26 दिसम्बर, 2022 की सुबह केन्द्रीय जाँच एजेंसी (CBI) ने वीडियोकॉन समूह के संस्थापक वेणुगोपाल धूत को गिरफ्तार किया। इससे पहले 23 दिसम्बर, 2022 को सीबीआई ने आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व एमडी और सीईओ चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर को गिरफ्तार किया था।
इस समय दोनों दम्पत्ति सीबीआई रिमाण्ड में हैं क्योंकि दोनों ने पूछताछ के दौरान सहयोग नहीं किया।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला आईसीआईसीआई बैंक द्वारा 2012 में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के नेतृत्व वाले कंसोर्टियम (संघ) के हिस्से के रूप में वीडियोकॉन समूह को दिए गए कर्ज और न्यूपावर रिन्यूएबल्स प्राइवेट लिमिटेड नामक एक फर्म में स्वामित्व परिवर्तन के इर्द-गिर्द घूमता है।
वर्ष 2018 में चंदा कोचर को अपने कार्यकाल के दौरान बैंकिंग अनियमितता और धोखाधड़ी के मामले में संलिप्त पाए जाने के बाद आईसीआईसीआई बैंक और उसके सभी सब्सिडियरी संस्थाओं से इस्तीफा देना पड़ा। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत इस मामले में पहली एफआईआर वर्ष 2018 में दर्ज़ की गई थी।
आरोप है कि चंदा कोचर द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान कुछ कंपनियों को आरबीआई के नियमों के विरुद्ध अवैध तरीके से लोन दिया गया था। इनमें वीडियोकॉन इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, सुप्रीम एनर्जी, वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड, न्यूपॉवर रिन्यूएबल्स लिमिटेड शामिल हैं।
गौरतलब है कि इन कंपनियों में से एक न्यूपॉवर रिन्यूएबल्स लिमिटेड का संचालन स्वयं चंदा कोचर के पति दीपक कोचर द्वारा किया जा रहा था।
सीबीआई ने चंदा कोचर, उनके पति दीपक कोचर, वीडियोकॉन समूह के संस्थापक वेणुगोपाल धूत और आईसीआईसीआई बैंक के अधिकारियों के खिलाफ नियमों का उल्लंघन करते हुए क्रेडिट सुविधाओं की मंजूरी के लिए प्राथमिकी दर्ज की थी। इससे आईसीआईसीआई बैंक को ₹1,730 करोड़ का नुकसान हुआ।
चंदा कोचर की भूमिका
वर्ष 2009 से 2011 के बीच चंदा कोचर के कार्यकाल के दौरान आईसीआईसीआई बैंक द्वारा वीडियोकॉन समूह को ₹1,875 करोड़ का लोन दिया गया था। बदले में वीडियोकॉन समूह के द्वारा न्यूपॉवर रिन्यूएबल्स लिमिटेड और सुप्रीम एनर्जी नामक दो नवीकरणीय ऊर्जा आधारित कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट दिया गया।
गौरतलब है कि सुप्रीम एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की स्थापना वीडियोकॉन के संस्थापक वेणुगोपाल धूत द्वारा ही की गई थी। वहीं न्यूपॉवर रिन्यूएबल्स लिमिटेड का संचालन चंदा कोचर के पति दीपक कोचर के द्वारा किया जा रहा था और इसके पहले डायरेक्टर्स दीपक कोचर के अलावा वी.एन. धूत और सौरभ धूत भी शामिल थे, जिन्होंने बाद में इस्तीफा दे दिया था।
मार्च, 2012 में आईसीआईसीआई बैंक द्वारा इन कंपनियों को दिए गए लोन को एनपीए (नॉन-परफार्मिंग एसेट्स) घोषित करने के बाद उनकी भूमिका संदेह के घेरे में आ गई।
मार्च, 2009 में चंदा कोचर द्वारा आईसीआईसीआई बैंक की कमान सँभालते ही अगले दो-ढाई वर्षों में ही वीडियोकॉन समूह उससे जुडी सब्सिडियरी कंपनियों को भारी-भरकम लोन दिए गए। इनमें मिलेनियम एप्लायंसेज इंडिया लिमिटेड (₹175 करोड़), वीडियोकॉन इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (₹300 करोड़), स्काई अप्प्लाइंसेस लिमिटेड (₹240 करोड़), टेक्नो इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (₹110 करोड़), अप्प्लीकॉम्प इंडिया लिमिटेड (₹300 करोड़) और वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज (₹750 करोड़) शामिल हैं।
