सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपनी टिप्पणी में कहा कि नियमों के अनुसार शैक्षणिक संस्थानों के पास वर्दी निर्धारित करने का हक है। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ की ओर से आई, जो शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखने के कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ लगी विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
अदालत ने टिप्पणी की एक याचिकाकर्ता के वकील का तर्क है कि एक निजी क्लब में ड्रेस कोड हो सकता है लेकिन एक सार्वजनिक शिक्षण संस्थान में ड्रेसकोड नहीं हो सकता। वकील ने यह भी कहा कि स्कूल यूनीफॉर्म नहीं पहनने के कारण किसी को स्कूल प्रवेश से प्रतिबंधित नहीं कर सकता। इसपर जस्टिस गुप्ता ने पूछा कि क्या आप यह कहना चाहते हैं कि सरकारी स्कूलों में यूनिफॉर्म नहीं हो सकती?
वकील ने जवाब दिया कि अगर शिक्षण संस्थान यूनीफॉर्म लागू करते भी हैं, तो भी वे हिजाब को प्रतिबंधित नहीं कर सकते। इसपर न्यायमूर्ति धूलिया ने टिप्पणी की कि नियमों के अनुसार शैक्षणिक संस्थानों के पास यूनीफॉर्म निर्धारित करने की शक्ति है। हिजाब इससे अलग विषय है। इस मामले की अगली सुनवाई सोमवार 19 सितंबर को होगी।
सुप्रीम कोर्ट में हिजाब के लिए दिए जा रहे भांति भांति के तर्क

चार घंटे से अधिक समय तक चली बहस में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, मीनाक्षी अरोड़ा, जयना कोठारी, एएम डार समेत कई प्रसिद्ध वकीलों ने विभिन्न याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस की है और शीर्ष अदालत के समक्ष याचिकाकर्ताओं की ओर से अपना पक्ष रखा।
वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने बताया कि हिजाब भी एक सांस्कृतिक अधिकार है जो अनुच्छेद 29 के तहत संरक्षित है और युवा लड़कियों को हिजाब से वंचित करने का परिणाम उन्हें शिक्षा, निजता और गरिमा के मौलिक अधिकारों से वंचित करना है। सिब्बल ने यह सवाल भी उठाया कि अगर मुस्लिम लड़कियां हिजाब पहनती हैं तो यह सार्वजनिक व्यवस्था के लिए हानिकारक कैसे है।
इसपर न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि इसकी देखादेखी कुछ अन्य छात्रों द्वारा गमछा जैसी चीजें पहनना शुरू करने के बाद सरकार को इसे प्रतिबंधित करना पड़ा।
वरिष्ठ अधिवक्ता जयना कोठारी ने कहा कि इस मामले में सभी लड़कियों या सभी मुसलमानों के साथ भेदभाव नहीं है, बल्कि यह केवल मुस्लिम लड़कियों को प्रभावित कर रहा है।
इसके आलावा तर्क दिया गया कि न्यायालय कुरान की व्याख्या करने में सक्षम नहीं है।
वकील कोठारी एक कदम आगे चले गए और उन्होंने कहा इस्लाम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है, कई इस्लामिक देशों ने हिजाब की अनुमति दी हुई है, फिर भारत कौन होता है तय करने वाला?
बाबासाहेब अंबेडकर को भी बता दिया गलत
भारत के संविधान निर्माता डॉक्टर बाबासाहब अंबेडकर की अवमानना का मामला भी सामने आया है। हिजाब को लेकर बाबासाहब अंबेडकर की टिप्पणी को लेकर अधिवक्ता ने कहा कि अंबेडकर का हिजाब और बुर्का के खिलाफ बोलना गलत था।
वकील गोंसाल्वेस ने हिजाब पर हाईकोर्ट की टिप्पणियों का सन्दर्भ दिया जिसमें हाईकोर्ट ने हिजाब पहनने पर जोर देने को महिलाओं की स्वतंत्रता के खिलाफ है बताया था। हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में डॉ. अम्बेडकर के हवाले से कहा था कि “अगर मैं हिजाब पहनती हूँ, तो मेरा स्वभाव महिला मुक्ति का या वैज्ञानिक नहीं हो सकता। इसे गोंसाल्वेस ने “आहत करने वाला बयान” करार देकर कहा कि हिजाब को अव्यवस्था, अराजकता और सांप्रदायिकता से जोड़ना गलत है। यह एक ऐसा कथन है जिसे भारत में दोहराया नहीं जाना चाहिए।
इसपर जस्टिस धूलिया ने कहा कि यह डॉ. अम्बेडकर ने जो देखा, उसके संदर्भ में कहा था। आप उसे एक कानून की तरह या एक निर्णय की तरह नहीं पढ़ सकते।
इस तरह डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के नाम पर राजनीति करने वालों ने बाबासाहब अम्बेडकर की दूरदृष्टि पर सवाल उठा दिया, जबकि वे भारत की सभी सामाजिक समस्याओं से परिचित थे। बाबासाहब अम्बेडकर के कथनों को आपत्तिजनक बोलने के कारण दलित समुदाय में असंतुष्टि पैदा होने की भी संभावना है।