।
भारत ने किया नीतिगत बदलाव
भारत व्यापारिक संरक्षण की नीति के तहत भारतीय उद्योगों, निर्माताओं को अपने वैश्विक प्रतिद्वंदियों से संरक्षण देने की आवश्यकता को समझता है।
बगैर घरेलू उत्पादक इकाईयों को सशक्त किए विदेशी कंपनियों के लिए बाज़ार खोल देना व्यापारिक असंतुलन की स्थिति पैदा हो जाती है। इसका एक उदाहरण भारत-चीन व्यापारिक सम्बन्ध है।
सरकार ने कई महत्वपूर्ण नीतियों में बदलाव किए, जिनके परिणाम अब दिखने लगे हैं। आत्म-निर्भर भारत, MSME सुधार, स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया, वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट, ONDC (ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल मार्किट प्लेस), गति शक्ति जैसी योजनाओं से साथ-साथ रोड एंड इंफ्रास्ट्रक्चर में भी भारी निवेश किया जा रहा है।
विदेशी निवेशकों के लिए भी निवेश की अनुकूल परिस्थितियाँ तैयार की जा रही है। भारत ने वित्तीय वर्ष 2021-22 में 400 अरब डॉलर का निर्यात किया है।
भारत, विश्व में सबसे तेजी से स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने वाले देश के रूप में उभरा है। यही कारण है कि इस समय भारत में 100 से भी ज्यादा यूनिकॉर्न कम्पनियाँ हैं।
ऐसे में भारतीय उत्पादकों-निर्माताओं द्वारा अपने उत्पाद व सेवाओं के लिए वैश्विक बाज़ार तलाशना स्वाभाविक है। साथ ही भारत के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के सपने को साकार करने के लिए निर्यात व निवेश दोनों ही आवश्यक हैं।
भारत ब्रिटेन के लिए मुक्त व्यापार का महत्व
- ब्रेग्ज़िट के बाद ब्रिटेन पूरे यूरोप में मिल रहे मुक्त व्यापार के लाभ से वंचित हो गया। ऐसे में भारत जैसे बड़े बाज़ार ब्रिटेन के लिए बहुत जरुरी हो जाता है।
- वहीं भारत के लिए भी ब्रिटेन के बाद अन्य यूरोपीय देशों में अपने उत्पादों-सेवाओं के निर्यात और उन देशों के जरिए विदेशी निवेश के रास्ते खुलने की संभावनाएं हैं।
- ब्रिटेन पहला पश्चिमी G-7 देश है जिसके साथ भारत मुक्त व्यापार समझौता कर रहा है।
- वर्तमान में भारत, ब्रिटेन में दूसरा जबकि ब्रिटेन भारत में छठा सबसे बड़ा निवेशक है। साल 2021-22 के दौरान दोनों देशों के बीच 17.5 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। जो पिछले वित्तीय वर्ष में हुए आपसी व्यापार (13.2 अरब डॉलर) से कहीं ज्यादा है।
- इस समझौते के बाद दोनों देशों के बीच व्यापार और आपसी निवेश में भारी उछाल देखने को मिल सकता है।
- भारत की लगभग 900 कम्पनियाँ ब्रिटेन में हैं, जबकि, ब्रिटेन की 572 कम्पनियाँ भारत में व्यापार कर रही हैं। जिसका कुल टर्नओवर क्रमश: 64 अरब डॉलर और 48 अरब डॉलर है। वहीं दोनों देश भारी सँख्या में रोजगार सृजन करते हैं।
- भारतीय निर्माताओं को भी मुक्त व्यापार से पनपे प्रतिद्वंदी माहौल में अपने उत्पादों को विश्वस्तरीय गुणवत्ता तक ले जाने में सहायता मिलेगी।
- कम या बिना टैरिफ रेट्स के भारतीय उत्पादों/सेवाओं का यूरोपीय बाज़ारों में प्रवेश सुलभ हो सकता है। इससे भारतीय निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा।
- भारत द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा और मुख्य रूप से सोलर एनर्जी के क्षेत्र में किए गए प्रयासों को लेकर ब्रिटेन समेत अन्य यूरोपीय देश भी इस क्षेत्र में निवेश और सहयोग बढ़ाना चाहेंगे। बता दें कि ब्रिटेन वर्ष 2018 से ही इंटरनेशनल सोलर अलाइंस का सदस्य देश है।
- भारत की आईटी, फार्मास्युटिकल, टेक्सटाइल, ऑटोमोबाइल कम्पनियों के लिए ब्रिटेन जैसा बाजार मिलना एक सुनहरा अवसर जैसा होगा। साथ ही UPI जैसे डिजिटल इनोवेशन के लिए लाँच प्लेटफार्म मिल सकता है।
भारत ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते की चुनौतियों
यह जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही जटिल भी। इसे लेकर दोनों देशों के बीच कई दौर की बैठकें भी हो चुकीं हैं लेकिन अभी तक कोई ठोस सहमति नहीं बन पायी है।
दोनों देश कई मायनो में एक दूसरे से भिन्न हैं। बात जनसँख्या से लेकर व्यापारिक कानून एवँ नीतियाँ की हो या फिर इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स या पेटेंट की।
ब्रिटेन में चली आ रही राजनीतिक अस्थिरता और नाटो का सदस्य होने के नाते रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत के स्टैंड को लेकर दोनों देशों के बीच असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
इसके अलावा, FTA को ब्रिटेन में भारतीय प्रोफेशनल्स और स्टूडेंट्स के प्रवास को बढ़ावा देने वाला करार दिया गया है।