एक राज्य के रूप में दिल्ली पिछले कई वर्षों से राजनीतिक चर्चा के केन्द्र में रही है। दिल्ली के पूर्ण राज्य न होने का परिणाम यह है कि दिल्ली की वर्तमान सरकार अपने और केन्द्र के अधिकारों को लेकर हमेशा कुछ न कुछ ऐसा खड़ा कर लेती है जो बहस को जन्म देता है। दिल्ली की सत्ता संभालने के बाद अरविंद केजरीवाल ने बड़ी-बड़ी घोषणाएं की थी। IITian मुख्यमंत्री के तौर पर केजरीवाल ने सुशासन का उदाहरण पेश करने का दावा किया पर वे पारंपरिक राजनीति के भंवर में फंस ही गए।
विकास तो नहीं हुआ पर अपनी डिग्री को आगे रख वे अपने कथित विकास की मार्केटिंग करने में सफल कहे जा सकते हैं। इसी का परिणाम है कि खोखले वादे और घोषणाओं के बाद भी दिल्ली के जनमानस ने दो बार केजरीवाल को पूर्ण बहुमत दिया। इन दोनों कार्यकाल में अरविंद केजरीवाल ने बार-बार कहा कि इस वर्ष के अंत तक मैं और दिल्ली की जनता स्वच्छ यमुना में डुबकी लगाएंगे। यमुना की सफाई मेरी जिम्मेदारी है। तारीख और वर्ष आगे बढ़ते रहे और यमुना में प्रदूषण कम नहीं हुआ।
विडंबना यह है कि अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्री यह दावा तो करते हैं कि यमुना नदी की सफाई एक IITian मुख्यमंत्री से बेहतर कोई नहीं कर सकता पर 8 वर्षों के शासन एवं करीब 6500 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी यमुना की स्वच्छता की दिशा में कोई महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाया जा सका है।
हालाँकि, अब प्रबल संभावनाएं नजर आ रही हैं कि उप-राज्यपाल वीके सक्सेना 30 जून तक मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जिम्मेदारी और दिल्ली की जानता का सपना, दोनों पूरा कर देंगे। दरअसल, दिल्ली के उप राज्यपाल वी के सक्सेना ने यमुना नदी के सफाई कार्यों को त्वरित गति से करवाने का जिम्मा उठाकर यह घोषणा की है कि 30 जून, 2023 तक यमुना नदी स्वच्छ हो जाएगी। साथ ही वे यह सब दिल्ली की जनता के लिए कर रहे हैं, क्रेडिट लेने के लिए नहीं।
क्यों हुआ शुरू हुआ केजरीवाल और उनका डिग्री प्रलाप
उप राज्यपाल के बयान ने दिल्ली में डिग्री की लड़ाई के बीच क्रेडिट का नया किस्सा शुरू कर दिया है। आम आदमी पार्टी के सरकार के मंत्रीगण अब आगे आकर बता रहे हैं कि एलजी मुख्यमंत्री द्वारा किए गए कार्यों का क्रेडिट ले रहे हैं। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरव भारद्वाज ने बाकयादा प्रेस कॉन्फ्रेस कर इसकी जानकारी देते हुए कहा कि किस तरह केजरीवाल सरकार ने यमुना की सफाई के लिए 7 वर्षों में बजट आंवटन किया और स्वच्छता की कई तकनीक पर काम किया है। हालाँकि इस बजट के बाद भी यमुना की स्थिति बद से बदतर क्यों हो गई, इसकी जानकारी सौरव भारद्वाज ने सार्वजनिक नहीं की है।
वर्तमान राजनीतिक घटनाओं के बीच नमक हलाली का बेहतरीन उदाहरण अगर किसी ने पेश किया है तो वो भी सौरव भारद्वाज ही हैं जिनका कहना है कि यमुना की स्थिति में अगर कोई सुधार ला सकता है तो वो है इंजीनियर मुख्यमंत्री, वो भी विशेषरूप से आईआईटी से पास। IITian मुख्यमंत्री ही यमुना की साफ सफाई की रूपरेखा खींच सकता है। चूँकि केजरीवाल IIT से डिग्री लेकर आए हैं इसलिए नदी की सफाई की तकनीकी और वैज्ञानिक कौशल में वह पहले से ही पारंगत है। श्रेय लेने की होड़ में दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री अपने मुख्यमंत्री की डिग्री का जिक्र करना नहीं भूले और यह प्रशंसनीय है पर वो दिल्ली एलजी वीके सक्सेना की काबिलियत का जिक्र नहीं कर पाए। जिन्हें समावेशी विकास के क्षेत्र में काम करने का लंबा अनुभव रहा है और यमुना नदी पर दिल्ली सरकार की विफलता के बाद ही मार्च, 2022 में उन्हें दिल्ली के उप-राज्यपाल के तौर पर नियुक्त किया गया था।
