राजस्थान के जोधपुर जिले में पाकिस्तान से आए 200 से अधिक हिंदू परिवार रेगिस्तान में 40 डिग्री तापमान वाली दोपहर में मात्र पलंग की छांव के सहारे अपना जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं। वजह यह है कि राजस्थान सरकार द्वारा बिना किसी नोटिस के इनके हिंदू शरणार्थियों आवासों पर जेबीसी चला दी गई है। अतिक्रमण हटाने के नाम पर सरकार ने इनके लिए एक मात्र पानी के स्रोत टैंक को भी तोड़ दिया गया है। 200 से अधिक परिवारों के व्यक्ति जिनमें महिलाएं एवं बच्चे शामिल हैं बिना राशन, पानी, बिजली और मूलभूत सुविधाओं के उस न्याय का इंतजार कर रहे हैं जो इन्हें शायद कभी नहीं मिलेगा।
पाकिस्तान में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों एवं जबरन धर्मांतरण से बचकर विस्थापित हुए यह लोग अपने निर्णय पर संदेह करते नजर आते हैं क्योंकि जिस सरकार से न्याय की उम्मीद इन्होंने की थी उसने इनको बेघर कर दिया है। राजस्थान में हिंदू शरणार्थियों के साथ जो अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है, उसपर न तो चर्चा हो रही है न ही सरकार की ओर से मदद सामने आई है। जाहिर है यह चुनाव में वोट बैंक नहीं हो सकते इसलिए धार्मिक तुष्टिकरण के लिए भी उपयुक्त नहीं हैं। ऐसे में सरकार के इनकी ओर देखने का कोई कारण नहीं है।
राजस्थान सरकार अभी गुलाबी रंग में रंगी हुई है और चुनाव में अपना सम्मान बचाने के लिए मंहगाई राहत कैंप के जरिए रेवड़िया बांट रही है। विडंबना यह है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हिंदू शरणार्थियों पर हो रहे अत्याचार को रोकना तो दूर इनके लिए दुख व्यक्त करने का समय भी नहीं निकाल पाए। पाकिस्तान से विस्थापित हुए हिंदू परिवारों के बच्चे रो रहे हैं। उनके पास से उनका एक मात्र सहारा भी छीन लिया गया है। शरणार्थियों का कहना है कि उन्होंने यह जमीन खरीदी थी ना कि कब्जा की थी। यहां यह भी साफ कर दें कि यह अवैध प्रवासी नहीं बल्कि पाकिस्तान में हुए अत्याचारों के बाद वीजा पर भारत आए शरणार्थी हैं।
भारत आकर सम्मान भरे जीवन की आस लगाए ये परिवार एक ही सवाल पूछ रहे हैं कि उनके साथ यह अन्याय क्यों हो रहा है? कॉन्ग्रेस सरकार का इतिहास देखते हुए इसका जवाब बस इतना है कि वे हिंदू शरणार्थी हैं और वोट बैंक में उनका कोई स्थान नहीं है। यह जवाब साम्प्रदायिक नहीं है न ही इसका हिंदू-मुस्लिम मामले से कोई लेना देना है। यह मात्र कॉन्ग्रेस की कार्यशैली को परिलक्षित कर रहा है जो वर्षों से मुस्लिम वोट बैंक पर दांव खेलते आई है। शायद यही कारण है कि म्यामांर और बांग्लादेश से आए अवैध रोहिंग्या शरणार्थी सीमांत राज्यों के साथ ही दिल्ली, जाम्मू, हैदराबाद और पश्चिम बंगाल तक में अपना स्थान बना चुके हैं पर हिंदू शर्णार्थियों के लिए जोधपुर के रेगिस्तान में भी जगह नहीं है।
धार्मिक तुष्टिकरण की यह नीति मात्र हिंदू शरणार्थियों तक सीमित नहीं है बल्कि राजस्थान सरकार के 4 वर्षों के कार्यकाल को देखें तो हिंदू विरोधी नीतियां स्पष्ट दिखाई देती हैं। रामनवमी, हनुमान जयंती, महावीर जयंती, होली के साथ और भी हिंदू त्योहारों पर राजस्थान सरकार धारा 144 लगा देती है और इफ्तार पार्टी के लिए अपने राजसभा के दरवाजे खोल देती है। गहलोत के कार्यकाल में राजस्थान की क़ानून व्यवस्था गर्त में पहुँच गई है जो दिनदहाड़े एक आम दर्जी की हत्या नहीं रोक पाई तो किसी अधिकारी द्वारा 200 परिवारों को बेघर करने पर जाग जाए, इसकी संभावना न के बराबर है।
अशोक गहलोत अपने प्राइवेट सेक्युलरिज़्म की रक्षा का भार हिंदुओं पर ही क्यों डालते हैं?
