“मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं…लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?” ऐसा कहने वाले देश के पूर्व प्रधानमंत्री Atal Bihari Vajpayee को उनकी 100वी जयंती पर नमन।
देश उनकी जयंती पर सुशासन दिवस मनाता है। ऐसे में आइए विस्तार से समझते हैं कि क्या कारण है कि उनका जन्मदिन सुशासन दिवस बन गया? कैसे उन्होंने देश में सुशासन की नींव डाली और कैसे उनके आर्थिक सुधार इसका आधार बने।
समझिए, आज भले ही कांग्रेस पार्टी देश में आर्थिक सुधारों का क्रेडिट लेने के लिए दो चार कोस दूर तक चली जाती है पर सच यह है कि 1995 आते-आते पार्टी मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधारों से स्वयं को दूर करने लगी थी।
हालत यह थे कि 1996 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस इस बात को लेकर कन्फ्यूज़ थी कि उसे आर्थिक सुधारों की बात चुनावों में करनी चाहिए या फिर नहीं।
इसके विपरीत Atal Bihari Vajpayee के मन में और विचारों में आर्थिक सुधार की आवश्यकता को लेकर किसी तरह का संशय नहीं था। वे यह बात मानते थे कि देश को आर्थिक सुधारों की आवश्यकता है और उन्होंने सरकार बनाने के बाद वही किया।
सरकार बनाने के बाद 1999 में वे नेशनल टेलीकॉम पॉलिसी लेकर आए और प्राइवेट कंपनियों की टेलीकॉम मार्केट में एंट्री का रास्ता खोला।
प्राइवेट कंपनियों के आने से बड़े स्तर पर निवेश आया, बड़े स्तर पर टेलीकॉम सेक्टर में सुधार हुए। कॉल टैरिफ कम होने के साथ ही गुणात्मक सुधार भी आया। इसके साथ ही टेलीकॉम पॉलिसी को रेगुलेट करने के लिए TRAI को भी मजबूती प्रदान की गई।
देश के वित्तीय सेक्टर में अटल जी ने अभूतपूर्व बदलाव किए। ऐसे बदलाव जिनकी पहले की सरकारों ने कल्पना भी नहीं की थी। उन्होंने देश में वित्तीय अनुशासन स्थापित करने के लिए Budget Management कानून लागू किया।
इस कानून का मुख्य उद्देश्य fiscal deficit को 3 प्रतिशत के अंदर रखना था। इसके साथ ही कानून से पारदर्शी fiscal management systems की शुरुआत हुई। इससे देश की वित्तीय व्यवस्था से संबंधित जवाबदेही और जिम्मेदारी को भी तय किया गया।
Atal Bihari Vajpayee दिल से कवि और पेशे से राजनेता थे लेकिन अपने कामों से वे महान सुधारवादी थे। उन्होंने देश के स्टॉक मार्केट में इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग के इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए बड़े सुधार किए।
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2002 में उन्होंने ही stock exchange में प्रशासनिक सुधार किए जिसका परिणाम यह हुआ कि स्टॉक एक्सचेंज के ओनरशिप और ट्रेडिंग राइट्स अलग-अलग हो गए। इससे स्टॉक मार्केट के इतिहास में न सिर्फ गर्वनेंस बल्कि ट्रांसपेरेंसी का भी नया अध्याय शुरु हुआ। उन्होंने SEBI को भी मजबूत किया।
अटल जी लंबे समय तक विपक्ष में रहे फिर भी उन्हें सत्ता का कोई लोभ नहीं था। उन्हें सरकार में बने रहने या फिर सरकार से बाहर रहने से रत्ती भर फ़र्क नहीं पड़ता था। तभी तो वे कहते थे कि सरकारें आएंगी जाएंगी लेकिन ये देश रहना चाहिए।
देश के प्रति उनकी यही भावना थी जो उन्होंने ऐसे-ऐसे सुधार किए जिनसे पहले की सरकारें पीछे हट गईं थी। विनिवेश की शुरूआत तो कांग्रेस सरकार ने की थी लेकिन जैसे ही उन्होंने देखा कि उनके वोटर इसको लेकर ख़ुश नहीं हैं, वे इससे पीछे हट गए लेकिन अटल जी नहीं हटे। अटल जी ने देश को आगे ले जाने के लिए अपने तमाम आर्थिक सुधारों में एक बड़ा काम विनिवेश का भी किया।
उन्होंने अपनी सरकार के कार्यकाल में कई सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश किया था। विदेश संचार निगम लिमिटेड, मारूति उद्योग, भारत एल्युमिनियम, हिंदुस्तान जिंक, इंडियन पेट्रोकेमिकल्स और मॉडर्न फूड इंडस्ट्री समेत तमाम कंपनियों को उन्होंने प्राइवेट सेक्टर के हाथों में दे दिया था।
सिर्फ इतना ही नहीं PSUs के विनिवेश के लिए उन्होंने एक अलग मंत्रालय ही बना दिया था। जिसको विनिवेश मंत्रालय का नाम दिया गया था। अरुण शौरी पहले विनिवेश मंत्री बने थे।
इस तरह देखें तो ये सही मायनों में सुशासन था। आज अमेरिका में ट्रंप या फिर उनके सहयोगी इलॉन मस्क जो मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस की बात करते हैं, ये काम अटल जी 1999 में कर रहे थे।
इसलिए कहते हैं कि Atal Bihari Vajpayee की राजनीति पर, अटल जी के व्यक्तित्व पर तो बात हुई है लेकिन उनके आर्थिक सुधारों पर उतनी बात नहीं हुई जितनी होनी चाहिए थी।
