भारत से हजारों प्राचीन मूर्तियों की हो चुकी हैं चोरी। कला खोजकर्ता विजय कुमार बने हैं आशा की किरण।
चेन्नई, भारत – फरवरी 2016 की एक ठंडी रात में, शौकिया कलाकृति जासूस एस. विजय कुमार को एक मुखबिर से एक गर्मागर्म टिप मिली। लंदन के एक छात्र ने बताया कि उसने मेफेयर की एक आर्ट गैलरी के पिछले कमरे में अधखुले दरवाजे के पीछे से एक भारतीय कांस्य प्रतिमा की झलक देखी।
उस व्यक्ति ने एक फोटो फॉरवर्ड किया: इसे उसने गुप्त रूप से खींचा था, लेकिन कुमार के लिए यह फोटो 14वीं शताब्दी की भगवान राम की एक मूर्ति को पहचानने के लिए काफी था, जिसकी बाईं भुजा सुंदर रूप से आकाश की ओर उठी हुई थी, पर इस मूर्ति की उत्पत्ति का स्थान बताना कठिन था।
ऐसे कई मामलों से शुरू हुए कुमार के सफर ने एक दशक से भी अधिक समय में भारतीय मन्दिरों से लूटी गईं और अंतराष्ट्रीय ग्रे मार्केट में म्युजियमों और अमीर संग्रहकर्ताओं को बेच दी गयीं हजारों बहुमूल्य धार्मिक प्राचीन मूर्तियाँ ट्रैक करने और उन्हें पुनः प्राप्त करने के लिए एक मिशन का रूप ले लिया है।
300 से ज्यादा मूर्तियाँ ढूंढी
2008 से, अब तक 48 वर्षीय कुमार ने लगभग 300 पुरावशेषों को पुनर्प्राप्त करने में सफलता हासिल की है, जिसमें 10वीं सदी की नृत्य मुद्रा में नटराज की उत्कृष्ट कांस्य मूर्ति से लेकर दूसरी शताब्दी ई.पू. की बलुआ पत्थर में तराशी गई बुद्ध की मूर्ति तक शामिल है। उन्होंने एम्स्टर्डम के कलाकृति डीलरों, लंदन के निजी संग्राहकों, ऑस्ट्रेलिया की नेशनल गैलरी और होनोलूलू म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट सहित अनेक संस्थानों से भारतीय प्राचीन वस्तुओं को पुनः प्राप्त किया है।
उनका कहना है कि वह और अन्य भारतीय अधिकारी एक भारतीय मूर्ति को वापिस प्राप्त करने के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के कला और पुरातत्व संग्रहालय के साथ बात कर रहे हैं और ऐसी ही आधा दर्जन कलाकृतियों के लिए न्यूयॉर्क में मेट्रोपॉलिटन म्यूजियम ऑफ आर्ट के साथ भी चर्चा कर चुके हैं।
कुमार शिपिंग व्यवसाय में काम करते हैं, लेकिन दक्षिण भारत में अपने गृहनगर चेन्नई में एक किराए के छोटे से ऑफिस से अपने असली जुनून को जीते हैं। कुमार कहते हैं कि, “लचर कानून व्यवस्था के कारण, इटली जैसी जगहों की तुलना में प्राचीन वस्तुओं की तस्करी के लिए भारत को हमेशा आसान चारागाह माना जाता रहा है।
पर भारत, और इटली या मिस्र के बीच एक बहुत बड़ा अंतर है, आप ऐसे देवताओं की चोरी कैसे कर सकते हैं जिनकी एक दिन पहले तक कोई पूजा कर रहा था? भारत की प्राचीन मूर्तियाँ जीवित देवता हैं और इसलिए हम उन्हें फिर से घर लाने की कोशिश कर रहे हैं।”
संयुक्त राष्ट्र ने बनाए हैं कानून
1970 में संयुक्त राष्ट्र ने सांस्कृतिक विरासत की तस्करी पर प्रतिबंध लगाने और चोरी की गयी सत्यापित वस्तुओं को पुनः लौटाने की आवश्यकता पर सम्मेलन आयोजित किया था। इसे 100 से अधिक देशों ने मंजूर किया था, जिसमें भारत भी शामिल था। यह सम्मेलन और विभिन्न देशों के अन्य कानून 1970 के दशक से भारत से चुराई गई वस्तुओं को पुनः प्राप्त करने के लिए कुमार को कानूनी आधार प्रदान करते हैं, और इसलिए भारत के औपनिवेशिक काल के दौरान हुई बड़े पैमाने की लूट पर वे कम ध्यान देते हैं।