हालाँकि, सीबीआई फरवरी 2019 तक यह तय नहीं कर पाई थी कि यह लोन किसी वित्तीय लाभ (quid pro quo) के लिए दिए गए हैं अथवा इसका कारण धोखाधड़ी, वित्तीय अपराध और भ्रष्टाचार है।
नियमों के मुताबिक चंदा कोचर को ‘हितों के टकराव’ को देखते हुए लोन पास करने वाले सलाहकार समूह से स्वयं को अलग कर लेना चाहिए था लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और आरबीआई के नियमों के विरुद्ध जाकर यह लोन दिए गए। इस कारण सीबीआई चंदा कोचर को जिम्मेदारी तय करते हुए, इस वित्तीय अपराध में भागीदार होने का दोषी मान कार्रवाई कर रही है।
इस लेन-देन में लोन अमाउंट को जानबूझकर एक से दूसरी कंपनियों में निवेश या ट्रांसफर किया जाता रहा और बैंक द्वारा बाद में इसे एनपीए घोषित कर दिया गया। यहाँ स्पष्ट हो जाता है कि इस लोन फ्रॉड केस में चंदा कोचर की स्पष्ट भूमिका रही है।
वीडियोकॉन लोन फ्रॉड और बैंक की गिरती साख
वर्ष 1993 में केन्द्रीय बैंक आरबीआई द्वारा कमर्शियल बैंकों को नियमित करने के लिए एक नए पर्यवेक्षण विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ़ सुपरविज़न) की स्थापना की। इसके साथ ही कुछ नई-पीढ़ी के प्राइवेट बैंक स्थापित करने की मंज़ूरी दी गई। जिसके बाद मौजूदा दौर के बड़े प्राइवेट बैंकों की स्थापना की गई थी, इनमें एक्सिस बैंक (यूटीआई बैंक), एचडीएफसी बैंक, इंडसलैंड बैंक, आईसीआईसीआई बैंक आदि शामिल थे। उस समय देश के जाने-माने बैंकर और फाइनेंसियल एक्सपर्ट केवी कामथ ने आईसीआईसीआई बैंक की स्थापना की थी। इनके कार्यकाल में आईसीआईसीआई बैंक ने निजी क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक तक का सफर तय किया था।
वर्ष 2009 केवी कामथ की सेवानिवृति, हालाँकि वर्ष 2015 तक वे इसके चेयरमैन के पद पर बने रहे, के बाद चंदा कोचर ने देश के तत्कालीन सबसे बड़े प्राइवेट बैंक की सबसे कम उम्र की सीईओ बनने की उपलब्धि हासिल की थी। चंदा कोचर जिसका नाम देश के सबसे प्रतिष्ठित और सफल महिला बैंकर्स में से एक था और कभी अमेरिकी बिजेनस मैगजीन फोर्ब्स की भारत में सबसे ताकतवर महिलाओं की सूची में भी शुमार हुआ करती थी।
बैंक द्वारा शुरुआती आंतरिक जाँच में चंदा कोचर को क्लीनचिट दे दी गई थी लेकिन बाद में बढ़ते विवाद को देखते हुए बैंक बोर्ड द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अगुआई में एक जाँच पैनल का गठन किया गया था। हालाँकि, इसके बावजूद आरबीआई और सेबी (प्रतिभूति और वित्त का नियामक बोर्ड) द्वारा इसकी जाँच सीबीआई और ईडी को सौंप दी गई।
इसके अलावा मार्च, 2018 में चंदा कोचर को आर्थिक भगोड़ा मेहुल चोकसी के गीतांजलि समूह को भी लोन देने के मामले में मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉर्पोरेट अफेयर्स के अंतर्गत सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टीगेशन ऑफिस -एसएफआईओ द्वारा समन किया गया था।
एक समय तक आईसीआईसीआई बैंक देश का सबसे बड़ा प्राइवेट बैंक हुआ करता था। बाद में एचडीएफसी बैंक ने इसे पछाड़ कर यह मुक़ाम हासिल कर लिया। चंदा कोच के सीईओ और एमडी के रूप में कार्य करते हुए आईसीआईसीआई बैंक का वार्षिक लाभ तो बढ़ा लेकिन साथ ही एनपीए जो वर्ष 2009 में लगभग ₹9,416 करोड़ था, वह बढ़कर दिसम्बर, 2017 तक ₹46,038 करोड़ हो गया। बावजूद इसके वर्तमान में निजी क्षेत्र की दूसरा सबसे बड़ा बैंक है लेकिन इस लोन घोटाले के बाद इसकी साख में जबरदस्त गिरावट हुई जिसका लाभ अन्य बैंकों ने उठाया।
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