उन्होंने ही टैक्स सिस्टम में सुधार कर उसे सरल बनाने की शुरूआत की थी। उन्हीं के कार्यकाल के दौरान पहली बार GST का फ्रेमवर्क तैयार किया गया था।
सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि 2004, जब तक वे सरकार में थे तब तक देश में सरकार की फाइनेंसिंग को लेकर जिस अनुशासन की आवश्यकता थी, उसे लेकर सरकार पहली बार गंभीर दिखाई दी।
उनकी ही सरकार में पहली बार देश की केंद्र सरकार का बजट दस लाख करोड़ का हुआ। उनकी सरकार के समय फिस्कल मैनेजमेंट का स्तर यह था कि केंद्र सरकार के खर्चे का बड़ा हिस्सा, जो लगभग 67 प्रतिशत था, सरकार के इंटरनल रेवेन्यू यानी टैक्स कलेक्शन से होता थी और लगभग 33 प्रतिशत कर्ज से होती थी। इन आंकड़ों का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि यूपीए सरकार के काल में यह आंकड़ा सहसा उल्टा हो गया।
Atal Bihari Vajpayee ने ऐसे तमाम छोटे-बड़े आर्थिक सुधार किए और यही कारण है कि 2004 में जब वे सरकार से बाहर हुए तब देश की आर्थिक वृद्धि दर लगभग 8 प्रतिशत थी और इन्फ्लेशन 5 प्रतिशत से भी नीचे। अब आप समझ गए होंगे कि क्यों उनके जन्मदिवस को सुशासन दिवस के तौर पर देश मनाता है।
एक बात हम आपको फिर से याद दिलाना चाहते हैं कि अटल जी का व्यक्तित्व इतना बड़ा है कि उन्हें किसी भी एक क्षेत्र तक सीमित करना संभव नहीं है और उनके सभी आयामों पर एक साथ बात करना भी संभव नहीं है।
हमने उनके आर्थिक सुधारों पर बात की, सुशासन पर बात की लेकिन देश के लिए उन्होंने जो काम किए वो अपने आप में एक अलग इतिहास है।
स्वर्णिम चतुर्भुज योजना, किसान क्रेडिट कार्ड योजना, सर्वशिक्षा अभियान, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना और दिल्ली मेट्रो की नींव रखने समेत उनके ऐसे तमाम काम हैं जिन्होंने देश के आम लोगों को विकास का सही अर्थ समझाया।
यह भारत जैसे बड़े देश के लिए आश्चर्य की बात थी कि पहली बार किसी सरकार ने यह सोचा कि भारत के गांवों को भी सड़कों की आवश्यकता है। अटल जी ने दिखाया कि सुशासन से कैसे बदलाव लाया जा सकता है और उन्हीं के विज़न पर 2014 से पीएम मोदी चलते दिखाई दे रहे हैं।
यही कारण है कि देश में पीएम मोदी ने भी तमाम बड़े आर्थिक सुधार किए हैं और उनके कार्यकाल में भी देश की अर्थव्यवस्था कुलांचे भर रही है। देश पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था मोदी जी के समय ही बना है।
इसके साथ ही जनधन योजना, आयुष्मान योजना, गतिशक्ति योजना, GST और हर घर नल जैसी योजनाओं से पीएम मोदी भी अटल जी की खींची हुई सुशासन की लकीर को और बड़ा करते दिखाई दे रहे हैं।
केंद्र में तो भाजपा और एनडीए की सरकारों ने सुशासन का मॉडल दिया ही है इसके साथ ही राज्यों में भी जहाँ भाजपा या फिर एनडीए की सरकार लंबे समय तक शासन में रही है वहाँ सुशासन ही सरकार की पहचान बनती दिखाई दी है। गुजरात, मध्य-प्रदेश, गोवा और अब हरियाणा, उत्तर-प्रदेश इसके बड़े उदाहरण हैं।
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अटल जी ने सुशासन की जो परंपरा डाली उसे सभी भाजपा, एनडीए सरकारें आज आगे ले जाती दिखाई दे रही हैं। मजे कि बात ये है कि आज सुशासन की राजनीति ने परसेप्शन की पॉलिटिक्स का दायरा कम कर दिया है।
आज वास्तविकता को देखकर देश की जनता वोट देती है, परसेप्शन के आधार पर नहीं। केंद्र की मोदी सरकार ने सुशासन से सरकार चलाई। लोगों के घर नल से जल पहुंचाया, अन्न पहुंचाया, इलाज पहुंचाया, बिजली पहुंचाई, गैस सिलेंडर पहुंचाया उन्हें बैंकिंग सिस्टम से जोड़ा तो लोग बार-बार पीएम मोदी को चुन रहे हैं।
दूसरी तरफ राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी तमाम तरीकों से परसेप्शन क्रिएट करने का प्रयास करती है और लंबे समय से करती आई है। इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा देकर ये परसेप्शन बनाने का प्रयास किया कि वे गरीबी हटाने के लिए गंभीर हैं।
राहुल गांधी ने चुनाव के दौरान पैसे बांटने का फॉर्म भरवाकर दोबारा से यह परसेप्शन बनाने का प्रयास किया कि वे भी गरीबी हटाने के लिए गंभीर हैं लेकिन वास्तविकता में नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले लगभग 9 साल में लगभग 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर पीएम मोदी ने निकाला है।
ये वास्तविकता है और इसी वास्तविकता पर लोग सरकारें चुनते दिखाई दे रहे हैं। लोगों के अंदर यह विश्वास सुशासन से आता है, जिसकी नींव Atal Bihari Vajpayee ने रखी थी और आज भाजपा और एनडीए उसका पर्याय बनती दिखाई दे रही हैं।