जेद्दाह, सऊदी अरब के इस तटवर्ती शहर में किलोमीटरों तक फैले पुराने मुहल्लों को दर्जनों बुलडोजरों ने तेजी से ढहा दिया है। एक बहुत बड़े मलबे के ढेर से जेद्दाह पट गया है। इस साल की शुरुआत में, सऊदी अरब सरकार ने पर्यटकों और अमीर विदेशियों को आकर्षित करने के लिए देश के दूसरे सबसे बड़े शहर, जेद्दाह के पुराने रहवासों के पुनर्विकास के लिए 20 बिलियन डॉलर की परियोजना घोषित की थी। लेकिन इस योजना में गरीब तबके के सैकड़ों-हजारों लोगों के घर तोड़कर उन्हें विस्थापित किया जा रहा है।
प्रस्तावित योजना में खाली की गई जगहों पर लक्जरी गगनचुंबी इमारतें, मॉल, होटल, पार्क, ओपेरा हाउस, स्टेडियम, एक्वेरियम और म्यूजियम जैसे पर्यटनस्थल विकसित किए जाएँगे। एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा जारी सैटेलाईट गणना के अनुसार योजना में 60 मुहल्लों और 13,000 सॉकर फील्ड के बराबर इलाके को ध्वस्त किया जा रहा है, जो मानवाधिकारों का उल्लंघन है।
पिछले साल से शुरू हुए इस विध्वंस में बुलडोजरों ने पूरे पूरे मोहल्लों को उजाड़ दिया है। सोने के गहने बेचने के लिए मशहूर एक पुराना, विशाल बाजार पूरी तरह तोड़ दिया गया, जिससे कई हजार लोगों के रोजगार पर संकट आ गया।
बहुत से इलाकों में, घरों और दुकानों पर लाल स्प्रे-पेंट से एक अरबी शब्द “इखला” लिख दिया गया, यानि “खाली करो”। इस तरह सरकार ने लोगों को फतवा जारी कर दिया कि जल्दी से जल्दी ये इलाका छोड़ दो। कुछ जगह तो केवल एक सप्ताह या 24 घंटे के नोटिस पर लोगों को घर छोड़ने के लिए कह दिया गया।
सालों से बसे अप्रवासी खा रहे दर दर की ठोकरें
जेद्दाह को मुस्लिमों के पवित्र शहर मक्का का प्रवेश द्वार माना जाता है और, जेद्दाह सऊदी अरब की सबसे ज्यादा सांस्कृतिक विविधताओं वाला शहर माना जाता है। कई विदेशी मूल के लोग दशकों पहले मक्का की हजयात्रा के लिए यहाँ आए और यहीं बस गए। पर यह इलाका अब जल्द ही ढहने वाला है।
यहाँ सूडान के आप्रवासियों से भरा एक प्रसिद्ध कॉफीहाउस है। जहाँ तुर्की कॉफी की तरह बहुत सारी अदरक डालके मसालेदार कॉफी बनती है। पर यहाँ की सूडानी कॉफी, सूडानी कुजीन और सूडानी कपड़ों की दुकानों समेत आसपास की हर चीज जल्द ही ढहा दी जाएगी।
MBS के नेतृत्व में तेजी से बदल रहा सऊदी अरब
सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने अपनी इस महत्वाकांक्षी विकास योजना को “विजन 2030” का नाम दिया है। उन्होंने देश में व्यापक सुधार पेश किए हैं। दशकों से आर्थिक समृद्धि का मजा उड़ा रहे अरब को अब तेल खत्म होने का डर सता रहा है। इसलिए MBS अब सऊदी अरब की तेल पर निर्भर अर्थव्यवस्था को पर्यटन, खनन, सर्विस जैसी अन्य आर्थिक गतिविधियों पर निर्भर बनाना चाहते हैं ताकि 40 से 50 साल में तेल के खत्म होने की संभावनाओं के बाद भी सऊदी अरब को किसी और का मुँह न देखना पड़े।
सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था में विविधता लाने के लिए MBS नाम से मशहूर क्राउन प्रिंस ने पिछले कुछ सालों में अभूतपूर्व परिवर्तन किए हैं। पर्यटन बढाने के लिए उन्होंने सऊदी में पहली बार सिनेमाघर खोलने व महिलाओं को कार ड्राइव करने और काम करने की अनुमति दी थी।
एक तरफ क्राउन प्रिंस इस्लामिक गणराज्य द्वारा नागरिक स्वतंत्रता पर कसी हुई नकेल को ढीला कर रहे हैं, इस्लाम में उदारवाद का समावेश कर रहे हैं तो दूसरी ओर किसी भी कीमत पर सुधार करने की जिद के लिए बिन सलमान ने आक्रामक और सत्तावादी दृष्टिकोण अपना रखा है।
सऊदी के कट्टरवाद पर भी चल रहा बुलडोजर
क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान ने विकास ही नहीं बल्कि अरब में सदियों से चलती आ रही कई इस्लामिक मान्यताओं और तौर तरीकों में फेरबदल कर दिया है। पिछले साल अपने एक इंटरव्यू में सलमान ने कहा था,
“सऊदी अरब सरकार कुरआन पर चलती है जिसके लिए हम प्रतिबद्ध हैं, हम इसे सर्वसमावेशी रूप में अमल कर रहे हैं। लेकिन सामाजिक और व्यक्तिगत मामलों में, हम केवल उन्हीं नियमों को लागू करेंगे जो कुरान में स्पष्ट रूप से बताए गए हों। इसलिए, मैं कुरान या सुन्नत में स्पष्ट प्रमाण के बिना शरिया की सजा को लागू नहीं कर सकता।”
