बीते दिन यानी 2 अक्टूबर को एक खबर आई कि कनाडा में ब्रैम्पटन के श्रीभगवद गीता पार्क में ‘हेट क्राइम’ की घटना हुई। भारतीय उच्चायोग ने मामले की कड़ी निंदा और जांच का आग्रह किया। हालांकि, बाद में लोकल पुलिस ने बताया कि यह खबर गलत है। बीते दिनों से कनाडा और भारत में खालिस्तान मुद्दे पर एक तरह का राजनयिक कोल्ड-वॉर जारी है, जिसके आने वाले दिनों तक जारी रहने की अपेक्षा है।
क्या है मामला?
कनाडा में भारतीय उच्चायोग ने बीते शनिवार (2 अक्टूबर, 2022) को ट्वीट करते हुए ब्रैम्पटन में हुए ‘हेट क्राइम’ की निंदा की। खबर के मुताबिक पार्क में साइनबोर्ड से कुछ छेड़छाड़ की गई।
भारतीय उच्चायोग के ट्वीट के बाद मामला गरमा गया। ब्रैम्पटन के मेयर पैट्रिक ब्राउन ने भी मामले की पुष्टि करते हुए कार्रवाई का भरोसा दिया हालांकि बाद में लोकल पुलिस ने जानकारी देते ऐसी किसी भी घटना से इनकार किया।
लोकल पुलिस के बाद ब्रैम्पटन प्रशासन ने भी बताया कि पार्क में खाली साइनबोर्ड लगाया गया था, लेकिन फिर अगले दिन बिल्डर ने असली साइनबोर्ड लगाया।
पुलिस और प्रशासन की सफाई के बाद अबतक भारतीय उच्चायोग से कोई जवाब नहीं आया है। साइनबोर्ड का यह मामला भले ही तथ्यों से विपरीत हों लेकिन सत्य यह भी है कि कनाडा में कई सालों से भारत-विरोधी शक्तियों को चारा-पानी मिलता रहा है।
कनाडा में भारत-विरोध का इतिहास
बरसों से कनाडा में भारतीय-समुदाय बसा हुआ है और फल-फूल रहा है। इनमें से अधिकांश भारत के पंजाब राज्य से हैं।
1897 में, इंग्लैंड के लंदन में महारानी की डायमंड जुबली की परेड में भारत से सिख सैनिकों की एक टुकड़ी ने भाग लिया। लंदन से वापस भारत जाने से पहले उन्होंने कनाडा के पश्चिमी तट का दौरा किया।
अधिकांश सैनिक बाद में सेनानिवृत्त होने के पश्चात कनाडा में बेहतर रोजगार के लिए बस गए। भारत के मुकाबले कनाडा में बेहतर नौकरी मिलने से कई सिख सैनिक ने घर पत्र लिखते हुए बताया कि कैसे वहां (कनाडा) में अलग दुनिया है।
विदेशी धरती की तारीफ में लिखे गए इन पत्रों से ही भारतीयों, खासकर सिख समुदाय की रुचि कनाडा के प्रति बढ़ती गई, जो आज भी बरकरार है।
खालिस्तानी विचारधारा
भारत की आजादी से पहले जब कुछ लोग पाकिस्तान की मांग पर अड़े थे ,तो वहीं कुछ भारतीय सिख समुदाय के लिए एक अलग देश — खालिस्तान की मांग कर रहे थे।
ब्रिटिश राज्य का अंत हुआ, भारत को आजादी के साथ विभाजन-रूपी विष भी मिला, लेकिन खालिस्तानी सपने चकनाचूर हो गए। हालांकि, 1970 और 80 के दशक में खालिस्तानी विचारधारा और आंदोलन एक बार फिर उठ खड़ा हुआ।
1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार और फिर भारतीय प्रशासन के सख्त रवैए से खालिस्तानी आंदोलन को पंजाब और अन्य राज्यों से उखाड़ फेंक दिया गया।
कनाडा में खालिस्तानी विचारधारा की शुरुआत
भारत में खालिस्तानी विचारधारा का सफाया जिस तेजी से हुआ शायद उसी रफ्तार से कनाडा में इसका प्रसार हुआ।
दूसरे देश में चरमपंंथी विचारधारा पर नजर तब गई जब 1985 में एयर इंडिया की फ्लाइट 182 बम फटने की वजह से अटलांटिक सागर में क्रैश हो गई।