वर्ष, 2015 में सरकार बनाने के बाद से केजरीवाल ने यमुना नदी की स्वच्छता की बात की और सिर्फ बातें ही की। उनका कहना है कि 70 वर्षों का काम करने के लिए थोड़ा समय लगेगा। जैसे देश की स्वतंत्रता के साथ ही यमुना में सीवेज एवं औद्योगिक वेस्ट छोड़ा जाने लगा था। साथ ही सोचने वाली बात यह है कि जिस यमुना नदी की सफाई की जिम्मेदारी अरविंद केजरीवाल पर है वो मात्र 22 किलोमीटर का क्षेत्र है जो नदी के 76 प्रतिशत प्रदूषण का जिम्मेदार है। इस 22 किमी को स्वच्छ करने के लिए IITian मुख्यमंत्री के लिए दो कार्यकाल भी पर्याप्त नहीं रहे। डीपीसीसी के आंकड़े दर्शाते हैं कि दिल्ली में यमुना नदी का प्रदूषण 8 वर्षों में दोगुना हो गया है। नदी को स्वच्छ बनाने में समय लगेगा यह तो समझने योग्य है पर यह कौनसे प्रयास हैं जिनसे प्रदूषण कम होने के बजाए दोगुना हो गया है?
उम्मीद है इस प्रश्न की व्याख्या करने के लिए सोशल वर्क एक्टिविस्ट रहे एवं आईआईटी उत्तीर्ण अरविंद केजरीवाल के पास अपने तर्क अवश्य होंगे।
क्रेडिट की लड़ाई में आम आदमी पार्टी सरकार ने उप-राज्यपाल को घेर तो लिया पर वे स्वयं केंद्र सरकार के प्रयासों का श्रेय लेकर जनता को क्यों भ्रमित कर रहे हैं? एनएमसीजी द्वारा समय-समय पर यमुना के घाटों की सफाई का कार्यक्रम चलाया जाता है। नमामि गंगे की तहत ही केंद्र सरकार ने यमुना की सफाई का भी बीड़ा उठाया है। कोरोनेशन पिलर की मदद से जल शक्ति मंत्रालय द्वारा पानी को साफ किया जा रहा है। इन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि यमुना नदी प्रदूषण मुक्त भविष्य की ओर बढ़ रही है। केंद्र सरकार के प्रयासों के पीछे अपनी 8 वर्षों की विफलता छुपाने का हुनर बेशक इंजीनियर मुख्यमंत्री में ही हो सकता है।
केजरीवाल ने वर्ष, 2015 में वादा किया कि वो अगले 5 वर्षों में यमुना साफ कर देंगे। इसके बाद वर्ष, 2019 में वादा किया कि अगले चुनावों से पहले वो यमुना में डुबकी लगाएंगे। यमुना की सफाई केजरीवाल के लिए वो चुनावी झुनझुना बन गया है जिसे बजाकर वो हर विधानसभा में पूर्ण बहुमत लेना चाह रहे हैं। यमुना नदी की सफाई को चुनावी मुद्दा बनना ही नहीं था। धार्मिक आस्था का केंद्र और प्राकृतिक संतुलन के लिए नदियों की स्वच्छता अनिवार्य है। हालाँकि, समाज सेवा के जरिए विदेशी एजेंडा चलाने वाले एक्टिविस्टों के लिए यह समझना मुश्किल है।
राजनीतिक स्टंट के लिए शोर मचाते राहुल गांधी
सौरव भारद्वाज का कहना है कि दिल्ली सरकार ने बजट यमुना के लिए रुपए डाले तो एलजी ने खर्च किए इसलिए सफाई का श्रेय केजरीवाल को मिलना चाहिए। यमुना नदी की सफाई की दिशा में बढ़ते कदमों का श्रेय लेने के लिए आप सरकार के मंत्री प्रेस कॉन्फ्रेस करके उप-राज्यपाल को टूरिस्ट तो बता रहे हैं पर इसी प्रेस कॉन्फ्रेस में उन्हें इन प्रश्नों को उत्तर भी अनिवार्य रूप से देना चाहिए- केंद्र सरकार ने समय-समय पर यमुना सफाई कार्यक्रम के लिए जो बजट आवंटन किया उसका किस प्रकार इस्तेमाल किया गया? बजट पास होने के बाद भी 8 वर्षों में नदी के प्रदूषण में क्यों बढ़ोत्तरी हुई? इंजीनियर मुख्यमंत्री की विफलता के बाद केंद्र सरकार के प्रयासों को क्या आप सरकार श्रेय देगी?