भारत की आज़ादी के बाद आधुनिक युग में भी प्राचीन वस्तुओं की भारी तस्करी हुई है। पिछड़े गांवों में अपने ही समुदायों की बेशकीमती मूर्तियों को लूटने और बेचने वाले चोरों, और विदेशों के संग्रहालयों और अमीर संग्राहकों की निरंतर मांग से प्राचीन वस्तुओं की चोरी का मार्केट बहुत गर्म है।
एक सरकारी ऑडिट के अनुसार, 2012 से पहले के 35 वर्षों में, भारत ने चोरी किए गए दो दर्जन से भी कम प्राचीन अवशेष बरामद किए थे। लेकिन पिछले दशक में बरामद की गयी वस्तुओं की संख्या बहुत बढ़ गई है, जिसका एक बड़ा श्रेय जाता है कुमार के स्वयंसेवी समूह ‘इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट’ को, इस प्रोजेक्ट के संचालन की व्यापकता और इसका ट्रैक रिकॉर्ड अद्वितीय है।
विजय कुमार के काम की गंभीरता से सब हैरान
दक्षिण और दक्षिण पूर्वी एशिया में कलाकृतियों से सम्बन्धित अपराध पर ग्लासगो विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ एमिलिन स्मिथ कहते हैं, “जब हम निजी और सार्वजनिक संग्रहालयों द्वारा भारतीय सांस्कृतिक वस्तुओं की वापसी के बारे में सुनते हैं, तो पर्दे के पीछे अक्सर विजय कुमार होते हैं। उनके ऑपरेशन्स गुप्त होते हैं और अनेक लोगों में कार्य बांटा जाता है, इसलिए कोई नहीं जानता कि उनकी टीम में वास्तव में कौन है। क्या वह एक आदमी है? या सौ हैं?”
विजय कुमार कहते हैं कि उनकी टीम में लगभग 40 लोग हैं। ‘इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट’ में दुनिया भर के स्वयंसेवक हैं जो अन्तराष्ट्रीय म्युज़ियम्स और गैलरीज़ में भारतीय वस्तुएं ढूंढते रहते हैं, नीलामी के कैटलॉग इकट्ठे करते हैं और उनमें खोजबीन करते हैं, निजी कला प्रदर्शनियों पर नज़र रखते हैं और सोशल मीडिया के क्रय-विक्रय समूहों में भी उपस्थित रहते हैं।
जब भी उन्हें किसी भारतीय कलात्मक वस्तु के बारे में नई जानकारी मिलती है, चाहे वह किसी डीलर ने छुपाकर रखी हो या किसी म्यूज़ियम में खुले तौर पर प्रदर्शित हो, विजय कुमार उन कलाकृतियों में धातु ढलाई की खामियां, चिपकाए हुए अंग, टूटफूट और खरोंच जैसे अलग-अलग निशान ढूंढते हैं।
फिर वह अपने लैपटॉप में मंदिर कलाकृतियों के लगभग 10,000 कृतियों के विशाल और अमूल्य डेटाबेस में ढूंढ़ते हैं। यदि कोई ऐसा मिलान होता है, जिसके बारे में यह साबित किया जा सके कि यह आइटम चोरी हो गया था, तो वह अधिकतर मामलों में सबसे पहले कानूनी संस्थाओं को सूचित करते हैं।
हालिया वर्षों में, अपने दक्षिण एशियाई कला संस्थाओं में विजय कुमार इतने सक्रिय और इतने प्रसिद्ध हो चुके हैं कि उन्हें एक उम्मीद की किरण के रूप में और कुछ कानूनी अधिकारियों के लिए संभावित सिरदर्द के रूप में देखा जाने लगा है। पर कला अपराधों से जुड़े लोग भी उनके कार्यों पर नज़र रखते हैं।