बिन सलमान ने तरह तरह की हर हदीसों को मानने से भी इंकार कर दिया था, MBS ने कहा था कि, “हदीस कई तरह की हैं जैसे, मुतवतर, अहद और खबर हदीस। मुतवतर हदीस सीधे पैगंबर के समय से एक समूह से दूसरे समूह में चली आ रही हैं, ये संख्या में कम हैं पर इनकी सत्यता ज्यादा है, हालाँकि व्याख्याकारों ने समय और स्थान के अनुसार उनकी कई व्याख्या की हैं।
लेकिन अहद हदीसें पैगंबर से शुरू होकर समूह की बजाय एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को, या एक समूह से एक व्यक्ति को दी गईं। इसे फिर ‘सही’, ‘कमजोर’, या ‘अच्छी’ हदीस में बांटा गया, इसलिए ये मुतवतर हदीस जितनी प्रमाणिक नहीं हैं। जबकि “खबर” वह हदीसें हैं जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को एक अज्ञात स्रोत द्वारा सौंपी गईं, यह हदीसें बहुमत में हैं पर इनमें एक लापता लिंक होने की वजह से ये अविश्वसनीय हैं, और अपनी सत्यता प्रमाणित न होने तक बाध्यकारी नहीं हैं।
इसलिए, जहां तक शरिया की बात है, तो हम सरकारी स्तर पर केवल कुरान और ‘मुतवतर’ हदीसों को लागू करेंगे, ‘अहद’ हदीसों की सत्यता और विश्वसनीयता को जांचेंगे, और ‘खबर’ हदीसों को पूरी तरह छोड़ देंगे, जब तक कि उनसे मानवता को कोई स्पष्ट लाभ न मिलता हो। इसलिए कुरान में स्पष्ट न होने तक धार्मिक मामलों में कोई सजा नहीं होनी चाहिए, और वह सजा भी केवल उसी तरीके से लागू होगी जैसे पैगंबर ने उसे लागू किया था।”
इस तरह कोड़े और पत्थर मारने जैसी सजा देने वाले देश में बिन सलमान ने इस्लाम की बहुत सारी हदीसों को नकारकर तरह तरह की उदारवादी व्याख्याएँ पेश की थीं। इसी उदारवाद के आधार पर MBS ने पहली बार महिलाओं को कई तरह के अधिकार दिए हैं।
पर अभी भी सऊदी उदारवाद इतना बड़ा नहीं हुआ है कि सभी को समाहित कर सके। सऊदी में भारत से लेकर अन्य एशियाई देशों के अनेक धर्मों के लोग रहते हैं, पर अभी तक उन्हें अपने धर्मस्थल बनाने की इजाजत नहीं मिली है। जहाँ दूसरे अरबी देश UAE में पहली बार दो हिन्दू मंदिर बनने वाले हैं, वहीं सऊदी के हिन्दुओं को अभी भी एक मंदिर का इंतजार है।
पर्सनल फ्रीडम और आक्रामक सुधारों की दोधारी तलवार
सऊदी में जिस पैमाने और तरीके से यह सब सुधार हो रहे हैं, वह जनता के लिए परेशान करने वाले हैं। इस्लामिक सऊदी में सरकार की आलोचना करना बहुत महंगा सौदा रहा है, जिसमें सीधे जेल और उससे भी कड़ी सजाएं दी जाती रही हैं, पर पुरानी बस्तियों के जोरदार विध्वंस के बाद सऊदी में ऑनलाइन हंगामा खड़ा हो गया जिसमें सरकार की जमकर आलोचना हुई।
2018 में, सऊदी के खूफिया एजेंटों ने एक ऑपरेशन में सऊदी के आलोचक जमाल खशोगी की हत्या कर दी थी, जिसपर अमेरिकी खूफिया विभाग ने कहा था कि यह क्राउन प्रिंस के इशारे पर किया गया है। इसलिए सऊदी जनता सरकारी नीतियों पर मौन ही रहती आई है, लेकिन विध्वंस के बाद पहली बार सऊदी अरब की आम जनता ने जोरदार ऑनलाइन हंगामा कर दिया था।
जनता के इस आक्रोश के बाद सरकार ने बेदखल किए गए लोगों को मुआवजे की पेशकश की – पर केवल सऊदी नागरिकों के लिए। विस्थापितों में आधी आबादी सूडानी और अन्य विदेशी अप्रवासियों की है, जिन्हें कुछ भी नहीं मिलेगा।
शहर छोड़कर गाँव जाने पर मजबूर हुए लोग
कुछ लोग इन मुहल्लों में एक दशक से ज्यादा समय से रह रहे थे। पर पहले तो अचानक उनके बिजली पानी के कनेक्शन काट दिए गए और फिर उन्हें सात दिनों के भीतर खाली करने का नोटिस थमा दिया गया। कई किलोमीटर तक फैले इन मुहल्लों के विनाश के कारण जेद्दाह में अपार्टमेंट और घरों की कमी हो गई है, जिससे किराया आसमान छू रहा है।
इतने महँगे किराए को ज्यादातर लोग नहीं उठा सकते इसलिए वो शहर छोड़कर गाँवों, कस्बों में जा रहे हैं। ज्यादातर गाँव सऊदी अरब के दक्षिणी पहाड़ी इलाकों में हैं, जहाँ स्कूलों, कॉलेजों और हॉस्पिटलों की कोई खास व्यवस्था नहीं है।