गोवा में नौ दिवसीय इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया (आईएफएफआई) के 53वाँ संस्करण का समापन हो गया है। यह फिल्म फेस्टिवल 20 से 28 नवम्बर के बीच आयोजित किया गया था।
2004 से प्रत्येक वर्ष 20 से 28 नवम्बर के बीच इसे गोवा में ही आयोजित किया जाता रहा है। इस समारोह के दौरान दुनिया भर के 79 देशों के 280 से ज्यादा फिल्मों की स्क्रीनिंग हुई।
समापन समारोह में केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर, सुचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री डॉ. एल मुरुगन, गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत समेत भारतीय सिनेमा के कई बड़े अभिनेता भी मौजूद रहे।
इस दौरान भारत के स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाँठ और भारत-फ्रांस के कूटनीतिक रिश्तों के भी 75 वर्ष पूरे होने पर दोनों देशों के बीच के सांस्कृतिक संबंधों की धमक भी देखी गई।
मई महीने में कान्स फिल्म फेस्टिवल में फ्रांस द्वारा कूटनीतिक रिश्तों के 75 वर्ष पूरे होने के पर भारत को ‘कान्स कंट्री ऑफ़ ऑनर’ का दर्ज़ा दिया गया था। अब भारत द्वारा फ्रांस को ‘कंट्री ऑफ़ फोकस’ के दर्ज़े से सम्मानित किया गया है।
द कश्मीर फाइल्स पर विवादित बयान
समापन समारोह के दौरान इंटरनेशनल कॉम्पिटिशन ज्यूरी के चेयरमैन इज़राइली फ़िल्मकार नदाव लपिद ने एक विवादित बयान देकर खूब आलोचनाएँ बटोर ली। नदाव ने विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्मित फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ को ‘प्रोपेगंडा’ और ‘वल्गर’ फिल्म कह दिया।
इसके बाद से ही देश भर से विभिन्न तरह की प्रतिक्रियाएँ आनी शुरू हो गई। आरोप लगा कि इतने बड़े मंच से नदाव द्वारा अपने व्यक्तिगत एजेंडे के तहत फिल्म और कश्मीरी हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुँचाने का प्रयास किया है।
गौरतलब है कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ को देश-विदेश में खूब सफलता मिली और इस फिल्म ने वर्ल्डवाइड 300 करोड़ रुपए से ज्यादा का कारोबार किया। ऐसे में जब कोई यह कहता है कि यह फिल्म एक ‘प्रोपगैंडा’ है तो यह फिल्म से जुड़े लोगो के साथ-साथ उसे देखने और उसकी सराहना करने वाले दर्शकों के विवेक पर भी प्रश्न उठाता है।
यहाँ, यह भी समझना आवश्यक है कि द कश्मीर फाइल्स कोई मनोरंजन आधारित फिल्म नहीं है, बल्कि एक सभ्यता पर किए गए नृशंस अत्याचार को दिखाती है, जिसे उसी के देश में दशकों से दबाया गया, जिसकी उपेक्षा की गई।
इजराइली फिल्मकार नदाव लपिद को जवाब देते हुए कई लोगों ने बड़ी ही मुखरता से सवाल किया कि यदि नाज़ियों द्वारा यहूदियों पर किए गए अत्याचार का ऐसा उपहास किया जाए तो फिर उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी?
बहरहाल, इज़राइली सरकार ने स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए विदेश मंत्रालय समेत कई राजनयिकों ने अपने सोशल मीडिया हैंडल्स से नदाव को खूब खरी-खोटी सुनाई और कश्मीरी हिन्दुओं पर किए गए अत्याचार पर अपनी संवेदना व्यक्त की।
सैद्धांतिक विचारों पर हावी अवसरवाद
नदाव अपना विचार रखते हुए कहता है, “एक फ़िल्मकार के रूप में मैं चाहता हूँ कि काश सिनेमा में परिवर्तनकारी शक्ति होती, लेकिन मेरा मानना है कि इस माध्यम का अधिक सीमित और कम तात्कालिक प्रभाव है।”
यहाँ इनकी कथनी और करनी में फर्क साफ़ देखा जा सकता है। यह ‘द कश्मीर फाइल्स’ का तात्कालिक और असीमित प्रभाव ही है जो नदाव जैसे बड़े फिल्म निर्माता को फिल्म को मेरिट के आधार पर नहीं बल्कि एजेंडे के आधार पर टिप्पणी करने को बाध्य कर दिया।
इजराइल और यहूदियों पर नदाव लपिद का स्टैंड
हमें पता है कि भारत और इज़राइल दोनों ही देश एक तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। भारत की तरह ही इज़राइल भी कथित बुद्धिजीवी वर्ग के दंश को झेल रहा है। देखा जाए तो नदाव का इज़राइल और यहूदियों को लेकर विचार भी संवेदनशील नहीं है। नदाव ने इज़राइली सेना में सेवा देने के एक साल बाद ही फ्रांस जाकर फिल्म मेकिंग को अपना पेशा बनाया। नदाव लगातार अपनी फिल्मों में इज़राइल और यहूदियों को गलत तरीके से प्रदर्शित करते आए हैं।