कई बार म्युज़िय्म्स या नीलामी से जुड़े अधिकारियों को चोरी गयी कलाकृतियों के बारे में सूचित किया जाता तो उन्हें पहले से ही पता होता है कि विजय कुमार इसपर ट्वीट कर चुके हैं। सोशल मीडिया युग में कुमार जैसे लोगों और उनके प्रोजेक्ट से जुड़ी जानकारियों के सार्वजनिक होने का खतरा होता है जिस कारण कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारियां और सबूत मिटाए जा सकते हैं।
तमिलनाडु में उनके बचपन के दौरान विजय कुमार की दादी ने उन्हें एक तमिल भाषा की ऐतिहासिक कथा श्रृंखला उपहार में दी थी, जिसमें चोल वंश के संस्थापक राजराज चोल के महान कार्यों का वर्णन किया गया था। इसी पुस्तक ने भारतीय इतिहास में उनकी गहन रुचि जगाई थी। विजय कुमार ने विश्वविद्यालय में अकाउंट्स का अध्ययन किया, और फिर सिंगापुर में शिपिंग कंपनियों के लिए मालवाहक जहाजों की बुकिंग के क्षेत्र में कैरियर बनाया।
लेकिन उन्होंने अपने कार्य से बचा अधिकांश समय ऑनलाइन मंचों में भारतीय पुरावशेषों पर हुए लेखनों पर मंथन करने में बिताया। 2006 में, उन्होंने ‘पोएट्री इन स्टोन’ नामक ब्लॉग लॉन्च किया, जो “मंदिरों की डमी गाइड” के रूप में लोकप्रिय हुआ।
जल्द ही, कुमार की भारत और विदेशों में एक अच्छी पाठक संख्या हो गयी। इस बीच मंदिर कलाकृतियों का अन्वेषण और दस्तावेजीकरण करने के लिए उन्होंने भारत भर में सप्ताह भर के दौरे किए। आरम्भ में वे सिर्फ कलाकृतियों को देखने के लिए जाना चाहते थे लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हुआ कि मन्दिरों में से बहुत सी नायाब वस्तुएं गायब हो चुकी हैं।
पहली बड़ी सफलता 2011 में मिली
कला विशेषज्ञ के रूप में कुमार को पहली बड़ी सफलता 2011 में मिली, जब उन्होंने देखा कि 1950 के दशक में तमिलनाडु में मंदिरों के फ्रेंच अध्ययनों में न्यूयॉर्क के कलाकृति डीलर सुभाष कपूर द्वारा बेची जा रही प्राचीन वस्तुओं को तस्वीरों के साथ प्रकाशित किया गया था। कुमार की खोजों और भारतीय पुलिस की टीम ने कपूर के बोगडानोस के कार्यालय और यू.एस. डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी में लंबे समय से चल रही जांच को अन्तिम मुकाम तक पहुंचाने का काम किया।
2011 में इंटरपोल के वारंट पर पुरावशेषों की तस्करी के आरोप में सुभाष कपूर को गिरफ्तार कर लिया गया। कपूर पर अभी भी भारत में न्यायिक कार्यवाही चल रही है, जबकि दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई कला के 1,000 से अधिक अवशेष मैनहट्टन डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी की जब्ती में हैं, जो अमेरिका में कपूर के प्रत्यर्पण की मांग कर रहा है।
2011 में, क्रिस्टी के नीलामी कार्यक्रम से जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभनाथ की बलुआ पत्थर की प्राचीन मूर्ति को अमेरिकी अधिकारियों द्वारा जब्त करने में विजय कुमार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने बौद्ध धर्म के सबसे पुराने केन्द्रों में से एक नालंदा से लूटी गई एक बुद्ध प्रतिमा को पुनर्प्राप्त करने में भी मदद की है।
2016 में, जब उनके जासूस ने उन्हें लंदन के एक डीलर के तहखाने में रखी एक बेशकीमती प्राचीन भारतीय कांस्य प्रतिमा के बारे में बताया, तो कुमार ने उनके सबसे कठिन मिशनों में से एक में प्रवेश किया।
