हरियाणा के करनाल जिले में आढ़ती पिछले कुछ दिनों से हड़ताल पर हैं। इनके हड़ताल के कारण किसानों का लाखों क्विंटल धान बाहर खुले में पड़ा है। उत्तर भारत के इलाकों में पिछले कुछ दिनों से हो रही लगातार बारिश की वजह से इन फसलों के ख़राब होने की आशंका है। इन फसलों की अगर जल्द बिक्री नहीं हुई तो सारा धान खुले में पड़े-पड़े सड़ जाएगा, इसकी भरपूर सम्भावना है।
मंडी में मौजूद किसानों ने बताया कि लगातार बारिश की वजह से हमारी फसल दिन-प्रतिदिन ख़राब हो रही है लेकिन हम इसे आढ़तियों की हड़ताल के कारण बेच नहीं पा रहे है। इस मुद्दे पर अभी सरकार की तरफ से भी कोई सुनवाई नहीं हो रही।
हरियाणा राज्य के आढ़ती अपनी माँगों को लेकर आमरण अनशन पर बैठे है। करनाल की नई अनाज मंडी में बारिश के बीच हरियाणा स्टेट अनाज मंडी आढ़ती एसोसिएशन ने अपनी माँगों को लेकर आमरण अनशन पर बैठे हैं। एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष अशोक गुप्ता और चेयरमैन रजनीश चौधरी की अगुवाई में अन्य आढ़ती पदाधिकारी भी इस आसान में हिस्सा ले रहे हैं।
एसोसिएशन के लोगों का कहना है कि सरकार आढ़तियों की मांगों को लेकर गंभीरता नहीं दिखा रही। ऐसा चलता रहा तो यह अनशन अनिश्चितकालीन चलेगा। कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए भारी पुलिसबल की तैनाती भी की गई है।
हड़ताल में अब तक क्या-क्या हुआ ?
प्रदेश भर के अनाज मंडियों में अनशन की शुरुवात 19 सितम्बर को हुई थी और लगातार जारी है। आढ़तियों ने सरकार पर आरोप लगते हुए कहा कि हड़ताल के चलते मंडियाँ लगातार बंद हैं और किसानों का बहुत नुक़सान हो रहा है। बावजूद इसके सरकार की मंशा किसी भी तरह से संवाद स्थापित करने की नहीं लग रही। आढ़तियों ने सरकार के कड़े रूख को इस आमरण अनशन की जड़ बताया।
अपने अनिश्चितकालीन हड़ताल को लेकर प्रदेश भर से आढ़ती हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के करनाल स्थित निवास पर बुधवार, 21 सितम्बर को पहुंचे थे। आढ़तियों ने मुख्यमंत्री का घेराव करने की भी कोशिश की। हरियाणा के कृषि मंत्री जेपी दलाल पर आरोप लगाते हुए आढ़तियों ने कहा कि, “हमें चंडीगढ़ बुलाने के बाद वो बैठक में शामिल हीं नहीं हुए।”
क्या है आढ़तियों की माँग ?
आढ़तियों ने प्रदर्शन के दौरान नारेबाजी करते हुए खट्टर सरकार द्वारा लाए गए अधिसूचना का विरोध किया। अधिसूचना का उद्देश्य बासमती धान की खरीद को राष्ट्रीय कृषि बाजार (E-NAM) पोर्टल के जरिये करने को अनिवार्य बनाना था। आढ़ती अब सरकार से इस अनिवार्यता को खत्म करने की मॉंग कर रहे है।
इनकी माँगों में ई-नेम पोर्टल रद्द करने के अलावा, धन की खरीद बिक्री में 2.5% आढ़त की माँग और साथ हीं MSP पर आढ़तियों के माध्यम से फसलों की खरीद शामिल है। आढ़तियों की माँग यह भी है डीबीटी के तहत किसानों के खाते में किए जा रहे सीधे भुगतान से उनका नुकसान हो रहा है।
किसान यूनियन का खेल
दो साल चले किसान आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाले भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के विभिन्न गुटों ने इस मामले में उतर कर, सरकार से जल्द खरीद की माँग की है। अपनी माँगों को लेकर, बीकेयू (चारुनी) गुट के प्रमुख गुरनाम सिंह चारुनी सैकड़ों किसानों के साथ कुरुक्षेत्र के शाहाबाद अनाज मंडी में धरना प्रदर्शन करने पहुँचे। उन्होंने हरियाणा सरकार को तुरंत खरीद शुरू नहीं करने पर गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी। उन्होंने क्षेत्र के किसानों को शाहाबाद मंडी पहुंच कर एनएच 44 को अवरुद्ध करने का आवाह्न किया।
इसके अलावा हरियाणा में मौजूद अन्य किसान संगठनों का भी यही हाल है। सभी ने अपने नेताओं और लोगों को करनाल और बाकि सारे जिलों के मंडियों में पहुँचकर धरना प्रदर्शन और चक्का जाम करने का आवाह्न किया है।
