क्या सविता भाभी गुजराती है? कुछ साल जेएनयू में एक रिसर्च पेपर जारी किया गया था। इस रिसर्च में एक पोर्न कैरेक्टर सविता भाभी (Savita Bhabhi) पर ‘रिसर्च’ की गई थी और ये साबित करने का प्रयास किया गया था कि ये चरित्र एक गुजराती परिवार से लिया गया है। सविता भाभी यानी एक ऐसी महिला जो अपने अड़ोस-पड़ोस में रहने वाले, हर आने-जाने वाले से अफेयर चलाती है। अश्लीलता के बाज़ार में जारी की गई एक एडल्ट मैगज़ीन को गुजराती परिवार से जोड़ने का कारनामा कर दिया गया था।
आपको याद होगा कि हमारे देश के सिनेमा में एक दौर था जब समाजवादी प्रयोग किए जाते थे, राजकपूर को तो सोशलिस्ट शोमैन कहा जाने लगा था, उनकी एक के बाद एक ऐसी फ़िल्में आईं जो क्रांति की बातें करती थीं, अमीर का पैसा लूटकर गरीब को बाँटने वाले डकैत का महिमामंडन करती थीं। इसके बाद भारतीय सिनेमा में मज़दूर एकता वाला दौर आया जिसमें फ़ैक्ट्री मज़दूरों की माँगों को केंद्र में रखकर फ़िल्में बनाई जाने लगीं।
अब एक नया प्रचलन आया है, जिसमें फ़िल्मों या वेब सिरीज़ के ज़रिए समाज में बजारवाद को ठूँसने का प्रयोग किया जा रहा है। बाजारवाद भी ऐसा नहीं कि आपको अपनी संस्कृति में कोई विदेशी चीज डालने का प्रयोग करना है, बल्कि ज़बरदस्ती एक ऐसा प्रयोग आपके सामने रखना जिसके द्वारा सबसे ताकतवर दिखने वाले किसी व्यक्ति को चोट पहुँचाने के इरादे से आपको आहत किया जा सके। ऐसा व्यक्ति या चेहरा, जिसे मौजूदा दौर में एक बड़ी आबादी द्वारा आदर्श के तौर पर देखा जा रहा हो। तो सोचिए कि फ़िलहाल ऐसा आदमी कौन हो सकता है? और उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या हो सकती है?
कांतारा: भारतीय सिनेमा की विश्रांति को दूर करती एक असाधारण दैव की कथा
OTT प्लेटफॉर्म अमेज़न प्राइम पर एक वेब सीरीज आई है Happy Family Conditions Apply, आपको साराभाई vs साराभाई सीरियल याद होगा, कुछ वैसा ही इस वेब सीरीज को बनाने की कोशिश की गई है। एक गुजराती परिवार है ढोलकिया, जिसमें कई क़िस्म के किरदार हैं, यहाँ तक कि समय इसके पाँचवें एपिसोड में एक ब्लैक यानी अश्वेत बहू को भी इंट्रोड्यूस किया जाता है।
सबसे पहले इस वेब सीरीज के कुछ मुख्य पात्रों पर नज़र डालते हैं, जिनमें राज बब्बर परिवार के सबसे सीनियर गार्जन बने हैं, इनकी पत्नी बनी है रत्ना पाठक शाह, इनके बेटे बने हैं अतुल कुलकर्णी, इसके अलावा बाक़ी कैरेक्टर के नाम बताने शायद आवश्यक नहीं हैं क्योंकि इन तीन नामों से ही तस्वीर काफ़ी हद तक स्पष्ट होने लगती है।
एक गुजराती परिवार है, जिसमें एक दादी हैं रत्ना पाठक शाह, जो शैम्पेन पीती है, हिंदू घृणा से भरे हुए संवाद उनके हिस्से रखे गये हैं, जैसे “घर में उल्लू आया है, क्या ये चेक ले के आया है?” उल्लू को हिंदू धर्म में लक्ष्मी का वाहन माना जाता है, और इसी बहाने चुपके से इस एक डायलॉग के बहाने ये वेब सिरीज़ किस चीज पर चोट करना चाहती है, वो आप जानते हैं। नसीरुद्दीन शाह की पत्नी रत्ना पाठक शाह के हिस्से ऐसे ही कुछ और डायलॉग भी आए हैं, जैसे एक सीन में वो कहती है कि विवाह के वक्त सिंदूर मंत्र पढ़ने वाले पंडित के सर पे लगा देना चाहिये। यानी इस गुजराती परिवार में दादी को ही टोटल वोक बना दिया गया है और यहाँ सास को बड़े आराम से हरामख़ोर बता दिया जाता है।