उन्होंने इस गुत्थी को लगभग संयोग से सुलझा दिया। 2018 में एक दिन विजयकुमार जब सिंगापुर के एक म्यूज़ियम में हिन्दू भगवान हनुमान की एक मूर्ति के उद्भव का पता लगा रहे थे, तब उन्होंने अपने डेटाबेस में आनंद मंगलम नामक तमिलनाडु के एक मानवविज्ञानी द्वारा उसी मूर्ति की 1956 में ली गई एक तस्वीर देखी।
उस तस्वीर में भगवान हनुमान के बगल में दो अन्य देवताओं के साथ श्रीराम की एक कांस्य मूर्ति भी थी जो लंदन के म्यूज़ियम जैसी ही थी। कुमार ने तुरंत पहचान लिया कि यह सभी प्राचीन मूर्तियाँ एक ही राम दरबार का हिस्सा हैं जो तस्करी से अलग अलग जगह पहुंचा दी गयीं हैं।
उन्होंने तुरन्त पुलिस को यह सूचना दी, और जांच में पाया गया कि ग्रामीणों ने वास्तव में 21 नवंबर, 1978 को एक ही मंदिर से राम दरबार की चार मूर्तियों को चुराए जाने की सूचना पुलिस को दी थी। इसके बाद ब्रिटेन में पुलिस ने लंदन गैलरी का दौरा किया, और मैच की पुष्टि करके डीलर से उन चार में से श्रीराम, लक्ष्मण और सीता की तीन मूर्तियों को चुपचाप भारत को सौंप देने का समझौते कराया। हनुमान जी की चौथी मूर्ति अभी भी सिंगापुर में ही है और भारत आने का इंतजार कर रही है। चोरी होने के ठीक 43 साल बाद, 21 नवंबर 2021 को स्थानीय ग्रामीणों ने मन्दिर में उन मूर्तियों का धूमधाम से स्वागत किया।
इस अवसर पर मंदिर के मुख्य पुजारी माधवन अय्यर और निवासियों ने जमकर आतिशबाजी जलाई, तीनों मूर्तियों को रथ पर बिठाकर दो मील लंबी शोभायात्रा निकाली गयी और तुरंत उनकी पूजा शुरू कर दी गयी। पर सभी ने कहा कि चौथे देवता हनुमानजी के लौटने तक श्रीराम दरबार पूरा नहीं होगा। विजय कुमार ने हनुमानजी को जल्दी ही लौटाने का वादा किया।
विजय कुमार को उनके विशाल नेटवर्क से संदेश और कॉल आते ही रहते हैं इसलिए वह कभी चैन से नहीं बैठ पाते। एक स्वयंसेवक मधु उनसे पूछती हैं कि, “क्या गांव के मंदिरों में सीसीटीवी कैमरे लगा देने चाहिए?” क्योंकि कुमार के अध्ययन के मुताबिक भारतीय मंदिरों से हर साल तकरीबन 1,000 प्राचीन मूर्तियाँ/ कलाकृतियां चुरा ली जाती हैं और अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेच दी जाती हैं। वहीं अय्यर उनसे सिंगापुर की हनुमान मूर्ति के बारे में क्या प्रगति हुई यह जानना चाहते हैं। देश विदेश के और लोग उन्हें तरह तरह की सूचनाएं देते रहते हैं और जानकारी मांगते रहते हैं।
बाकी समय में वो अपने लैपटॉप पर चल रहे मामलों और सुलझाए जा चुके मामलों की फ़ाइल देखते रहते हैं, जिसमें कांसे और बलुआ पत्थर की मूर्तियों की तस्वीरों से फोल्डर भरे हुए हैं। एक बार न्यूयॉर्क की एक निजी कला बिक्री में भाग लेने वाले जासूस ने उन्हें एक धुंधली सी तस्वीर भेजी, जिसमें काले कपड़ों में महिलाएं और पोलो शर्ट में पुरुष अपने वाइन ग्लास को पकड़े हुए, सदियों पुरानी पूजित मूर्तियों के बगल में खड़े हैं। यह सब देखकर विजय कुमार अविश्वास और पीड़ा से भरकर अपनी आँखें मसलने लगते हैं।
अभी तय करना है लंबा रास्ता
