आज ब्रज में होली रे रसिया, होली रे रसिया
बरजोरी रे रसिया, होरी रे रसिया
आज ब्रज में होली रे रसिया
सिर्फ ब्रज ही क्यों, होली एक ऐसा त्योहार है जो भारत के हर एक कोने में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। होली रंगों का त्योहार है, हुड़दंग, बचपना, अठखेलियों का त्योहार है। एक ऐसा त्योहार है जो दुश्मनों को भी गले लगाने की इजाजत देता है।
होली परिवार, दोस्तों, गुजिया और मिठाइयों का त्योहार है। मुझे आज भी याद है होली के एक दिन पहले पिताजी हम सब के लिए रंग बिरंगी पिचकारी लेकर आते थे और वे हमारे हाथों में पिचकारी थमा कहते थे “होली है, जाओ खूब खेलो और खूब खाओ।”
होली हमें वसंत के आगमन की याद दिलाता है। नए फूलों के आने और पुराने पतझड़ को अलविदा कहने की भी याद दिलाता है।
खैर ये तो हुई होली की अच्छी बात। भला किसे होली खेलना और रंगो में सराबोर होना पसंद नहीं होगा। परन्तु क्या हम उस हिस्से की बात करते हैं, जहां होली खेली ही नहीं जाती है। इसे दुर्भाग्य कहें या कुछ और लेकिन इसमें किसी का बस नहीं चलता।
आइये, जानते हैं उन स्थानों को जहाँ होली नहीं मनाई जाती है।
रुद्रप्रयाग
उत्तराखंड में स्थित रुद्रप्रयाग जिले में क्वीली और कुरझण जैसे गाँव है जहाँ लगभग 150 वर्षों से होली नहीं मनाई गई है और आज भी नहीं मनाई जाती है। वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है।
ऐसी मान्यता है कि इस क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी त्रिपुर सुंदरी को शोरगुल और हो-हल्ला पसंद नहीं है इसीलिए स्थानीय लोगों ने शान्ति को स्वीकार करते हुए होली जैसे त्योहार को शांतिपूर्वक मनाने का प्रण लिया है।
कुछ स्थानीय लोगों का यह भी मानना है कि 400 साल पहले देवी त्रिपुर बाला सुंदरी द्वारा दिए गए शाप के कारण त्योहार मनाने से ग्रामीणों को कष्ट हो सकता है, जोकि हमेशा से रंगो और शोर गुल से दूर रहना चाहती थीं।
ऐसा माना जाता है कि जो इस रिवाज को नहीं मानता है, उसे कष्ट झेलना पड़ सकता है। इसी डर और अतीत में हुए हादसों के कारण लोग अब इस रिवाज को अपना चुके हैं।
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रामसन
गुजरात के बनासकाठा जिले में रामसन गांव है। ऐसा कहा जाता है कि इस गाँव में 200 वर्षों से होली नहीं मनाई गई है। इसका कारण है, गांव में एक संत द्वारा दिया गया शाप।
गांव का नाम भगवान राम के नाम पर रखा गया है। कहा जाता है कि भगवान राम इस स्थान पर आए थे।
दुर्गापुर
झारखण्ड का दुर्गापुर भी शाप के कारण होली नहीं खेलता है।
झारखण्ड के बोकारो कसमार प्रखंड के दुर्गापुर गांव के लोगों ने लगभग 100 वर्षों से भी अधिक समय से होली नहीं खेली है।
मान्यता के अनुसार, इस गांव के एक राजा जिनके पुत्र की मृत्यु होली के ही दिन हुई थी और राजा की मृत्य भी होली के ही दिन हुई थी। राजा ने मरने से पहले अपनी प्रजा को होली ना खेलने का आदेश भी दिया था। आज भी राजा के आदेश का पालन यह गाँव कर रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जिन्हें होली खेलनी हो वे किसी और गांव में जाकर होली खेल सकते हैं, परन्तु गांव के भीतर होली खेलना वर्जित है।
तमिलनाडु
उत्तर भारत के मुकाबले तमिलनाडु में होली का चलन बेहद कम है।
हालाँकि, होली पूर्णिमा के दिन तमिलनाडु मासी मागम मनाता है। ऐसा माना जाता है कि यह एक पवित्र दिन है क्योंकि दिव्य प्राणी और पूर्वज पवित्र नदियों, तालाबों और पानी के टैंकों में डुबकी लगाने के लिए धरती पर उतरते हैं।
हालाँकि यहाँ पर्यटकों के लिए होली और पार्टी का आयोजन किया जाता है।
भारत विविध मान्यताओं का देश है और सभी की मान्यताओं का सम्मान होना चाहिए। होली ना मनाने वाले लोगों की मान्यताओं और परंपरा का भी।
शुभ होली।
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