इस घटना में ब्रिटिश, कनाडाई और भारतीयों हवाई-यात्रियों की मृत्यु हुई, जिसके बाद अंतराष्ट्रीय पटल पर हलचल बढ़ गई। 2001 में 26/11 हमलों से पहले, एयर इंडिया फ्लाइट 182 क्रैश को विमानन इतिहास का सबसे घातक आतंकवादी हमला माना जाता था।
जांच के बाद पता चला कि इसमें सिख अलगाववादियों का हाथ था। मामले में इंद्रजीत सिंह रेयातम को दोषी करार दिया गया था, जो ब्रिटिश-कनाडाई नागरिक और अंतरराष्ट्रीय सिख युवा संघ (आईएसवाईएफ) का सदस्य था।
कनाडाई सुरक्षा खुफिया सेवा के लिए सिख डेस्क पर काम करने वाले बॉब बरगॉय के अनुसार, “मेरी व्यक्तिगत भावना यह है कि किसी ने सोचा नहीं था कि सिख मुद्दा इतना तेजी से बढ़ेगा और मुझे लगता है कि यह सिख स्वर्ण मंदिर पर छापे का परिणाम था।”
18 नवंबर 1998 को, कनाडा स्थित सिख पत्रकार तारा सिंह हेयर को संदिग्ध खालिस्तानी आतंकवादियों ने गोली मार दी थी।उन्होंने एयर इंडिया फ्लाइट 182 क्रैश की आलोचना की थी, और इस विषय में महत्वपूर्ण गवाही देने जा रहे थे।
इसके बाद कनाडा में खालिस्तानी विचारधारा का प्रसार बहुत तेजी से हुआ।
कनाडा सरकार की भूमिका
वर्षों से कनाडा पर खालिस्तान आंदोलन को पनाह और सहयोग देने के आरोप लगते रहे हैं।
2017 में कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रुडो के भारत दौरे पर तब के पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया था। अमरिंदर सिंह ने यह आरोप लगाया था कि जस्टिन ट्रुडो एक खालिस्तानी समर्थक हैं, हालांकि बाद में उन्होंने कनाडाई पीएम से मुलाकात कर इस मामले पर बातचीत की।
बाद में डैमेज कंट्रोल करते हुए कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रुडो ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि कनाडा अखंड भारत और आतंकवाद पर कार्रवाई के मामले पर प्रतिबद्ध है।
कनाडाई पीएम के तमाम दावों के बावजूद उनके देश में खालिस्तानी विचारधारा का प्रचार-प्रसार हो रहा है।
वर्तमान स्थिति
पिछले महीने ही कनाडा में ‘सिख फॉर जस्टिस’ संस्था ने खालिस्तान रेफेरेंडम आयोजित किया था। यह एक अलगाववादी संस्था है जो प्रखर रूप से खालिस्तान की मांग करती रही है और 2019 से भारत में प्रतिबंधित भी है।
खालिस्तान रेफेरेंडम के मुद्दे से कनाडा और भारत के बीच राजनीति गरमा गई है। रेफेरेंडम से एक दिन पहले ही भारतीय विदेश मंत्रालय ने एडवाइजरी जारी करते हुए कनाडा में भारतीय छात्रों और नागरिकों को सतर्कता बरतने की सलाह दी थी।
जैसा कि अपेक्षित था, कनाडा सरकार ने 27 सितंबर को अपने देशवासियों को सलाह दी कि वे पाकिस्तान के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भारतीय राज्य पंजाब, गुजरात और राजस्थान में स्थित स्थानों पर जाने से बचें।
खालिस्तान समर्थकों के वोटबैंक को नाराज ना करने के बदले कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रुडो और उनकी लिबरल सरकार ने भारत के साथ अपने संबंधों को बेहद खराब किया है। आज की अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कनाडा के लिए भारत को नजरअंदाज करना मुफीद साबित नहीं होगा।