विश्व कप के अपने पहले मुकाबले में स्पेन पर मिली जीत की लय को आज भारतीय हॉकी टीम इंग्लैंड से होने वाले मुक़ाबले में भी बनाए रखना चाहेगी। अगर ऐसा होता है तो भारतीय टीम इंग्लैंड पर विश्व कप में 29 साल बाद जीत दर्ज करेगी।
भारत और इंग्लैंड विश्व कप के इतिहास में अब तक कुल 8 बार आमने सामने आए हैं। इनमें भारत ने 3 बार (साल 1975, 1982 और 1994 में) इंग्लैंड पर जीत दर्ज की है, जबकि इंग्लैंड ने ( साल 2002, 2006, 2010 और 2014 में) जीत हासिल की है। इसके बीच दोनों के मध्य एक मैच साल 1978 में ड्रॉ रहा था।
वो एक ऐसा मिडफील्डर है जिसे अमूमन गोल स्कोर करने के लिए नहीं जाना जाता है। उसका काम तो है कि मैदान के बीचोबीच रहकर साथी फारवर्ड्स के लिए विरोधी गोल पोस्ट पर अटैक करने के मौके बनाए और साथ ही साथ, विरोधी टीम जब भी अटैक करने की मंशा से गेंद लेकर आगे बढ़े तो उनके अटैक्स को मैदान के बीच के इलाके में ही ध्वस्त कर दिया जाए।
मुकाबला विश्व की टॉप आठ में से दो टीमों के मध्य था तो मैच निश्चित तौर पर काफी कांटे का होना ही होना था। मगर बीती रात भी वह लगातार साथी फारवर्ड्स के लिए गोल स्कोर करने के मौके बनाता रहा। बारंबार जब फॉरवर्ड लाइन गोल करने के कई मौके गंवाती रही तो, हाफ टाइम से कुछ ही समय पूर्व, मैच के छब्बीसवें मिनट में मैदान की हाफ लाइन से वह स्वयं गेंद को लेकर आगे बढ़ा। अकेले ही आगे बढ़ते हुए उसने चार विरोधी डिफेंडरों को चकमा दिया, फिर चुपचाप अपनी स्टिक से उसने गेंद को विपक्षी गोल पोस्ट के भीतर सरका दिया।
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इस गोल के साथ ही स्कोर 2-0 हो चला था। कमंटेटर युवा मिडफील्डर द्वारा अप्रत्याशित तरीके से लगाए गोल का गौरवगान गा रहे थे और संपूर्ण स्टेडियम खुशी से झम रहा था। दर्शक ठीक यही तो देखना चाहते थे।
विश्व में छठी रैंक की टीम भारत का राउरकेला के बिरसा मुंडा स्टेडियम में पिछली रात सामना था स्पेन की टीम से और पहले उड़ीसा के ही अनुभव के धनी अमित रोहिदास व फिर उदीयमान मिडफील्डर हार्दिक सिंह के बेहतरीन गोलों के बदौलत कल रात भारत ने हॉकी विश्व कप में अपना आगाज जीत के साथ किया। ग्रुप डी के इस मुकाबले को जीत कर भारतीय टीम ने तीन जरूरी अंक भी अर्जित कर ली।
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गौरतलब है कि 2022 के टोक्यो ओलंपिक्स में शानदार हॉकी खेलते हुए भारतीय टीम ने कांस्य पदक जीत कर संपूर्ण राष्ट्र को झूमने का अवसर प्रदान किया था। यह इसलिए भी खास था क्योंकि जादूगर मेजर ध्यानचंद जैसे खिलाड़ी का देश कुछ वर्षों पूर्व ओलंपिक्स व विश्व कप आदि टूर्नामेंट्स में क्वालिफ़ाई करने तक के लिए संघर्ष करता नजर आने लगा था।
विश्व कप के इतिहास की बात करें तो ओलंपिक के अपने स्वर्णिम इतिहास के इतर हॉकी विश्व कपों में अमूमन भारतीय टीम का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहता। 1971 में बार्सिलोना में खेले गए पहले विश्व कप में भारत ने कांस्य तथा उसके अगले विश्व कप में रजत पदक जीता था। परन्तु उसके बाद ट्रॉफी जीतना तो दूर भारतीय टीम कभी पोडियम पर भी नहीं चढ़ सकी। हॉकी विश्व कप में भारत का प्रदर्शन कभी ज्यादा अच्छा नहीं रहा।
दरअसल साठ सत्तर के बाद हॉकी में भारत की जो भीमकाय छवि थी वो धूमिल होती चली गई। वैश्विक हॉकी के लगातार यूरोपीय राष्ट्रों को केंद्र में रख कर बदले नियम व भारतीय सरकारों का हॉकी व अन्य खेलों को लगातार बढ़ावा न देने की नीति इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं।
