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Home » हिमाचल प्रदेश: राज दरबार पर हावी हुआ दिल्ली दरबार
प्रमुख खबर

हिमाचल प्रदेश: राज दरबार पर हावी हुआ दिल्ली दरबार

Jayesh MatiyalBy Jayesh MatiyalDecember 10, 2022No Comments3 Mins Read
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हिमाचल प्रदेश की राजनीति में एक शब्द जो कभी खूब चलन में रहा। वह है, राज दरबार और दिल्ली दरबार। राज दरबार यानी राजा वीरभद्र सिंह का खेमा और दिल्ली दरबार यानी राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस।

दोनों में कितना सामंजस्य और तनातनी होती थी, इस बात का अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है। अक्सर यह चर्चा होती रहती है कि राज दरबार, दिल्ली दरबार को कहा करता था कि हमारे पास विधायकों की इतनी संख्या है।

यह एक लाइन पूरा राजनीतिक परिदृश्य बदल देती थी। वर्तमान प्रदेश कॉन्ग्रेस अध्यक्ष और स्वर्गीय राजा वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह का हालिया भी इसी राज दरबार बनाम दिल्ली दरबार की ओर संकेत कर रहा था। हालाँकि, तेवर बिल्कुल उलट थे। 

प्रतिभा सिंह ने जब कहा कि हाईकमान को वीरभद्र सिंह के परिवार का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि चुनाव उन्हीं की विरासत, उन्हीं के काम और उन्हीं के नाम पर जीते हैं तो यह बात तभी साफ हो गई थी कि अब हॉली लॉज बनाम 10 जनपथ जैसी बातें भी वीरभद्र सिंह तक ही थी।

जिस विरासत, जिस रुतबे, जिस तेवर की बात प्रतिभा सिंह पहले किया करती थीं, वे तेवर अब नरम पड़ गए हैं और आखिरकार दशकों बाद राज दरबार पर दिल्ली दरबार हावी हो गया, मात्र डेढ़ साल के अन्तराल पर।

10 जनपथ के विश्वस्थ सुखविन्दर सिंह सुक्खू अब अन्तत: उस कुर्सी तक पहुँच गए हैं, जिस कुर्सी से उन्हें कई बार ‘सुक्खू-दुक्खू’ बुलाया गया।

हिमाचल प्रदेश कॉन्ग्रेस की राजनीति में यहाँ तक नारे लगते रहे हैं कि ‘कॉन्ग्रेस को बचाना है, सुक्खू को हटाना है’। नारे तो पिछले विधानसभा चुनाव में यह भी लगे थे कि ‘सुक्खू दुक्खू नहीं चलेंगे।’ खैर, नारा यह भी था कि ‘हिमाचल में रहना होगा तो राजा साहब कहना होगा।’

बहरहाल, यह नारा अब प्रासंगिक नहीं रहा। अब वे सुक्खू दुक्खू नहीं रहे, अब वे मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू बन गए हैं।

उनके मुख्यमंत्री बनते ही वो विरासत जिसका दावा प्रतिभा सिंह हर चुनाव प्रचार में कर रही थीं। चुनाव नतीजे आने के बाद भी उसी विरासत के आधार पर कुर्सी माँगती प्रतिभा सिंह का चेहरा बता रहा था कि वो विरासत अब लफ्जों तक सीमित रह गई।

सुखविन्दर सिंह सुक्खू ने चुनाव प्रचार के दौरान बयान भी दिया था कि मुख्यमंत्री तो कोई विधायक ही बनेगा। शायद यह आज के परिणाम की ओर एक संकेत था, जिसे समझने में राज दरबार ने देरी कर दी।

हालांकि, प्रतिभा सिंह के पक्ष में खूब नारेबाजी हुई। पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के काफिले तक रोके गए, लेकिन वह परिणाम नहीं मिला जिसकी उम्मीद शायद राज परिवार को थी।

सवाल यह भी है कि हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्य में उप-मुख्यमंत्री जैसे दाँव खेलना कहाँ तक कारगर होता है। जिन पर दाँव लगाया है, उनका झुकाव राज दरबार की ओर है।

देखना दिलचस्प होगा कि यह दाँव अंदरूनी कलह को कितनी देर तक संभाल पाता है?

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  • Jayesh Matiyal
    Jayesh Matiyal

    जयेश मटियाल पहाड़ से हैं, युवा हैं। व्यंग्य और खोजी पत्रकारिता में रूचि रखते हैं।

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