अपने सभी प्रयासों के बावजूद विजय कुमार कहते हैं कि, “प्राचीन मूर्तियों की तस्करी इतनी व्यापक है कि उनके सब प्रयास मिलाकर भी चोरी गयी कलाकृतियों का छोटा सा अंश भी वापिस नहीं पा सके हैं। लेकिन 100 में से एक को ढूंढ निकालना भी अपने आप में एक बहुत बड़ी संतुष्टि देता है। यह वन्यजीवों की तस्करी के समान है, जब खरीदारी बंद हो जाती है, तो शिकार भी बंद हो जाता है। इसलिए दुनिया भर में नए कानूनों द्वारा यह साबित करने की जिम्मेदारी खरीदार पर डाली जा रही है कि अमुक कलाकृति कानूनी रूप से हासिल की गई है। ऐसे सख्त कानून ही तस्करी को रोक सकते हैं।”
विजय कुमार ने अपनी किताब “द आइडल थीफ” में कलाकृति चोरी का विस्तृत विवरण दिया है। उन्होंने अपनी पुस्तक में बताया है कि भारत से चुराई गयी कलाकृतियों में से कुछ तो 15-16 टन जितनी भारी हैं। इन्हें कंटेनरों में भरकर पीतल के बर्तन और बगीचे के फर्नीचर कहकर समुद्री मार्ग से ले जाया जाता है। लंबे समय तक इसकी परवाह न करने से भारत अरबों की सम्पदा खो चुका है, लोगों को औद्योगिक पैमाने पर की जा रही इस लूट की सीमा का अंदाज़ा ही नहीं है।
कुछ चुराई गई प्राचीन मूर्तियाँ नकली रेप्लिका से बदल दी जाती हैं। विजय कुमार ने सत्य घटनाओं पर लिखी गयी अपनी इस 225-पृष्ठ की पुस्तक में लूटी गई भारतीय मूर्तियों और कलाकृतियों को ढूँढने, पहचानने, और वापिस पाने के अपने साहसिक कार्य को कानूनी प्रक्रिया के विवरण सहित संकलित किया है।
कुमार कहते हैं ट्रैकिंग से बचने के लिए, चेन्नई, मुंबई, कोलकाता और हांगकांग से न्यूयॉर्क और लंदन के साथ-साथ अन्य अंतरराष्ट्रीय गंतव्यों तक विशाल प्राचीन मूर्तियाँ भेजने के लिए समुद्री आवागमन के मार्ग बदल दिए गए हैं और इसके लिए छोटे बन्दरगाहों का उपयोग किया जा रहा है। छोटी कलाकृतियों को तो सीधा ही कोरियर कर दिया जाता है।
कुमार के अनुसार, इन चोरी के पुरावशेषों के लिए अमेरिका सबसे बड़ा बाजार है, इसके बाद ब्रिटेन का नम्बर आता है और अब तो ऑस्ट्रेलिया में भी यह तेजी से बढ़ रहा है। इन चोरी गयी कृतियों को खुली सीमाओं वाले यूरोप में ट्रैक करना सबसे मुश्किल होता है, वहीं जर्मनी जैसे कुछ देश प्राचीन वस्तुओं को बचाने के लिए सख्त कानून बनाने में लगे हैं।
भारत को भी अपनी प्राचीन कलाकृतियों की रक्षा के लिए शक्तिशाली कानूनों की बेहद जरूरत है। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में चोरी की गई लगभग सभी भारतीय कलाकृतियां बिना दस्तावेजों के हैं जिनके कोई सरकारी रिकॉर्ड भी नहीं हैं, इसलिए उन्हें सत्यापित करना एक टेढ़ी खीर बन जाता है। कई मूर्ति चोरों और तस्करों की गिरफ्तारी में अहम भूमिका निभाने वाले विजय कुमार को इसका बड़ा खेद है।
प्राचीन कलाकृतियों की वापसी के सन्दर्भ में भारत और विदेशों के कानूनों की तुलना से पता चलता है कि इटली सख्त कानूनों द्वारा अपनी कलाकृतियों की रक्षा करने में सबसे आगे है, इटली ने 2012 से अब तकअपनी 378,000 कलाकृतियों की रक्षा की है, जबकि भारत 2012 से अब तक मात्र कुछ दर्जन कलाकृतियों को ही बचा पाया है, जो तुलनात्मक रूप से बहुत कम है।