भारत की कमान प्रधानमंत्री के तौर पर वर्ष 2004 से 2014 तक सम्भालने वाले डॉ मनमोहन सिंह का आज 26 सितम्बर को जन्मदिन है। मनमोहन सिंह का जन्म विभाजन से पूर्व आज पाकिस्तान में पड़ने वाले इलाके चकवाल में हुआ था।
बंटवारे के बाद भारत आए सिंह अपनी शैक्षिक योग्यता के चलते विश्व के ख्यातिप्राप्त विश्वविद्यालयों कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड में पढ़ने गए, जहाँ से उन्होंने डिग्रियां और डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। अपनी योग्यता के चलते उन्हें जल्द ही सरकार की नौकरशाही की गलियों में जगह मिली और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के लिए भी काम किया।
इंदिरा गांधी की सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे मनमोहन सिंह को आगे चलकर रिजर्व बैंक का गवर्नर और भारत के वित्त मंत्री और अंततः प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी दी गई। अपने कार्यकाल में भीषण भ्रष्टाचार के प्रति आँखें मूंदे रखने वाले मनमोहन सिंह की सरकार में हर मंत्री का अपना एक अलग ध्रुव था।
जहाँ एक ओर सोनिया गांधी पूरी सरकार को एक सिख प्रधानमंत्री के नाम पर रिमोट कंट्रोल से चलाती थीं, वहीं उनके मंत्री पूरे व्यापार जगत से सांठ-गाँठ कर सरकारी नीतियों को ऐसा पहाड़ी पगडंडियों की तरह मोड़ते थे कि आने वाली मंजिल के रूप में भ्रष्टाचार का पहाड़ ही सामने दिखाई पड़ता था।
देश को लाइसेंस राज में पूरी तरह से झोंक देने वाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मनमोहन सिंह ही आर्थिक सलाहकार थे। साम्यवाद के ऊपर पूरी तरह से देश को चलाने के कारण भले देश के 1 रुपए में से दस पैसे ही गरीब तक पहुँचते हों, पर इंदिरा के लगाए आपातकाल में पुलिसिया डंडे सब तक पूरी तरह से पहुँचे, श्री सिंह ऐसी ही महान इंदिरा की सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार थे।
इण्डिया टुडे की एक रिपोर्ट बताती है कि जब मनमोहन सिंह देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार थे, तब देश में महंगाई की दर 25% से भी ज्यादा थी। ना कहीं आर्थिक तरक्की थी और ऊपर से आपातकाल लगाकर लोगों के मुंह पर ताला मार दिया गया था।
रिजर्व बैंक के गवर्नर रहते हुए मनमोहन सिंह 1982 से 85 के दौरान राजीव गांधी की सरकार ने इस तरह से देश का पैसा बहाया कि आने वाले सालों में देश को अपना सोना गिरवी रखना पड़ा, भयंकर आर्थिक मार झेलनी पड़ी। इन सब के बीच देश ने विदेशी कारखाने यूनियन कार्बाइड द्वारा निकली जहरीली गैस से हजारों को मरते भी देखा और फिर उसके गुनाहगार को भारत से भागते भी।
जब भारत की स्थिति 90 के दशक में दयनीय हो गई, तब पिछली सरकारों के साम्यवादी फैसलों से सरोकारी रखते आए डॉ मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री के तौर पर लाया गया, जरूर उन्होंने लम्बे समय से लटके आर्थिक सुधार किए। क्योंकि करने के अलावा कोई चारा नहीं था, देश बदहाली में था, देश का सोना गिरवी पड़ा था वेतन देने के भी पैसे सरकार के पास नहीं थे। इन आधे अधूरे आर्थिक सुधारों को पिछले कुछ सालों में पूरी तरीके से लागू किया गया।
जब 2004 में देश ने एक खंडित जनादेश दिया, तब अटल बिहारी बाजपेई ने कहा कि जनता ने हमारे विरुद्ध जनादेश दिया है, हम सरकार नहीं बनाएँगे। इसके बाद शुरू हुआ कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा वाली सरकार का। सोनिया गांधी के द्वारा रिमोट कंट्रोल वाली सरकार का मुखिया बनाया गया मनमोहन सिंह को।
मनमोहन सिंह की सरकार अन्दर हुए घोटालों की लिस्ट देश ने देखी, 2G, कोयला, कॉमनवेल्थ ना जाने कितने ही घोटाले मनमोहन सिंह के मंत्री करते रहे, लेकिन मनमोहन सिंह यह सब होता देखते रहे, देश की हालत को बदतर करने वाले इन घोटालों से मनमोहन सिंह को कोई फर्क नहीं पड़ा।
और जब सब कुछ सह कर देश की जनता ने उनको सरकार से बाहर कर दिया तब मनमोहन सिंह ने कहा, “History will be kinder to me” (इतिहास मेरे प्रति दयालु रहेगा)। शायद देश की जनता मनमोहन सिंह के प्रति दयालु रहे, उनकी सरकार के दौरान हुए कारनामों के प्रति नहीं रहेगी।