किसानों का दर्द
किसानों के 2 लाख क्विंटल अनाज, लगातार बारिश और कई दिनों से चल रहे हड़ताल के कारण ख़राब होने के कगार पर हैं। अब अपनी उपज का सही मूल्य पाने और अनाज को ख़राब होने से बचने के लिए किसानों ने भी हड़ताल पर जाने का ऐलान किया है।
अब किसानों ने साफ शब्दों में कहा है कि आढ़ती और सरकार के झड़प में किसानों का बड़ा नुकसान हो रहा है। किसान दिन-रात एक कर, महीनों खून-पसीना बहाकर फसल तैयार कर रहे है, और हर बार उसे आढ़तियों, व्यापारियों और सरकार की राजनीति के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
किसान यूनियन, आढ़ती और किसानों के रिश्ते
हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में किसान यूनियन, आढ़ती और किसानों का नाता काफी उतार-चढ़ाव भरा है। हरियाणा के इंद्री अनाज मंडी में हुए सम्मलेन में आढ़तियों के साथ किसान यूनियन के नेता भी मौजूद थे। इसी सम्मलेन में 19 सितम्बर से आंदोलन की बात पर सहमति बनी थी। अब-जब आन्दोलन से किसानों को बड़ा नुकसान हो रहा है तो यूनियन किसानों के हक़ की बातें कर रहे हैं।
इंद्री मंडी में हुए सम्मलेन में मंडी के प्रधान ने किसानों से अपनी फसल को मंडी में नहीं लाने की अपील की थी, किसान की कटी फसल को घर पर रखने से होने वाले उनके नुक़सान का आकलन कोई नहीं कर रहा। इसी बीच किसान नेता और मंडी प्रधान ने किसानों के साथ सहानुभूति और उनका साथ देने का वादा किया लेकिन लाखों क्विंटल फसल जब मंडी में खुले में पड़ी है तो कोई पूछने वाला नहीं है।
किसानों की बदहाली के कारक
हरियाणा समेत पंजाब के किसानों के भविष्य भी अधर में लटके हुए हैं। दोनों ही राज्यों में आढ़तियों के कारण सरकार द्वारा खरीद और मंडी में खुले अनाज की खरीद बिक्री में देरी हो रही है। केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों का विरोध कर, उसे लागू ना होने देने का परिणाम अब हर फसल की कटाई के बाद देखी जा सकती है।
गौरतलब है कि मंडियों में आढ़ती की प्रक्रिया इन्हीं दोनों राज्यों में सबसे ज्यादा देखने को मिलती है। और यही कारण है कि सरकार, यूनियन और आढ़तियों के बीच किसान पिसकर रह जाता है।
सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रिया
इन सारे विरोध प्रदर्शन और हंगामे के बीच सोशल मीडिया पर लोगों ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। लोगों ने इस बदहाली के लिए किसानों को और आढ़तियों को जिम्मेदार बताया। लोगों ने कहा, जब सरकार सुधार लाना चाहती थी, किसानों को ‘आढ़तियों’ से मुक्त करना चाहती थी और कृषि कानून लाना चाहती थी, तो किसानों ने इसका विरोध किया। अब जब दबाव में आकर उन्होंने कृषि कानूनों को निरस्त कर दिया तो वही किसान उन्हें आढ़तियों के चंगुल से मुक्ति दिलाने की मांग कर रहे हैं।
एक अन्य यूजर ने लिखा, “हड़ताल पर ‘आढ़ती’ क्यों हैं? किसान विरोध के दौरान तो उन्होंने किसानों को स्वेच्छा से मंडियों के बंधन में रहने के लिए मनाने के लिए इस्तेमाल किया था. अब इसमें सरकार को हस्तक्षेप क्यों करना चाहिए?”
किसान आंदोलन के समय लगे नारे जिसमें किसानों ने आढ़तियों को घर का सदस्य बताया था, कि याद दिलाते हुए एक यूजर ने सवाल पूछा, “क्या अब किसानों और आढ़तियों का अधिक घनिष्ठ संबंध नहीं है? आगे बढ़ो, इस पारिवारिक विवाद को आपस में ही सुलझाओ।”
आगे की राह
किसानों ने चेतावनी दी कि अगर आढ़ती और सरकार ने जल्द कोई फैसला नहीं लिया तो हरियाणा के किसान अपना धान पंजाब ले जाने को मजबूर होंगे। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि पंजाब में भी आढ़तियों और सरकार के बीच इन्हीं सारे मुद्दे को लेकर कलेश चल रहा है। ऐसे में आगे इस मामले की सुनवाई और समाधान को लेकर कुछ भी कह पाना मुश्किल प्रतीत हो रहा है।