हिंदू शरणार्थियों के साथ यह दोहरा व्यवहार गहलोत सरकार की नहीं बल्कि कॉन्ग्रेस सरकार की परिपाटी दिखा रहा है। जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि जो लोग विस्थापित हैं और भारत बसने आए हैं वो नागरिकता के अधिकारी हैं। यह कहने के बाद भी उन्होंने नेहरू-लियाकत समझौते की नींव रखी। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ बीसी रॉय चाहते थे कि ईस्ट पाकिस्तान के हिंदू शरणार्थियों को पश्चिम बंगाल में जगह मिले। हालाँकि तत्कालीन सेक्युलर प्रधानमंत्री नेहरू ने इसे अस्वीकार कर दिया। यहां तक कि जो हिंदू अत्याचारों से बचकर बंगाल में शरण लेने आए थे उन्हें भी वापस भेजने का आदेश दिया। बंगाल को शरणार्थियों के लिए दी जाने वाली आर्थिक सहायता भी रोक दी गई थी। वर्ष 1950 में हुए नेहरू-लियाकत समझौते ने हिंदू शरणार्थियों के लिए सभी दरवाजे बंद कर दिए। इसके बाद ईस्ट पाकिस्तान और फिर बांग्लादेश में किस प्रकार हिंदू अल्पसंख्यकों को नरसंहार किया गया वो सबके सामने है।
स्वतंत्रता के बाद से पाकिस्तान में करीब 23 प्रतिशत आबादी हिंदू थी। वर्तमान में यह आंकड़ा करीब 2 प्रतिशत पर आ गया है। जो हिंदू अभी पाकिस्तान और बांग्लादेश में निवास कर रहे हैं उन्हें अत्याचार, साम्प्रदायिक भेदभाव, जबरन मतांतरण का सामना करना पड़ रहा है। पिछले 10 वर्षों में करीब 28,000 से 30,000 हिंदू शरणार्थी अकेले राजस्थान में विस्थापित हुए हैं। यह तो साफ है कि जिस समझौते के भरोसे हिंदूओं को इस्लामी देश में छोड़ा गया था वो उसे पूरा करने में नाकाम रहे हैं तो ऐसे में विस्थापितों को उनके अधिकार देने में गहलोत सरकार को क्यों पीछे हट रही है।
देश में अल्पसंख्यकों के लिए कथित आवाज उठाने और शरणार्थियों के लिए चिंता व्यक्त करती कॉन्ग्रेस हिंदू शरणार्थियों पर मौन साध लेती है। शायद यह पार्टी की अल्पसंख्यकों की परिभाषा में सम्मिलित नहीं होते हैं।
जाति जनगणना की राजनीति और मुस्लिम प्रश्न
विस्थापितों को नागरिकता देने में भेदभाव करना कॉन्ग्रेस का चरित्र रहा है। यही कारण है कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम पर कॉन्ग्रेस मुखरता से सामने भी आई और इसका विरोध भी किया। CAA को लेकर जनमानस को भ्रमित कर पीड़ितों की चिंता करने वाली कॉन्ग्रेस आज हिंदू शरणार्थियों के घर तोड़ रही है। यही फर्क है कथनी और करनी का। हिंदू शरणार्थियों की चिंता एक भ्रम है और सीएए का विरोध राजनीति लाभ। अपने इस राजनीतिक दर्शन को कॉन्ग्रेस कभी भूल नहीं सकती।
राजनीतिक लाभ और हानि की गिनती में जिसे भुलाया गया है वो है विस्थापित हिंदुओं का दर्द। राजस्थान पर कर्ज का बोझ होने के बाद भी वोट के लिए जनमानस को मुफ्त इलाज, खाना, गैस, बिजली उपलब्ध करवाया जा रहा है। उसी स्थान पर विस्थापितों के साथ जो अमानवीय व्यवहार किया गया है उसने फिर से कॉन्ग्रेस की कार्यशैली और हिंदू विरोधी मानसिकता को उजागर कर दिया है। एक सरकार के तौर पर ही नहीं असहनीय अत्याचारों से बचकर आए समुदाय की रक्षा करना मानवीय कर्तव्य की श्रेणी में भी आता है। राजस्थान की कांग्रेस सरकार अपने शासन और मानवीय मूल्यों की तराजू पर विफल साबित हुई है जो शरणार्थियों की आवाज को नहीं सुन पा रही है कि; क्या यही वो हिंदुस्तान है जिसे हम अपना मान कर आए थे?