हाथरस मामले में आये फैसले पर जैसा कि होना ही था, आन्दोलनजीवियों और मीडिया के एक बड़े वर्ग ने हमेशा की तरह चुप्पी साध ली है। चार में तीन आरोपी मामले में साफ-साफ बरी हो गए हैं क्योंकि कोई बलात्कार हुआ ही नहीं था। नीले झंडों से लैस भीड़ ने और उस उग्र, जबरदस्ती करती भीड़ को चार वोटों के लालच में उकसा रहे नेताओं ने इस मामले को कैसा उछाला था, इसे भुला देने की पूरी कवायद अब शुरू हो चुकी है। अच्छी बात ये है कि खरीदे जाने वाले परंपरागत मीडिया के साधनों के अलावा अब आम लोगों के पास वैकल्पिक सोशल मीडिया और इन्टरनेट के साधन भी हैं। हर बार की तरह अब आधीन स्वरों को दबाये रखना, अभिजात्य वर्गों के लिए उतना भी सरल नहीं रह गया। ये उत्तर प्रदेश का एक ऐसा मामला था, जिस पर राज्य और केंद्र सरकारों को ही नहीं, सभी हिन्दुओं को, पूरे एक धर्म के समुदाय को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निशाने पर लेने की कोशिश की गयी थी।
इसी मामले को लेकर सागरिका घोष, ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी जा पहुंची थी। उस दौर में “ब्लैक लाइव्स मैटर” जैसे अंतर्राष्ट्रीय आन्दोलन चल रहे थे। इसलिए इस मामले को भी उसी तर्ज पर “दलित लाइव्स मैटर” बना देने की कोशिश सागरिका घोष ने की थी। उसके पति राजदीप सरदेसाई भी कदम से कदम मिलाते इस कुकृत्य में उसके साथ दिखे। उनका कहना था कि अब किसी “बॉलीवुड ड्रामा” पर नहीं हाथरस जैसे मामलों पर ध्यान देने की जरुरत है। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि अब जब आरोपियों को बरी भी कर दिया गया था तब भी उन्हें “हाथरस मामले का आरोपी” ही कहा जायेगा, जबकि इस मामले में नैतिकता को ताक पर रखकर द्वेष भड़काने के उद्देश्य से निकले सिद्दीकी कप्पन जैसे लोग अब भी “पत्रकार” कहलायेंगे! कप्पन के जमानत पर छूटने को “न्याय की जीत” बताकर नाचने वाले इन लोगों ने जब देखा कि बलात्कार हुआ ही नहीं था, तो सुविधाजनक चुप्पी साध ली है।
राजनैतिक गिद्धों के लिए तो ये जैसे एक दावत का मौका था। कांग्रेस के फूंके हुए कारतूस, राहुल और प्रियंका दोनों को इस काण्ड के नाम पर फिर से उत्तर प्रदेश के मैदान में उतारा गया था। उत्तर प्रदेश की सरकार, वहाँ का प्रशासन, शुरू से बता रहा था कि ये बलात्कार का मामला नहीं है। राहुल गाँधी का कहना था कि राजस्थान की कांग्रेसी सरकार बलात्कार के मामलों को दबाने की कोशिश नहीं करती, उत्तर प्रदेश की सरकार करती है। इसलिए वो उत्तर प्रदेश में आन्दोलन करेंगे, राजस्थान में दलितों के शोषण पर नहीं बोलेंगे। कुछ ऐसे ही स्वर प्रियंका वाड्रा के भी थे। प्रियंका गाँधी वाड्रा अब भी इस बात पर अड़ी है कि हाथरस में न्याय नहीं हुआ। सामूहिक बलात्कार के कोई प्रमाण ही नहीं, लेकिन फिर भी आरोपियों को बलात्कारी मान लेना है?
हाथरस मामला: 3 आरोपित बरी, 1 को उम्रकैद, साबित नहीं हुए रेप के आरोप
भारतीय अदालतों के बारे में ये भी ध्यान रखने योग्य है कि उनमें बलात्कार के मामले “दोष सिद्ध होने तक निर्दोष” मानकर नहीं चलते। इन मामलों में उल्टा आरोपी को स्वयं को निर्दोष सिद्ध करना होता है जिस पर बलात्कार का अभियोग है, यानि “अन्यथा सिद्ध होने तक दोषी” है आरोपी। इस लिहाज से भी ये मुकदमा अनूठे मुकदमों में से होगा, क्योंकि इसमें बचाव पक्ष के वकील ने न तो एक भी सबूत पेश किया, न ही कोई गवाह! बिना एक भी गवाह-सबूत के आरोपी निर्दोष इसलिए सिद्ध हुए क्योंकि अभियोग लगाने वाले पक्ष के पास कोई मामला ही नहीं था। जब 14 सितम्बर 2020 को इस पीड़िता को अस्पताल में भर्ती करवाया गया था, तब कोई बलात्कार का मामला बना भी नहीं था। मार-पीट का आरोप संदीप पर लगाया गया था। करीब एक सप्ताह बाद 19 सितम्बर 2020 के बाद लड़की ने चार युवकों का नाम लेना शुरू किया। इसके बाद बलात्कार का आरोप लगाया और 29 सितम्बर 2020 को पीड़िता की मृत्यु हो गयी। शव को लेकर विशाल विरोध प्रदर्शन करने की कई राजनैतिक दलों की योजना थी। इस मामले को दिल्ली की आम आदमी पार्टी के केजरीवाल, कांग्रेस, और यूपी की स्थानीय समाजवादी पार्टी ने पकड़ रखा था। आश्चर्यजनक रूप से मायावती इस मुद्दे पर मुखर नहीं थीं।
उत्तर प्रदेश की विशेष अदालत ने जब इस मुद्दे पर फैसला सुनाया तो कहा कि सामूहिक बलात्कार के कोई प्रमाण नहीं हैं, बलात्कार नहीं हुआ। ये एक व्यक्ति द्वारा की गयी हत्या है यानि कई लोग शामिल भी नहीं। जातिगत भेदभाव जैसा भी कोई मामला नहीं बनता। चार में से तीन आरोपी तो साफ बेकसूर हैं। अब सवाल ये है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह भारत को और हिन्दुओं को जातिवाद का अभियोग लगाकर बदनाम करने के पीछे की साजिशों को नाकाम करने के लिए सरकार के पास क्या तैयारी है? जहाँ तक मीडिया का प्रश्न है, उसका एकतरफा झुकाव तो स्पष्ट है। दूसरे पक्ष की बात, आधीन स्वर (सबाल्टर्न वौइस्) को मीडिया कोई जगह नहीं देती। इस मामले में तो स्वयं एडिटर्स गिल्ड तक ने दूसरे पक्ष की कोई बात सुनने से ही इनकार कर दिया था।
राहुल गांधी और अपनों की निंदा का सुख: देशी जनादेश का जवाब विदेशी धरती पर तलाशता ‘पप्पू’
संभवतः भारत के लिए (और हिन्दुओं के लिए भी) ये जरूरी है कि आपनी बात अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उतनी ही तेज आवाज में रखने का दम-खम पैदा करें जितनी तेज आवाज में उनपर आरोप लगते हैं। प्रसिद्ध अफ़्रीकी लोकोक्तियों जैसा ही जबतक शेर अपनी और से कहानी सुनाना शुरू नहीं करता, तबतक शिकार के किस्सों में शिकारी का महिमामंडन होता रहेगा।