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Home » सुप्रीम कोर्ट का ‘हिजाब’ पर बड़ा बयान: सिख धर्म की पगड़ी से तुलना बेमतलब, सिख प्रथाएं भारतीय संस्कृति में समाहित
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सुप्रीम कोर्ट का ‘हिजाब’ पर बड़ा बयान: सिख धर्म की पगड़ी से तुलना बेमतलब, सिख प्रथाएं भारतीय संस्कृति में समाहित

The Pamphlet StaffBy The Pamphlet StaffSeptember 8, 2022No Comments3 Mins Read
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बुर्का-सिख कोर्ट
बुर्का प्रकरण पर कोर्ट की बड़ी टिप्पणी
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जस्टिस गुप्ता ने कहा- कृपया सिख धर्म से इसकी (यानी हिजाब की) तुलना न करें। यह भारतीय संस्कृति में पूरी तरह समाहित है।

देशभर में लम्बे समय से हिजाब एवं बुरका को लेकर विवाद चल रहा है। इस विवाद में अब एक नया मोड़ सामने आया है। कर्नाटक सरकार के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब प्रतिबंध को चुनौती देने वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (8 सितम्बर, 2022) को याचिकाकर्ताओं से कहा कि सिखों द्वारा पहनी जाने वाली  पगड़ी  की तुलना बुर्के से करना अनुचित होगा।

सिख धर्म की पगड़ी से नहीं हो सकती तुलना, यह भारतीय संस्कृति में समाहित:

सुप्रीम कोर्ट की हिजाब पर बड़ी टिप्पणी#SupremeCourtOfIndia #Hijab #turban pic.twitter.com/pJemS77n5J

— The Pamphlet (@Pamphlet_in) September 8, 2022

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि सिखों द्वारा पहनी जाने वाली पगड़ी सिख धर्म के पांच अनिवार्य तत्वों का हिस्सा है और इसे सर्वोच्च न्यायालय ने भी मान्यता दी है।

न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा, “इस अदालत की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि सिखों के लिए पगड़ी और कृपाण पहनना आवश्यक है। इसलिए हम कह रहे हैं कि सिख के साथ तुलना उचित नहीं हो सकती है। सिखों के पंच-क (केश, कच्छा, कृपाण, कड़ा, कंघा) को उनके धर्म में अनिवार्य माना गया है, साथ ही यह भारतीय संस्कृति में पूरी तरह समाहित है।” 

[Hijab Case] Please do not compare with Sikhism. It has been completely ingrained in Indian culture: Justice Hemant Gupta

report by @DebayonRoy

Read story: https://t.co/JbggLLC4nB pic.twitter.com/G57y2RWu8J

— Bar & Bench (@barandbench) September 8, 2022

जस्टिस गुप्ता ने कहा, “आपके सार्वजनिक रूप से हिजाब पहनने से किसी को ठेस नहीं पहुँचती। लेकिन अगर आप इसे स्कूल में पहनते हैं तो हम किस तरह की सार्वजनिक व्यवस्था की बात कर रहे हैं?”

“यहां सार्वजनिक व्यवस्था स्कूल की जिम्मेदारी है। मान लीजिए कि मैं सड़क पर एक हेड गियर पहनता हूं और हंगामा होता है, पुलिस आ सकती है और मुझसे कह सकती है कि इसे न पहनें क्योंकि यह सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ता है। एक संवैधानिक योजना में, क्या हिटलर का वीटो स्वीकार्य है? ऐसी मिसालें हैं जो बताती हैं कि ऐसा संभव नहीं है। यह अमेरिका का फैसला है, जिसके बाद भारत में 2001 का फैसला आया।”

एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील निज़ाम पाशा ने जवाब दिया “जैसे सिखों के लिए 5 ‘ककार’ इस्लाम के 5 स्तंभ हैं और यही स्थिति इस मामले में हमारे लिए भी है। इसी तरह इस्लाम भी यहां 1400 वर्षों से है और हिजाब भी है”। 

पाशा ने यह भी कहा  कि कर्नाटक हाई कोर्ट का हिजाब पर बैन तो ईशनिंदा है। 

उन्होंने कहा, “हाईकोर्ट ने कहा है कि चूंकि कुरान की आयतें पिछले 1500 वर्षों  की है, इसका अब कोई महत्व नहीं है। हाईकोर्ट का कुरान के बारे में यह कहना कि अब उसकी प्रासंगिकता नहीं, यह ईशनिंदा है”। 

अगली सुनवाई अब 12 सितंबर को होगी, जहां वरिष्ठ कांग्रेस नेता और वकील सलमान खुर्शीद दलील देंगे। 

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