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इस सब के बीच पिछले एक दशक में नमिता टोप्पो, बिरेंद्र लाकड़ा, टिर्की बंधुओं, रोहिदास, दीप एक्का जैसे कई विश्वस्तरीय खिलाड़ी देने वाले राज्य ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने अकेले भारतीय हॉकी के लिए निष्पक्ष भावना के साथ काफी सराहनीय कार्य किया है। ओडिशा न सिर्फ मुश्किल समय में भारतीय हॉकी का स्पांसर बना बल्कि रिकॉर्ड समय में राउरकेला में बीस हजार दर्शक क्षमता वाला स्टेडियम, स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स, एयरपोर्ट व विश्व स्तरीय होटल आदि बनाए गए। यह उनकी दृढ़ संकल्प का ही नतीजा है कि भारत विश्व का पहला राष्ट्र बना जो लगातार दूसरी बार विश्व कप का आयोजन कर रहा है।
नवीन पटनायक जानते हैं कि क्रिकेट की तरह हॉकी कोई पैसे छापने की मशीन नहीं। फिर भी वो सदैव हॉकी के लिए खड़े रहते हैं। और यह उन जैसे नेतृत्व करने वालों के भगीरथ प्रयासों का ही नतीजा था कि गत वर्ष टोक्यो ओलंपिक्स में शानदार प्रदर्शन कर भारतीय टीम ने कांस्य पदक जीता था।
तेरह जनवरी से विश्व की टॉप सोलह टीमें ओडिशा में चल रहे हॉकी के महासमर में कूद चुकी हैं। सब टीमों का मकसद एक ही है- 2023 का हॉकी विश्व कप जीत ट्रॉफी को चूमना व हमेशा के लिए हॉकी के इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ना।
हम अपने राष्ट्र की टीम को मद्देनजर रखते हुए बात करें तो गत वर्ष टोक्यो में ओलंपिक में कांस्य जीती टीम के नायक रुपिंदर पाल सिंह व बिरेंद्र लाकड़ा के खेल को अलविदा कह देने ने टीम में एक शून्य भी पैदा किया ही है। मगर भारत के पास अब भी अनुभवी व युवा खिलाड़ियों का एक पूल है। भारत अपने पूल से अगले दौर के लिए तो क्वालिफ़ाई कर लेगी, मगर आगे कई दिग्गज टीमें उसका शिकार करने के लिए घात लगाए बैठी होंगी।
कोच ग्राहम रीड, जो अपने समय के बेहतरीन खिलाड़ी रहे हैं, जानते हैं विश्व कप में भारत की राह बिल्कुल भी आसान नहीं होगी मगर फिर भी उनकी चमकीली आंखों में एक ख्वाब है; भारत के संग विश्व कप जीतने का ख्वाब। जरूरत है कि बिन एक भी मैच देखकर कल उनका उपहास उड़ाने से पूर्व आज हम सभी कोच ग्राहम रीड की टीम का पूरा समर्थन करें।
हॉकी विश्व कप के अपने दूसरे मैच में भारतीय टीम आज रविवार (15 जनवरी) के दिन इंग्लैंड के खिलाफ उतरेगी (India vs England Hockey World Cup 2023)। यदि ‘पूल-डी’ के इस मुकाबले को टीम इंडिया जीत लेती है तो क्वार्टर फाइनल की राह आसान हो जाएगी।
विश्व कप के अपने पहले मुकाबले में स्पेन पर मिली जीत की लय को आज भारतीय हॉकी टीम इंग्लैंड से होने वाले मुक़ाबले में भी बनाए रखना चाहेगी। अगर ऐसा होता है तो भारतीय टीम इंग्लैंड पर विश्व कप में 29 साल बाद जीत दर्ज करेगी।
भारत और इंग्लैंड विश्व कप के इतिहास में अब तक कुल 8 बार आमने सामने आए हैं। इनमें भारत ने 3 बार (साल 1975, 1982 और 1994 में) इंग्लैंड पर जीत दर्ज की है, जबकि इंग्लैंड ने 4 बार ( साल 2002, 2006, 2010 और 2014 में) जीत हासिल की है। इसके बीच दोनों के मध्य एक मैच साल 1978 में ड्रॉ रहा था।
यदि ओवरऑल देखा जाए तो दोनों टीमों के बीच 21 मैच हुए हैं। इनमें से भारत ने 10 और इंग्लैंड ने 7 जीते। 4 मैच ड्रॉ रहे।साल 1975 हॉकी वर्ल्ड कप में पहली बार दोनों टीमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आमने-सामने भिड़ी थीं, जिसमें भारत ने जीत हासिल की थी।
रात रात जग फुटबॉल में ब्राज़ील, अर्जेंटीना, फ्रांस आदि का समर्थन भी तो करते ही हैं न हम। तो अपने राष्ट्रीय खेल के लिए हम इतना तो कर ही सकते हैं। विश्व कप का आगाज हो चला है। यह भारत में ही हो रहा है। चलिए अपनी टीम का जी जान से समर्थन करें।
लेट्स गो इंडिया, चक दे।