बच्चों का पापा यानी अतुल कुलकर्णी टिपिकल इंडियन मैन बताया गया है, जो इसलिए हास्यास्पद और दया का पात्र दिखाया गया है क्योंकि वो फ़ैमिली वैल्यूज़ पर ज़ोर देता है, बच्चों को एकसाथ एक ही घर में रहते देखना चाहता है। अतुल कुलकर्णी की पत्नी आयशा जुल्का हैं, जो अपने बेटे के साथ फ़ोन पे ये चर्चा करते दिखाई गई है कि वो आज अपनी पत्नी के साथ क्या करने वाला है, वो ब्लाइंडफोल्ड क्यों ख़रीद रहा है। ये परिवार घर पे अश्लील फ़िल्मों पर चर्चा करता है, और घर के ट्रेडिशनल पापा को “गुज्जू With कैपिटल G” जैसे नाम दिये गये हैं।

अब सवाल ये है कि आख़िर एक गुजराती परिवार ही इस वक्त क्यों निशाने पर है। आप देखिए कि केंद्र में इस वक्त मोदी और शाह दो ऐसे नाम हैं जो गुजरात से आते हैं। देशी लिब्रल्स के मुँह से आपने अक्सर आपने “देश पर गुजरातियों का क़ब्ज़ा” जैसी पंक्तियाँ सुनी होंगी। अब अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात करें तो उनकी सबसे बड़ी पहचान जो उनके चाहने वालों के दिमाग़ में है वो एक आदर्श बेटे की है, जो किसी भी बड़े छोटे कार्य से पहले अपनी माँ का आशीर्वाद लेने जाते थे, उनके साथ चाय पीते थे, हल्के फुलके अन्दाज़ में उनसे बातें करते थे और उनके पैर छू कर वापस अपने काम में लग जाते। यानी गुजरात का एक ऐसा परिवार, जिसका उदाहरण देश के किसी भी कोने में एक माँ अपने बेटे को दे सकती है।
अब एक और सवाल ये आता है कि क्या यही वजह तो नहीं है कि एक बिना सर पैर की वेब सिरीज़ के लिए एक गुजराती परिवार को चुन लिया जाता है ताकि ‘पिलर्स ऑफ पॉवर’ पर ही चोट कर अपनी कुंठा निकाली जा सके? ऐसे समय में जब प्रधानमंत्री मोदी की पारिवारिक पृष्ठभूमि का मजाक बनाने वाले नेहरूघाटी सभ्यता के तमाम पत्रकार ही विपक्षी दल के दो भाई बहनों के बीच के रिश्ते को सबसे क्यूट दिखाने में लग जाते हैं।
हमने अक्सर देखा है कि फ़िल्मों से भारतीय जनमानस किस हद तक प्रभावित रहता है, इसमें प्रगतिशीलों ने जब जैसे चाहा, अपने क़िस्म के प्रयोग किए, कभी समाजवादी, कभी मसाजवादी। इन्हीं फ़िल्मों के ज़रिए समाज के युवाओं की दिशा समय-समय पर तय की गई, कभी सच्चे तो कभी झूठे घटनाक्रमों के ज़रिए। भारतीय सिनेमा इंडस्ट्री में ही आमिर ख़ान जैसे लोग भी हैं जो तारे ज़मीन पर फ़िल्म के वक्त कहते हैं कि फ़िल्में समाज को शिक्षित करने के लिए होती हैं और जब इसी आमिर ख़ान का PK फ़िल्म में हिंदू घृणा के लिए बहिष्कार किया जाता है, तब वो कहते हैं कि फ़िल्में तो सिर्फ़ मनोरंजन के लिए होती हैं।
राहुल गांधी के झूठ, कैंब्रिज की ऑडियंस और उसकी चिंता
कई उदाहरण हैं, मदर इंडिया जैसी फ़िल्मों में पंडित को बलात्कारी और ठग बताने का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि समाज में पंडितों की यही तस्वीर बन गई। भूलभुलैया फ़िल्म के सबसे ताजा संस्करण को याद करेंगे तो उसमें हिंदुओं की आस्था पर चोट करने के लिए जानबूझकर कहा जाता है कि “पंडित जी आपके गोमूत्र का टाइम हो गया है” यही भाषा पुलवामा आतंकी हमले से पहले आदिल डार ने भी इस्तेमाल की थी। पंडितों को चोर, पाखंडी बता कर हर तरह से अपमानित करने की कोशिश की जाती है। पंडित रात को घर से चाँदी चुराते दिखाए गए हैं, इस सीन का फ़िल्म से कोई वास्ता तक नहीं।
अगर सतही तौर पर देखें तो ये चीजें इन फ़िल्मों के साथ ही आ कर चली भी जाती हैं लेकिन यह समाज के परसेप्शन का निर्माण करने का काम ज़रूर करती हैं। आप अगर इस हैप्पी फ़ैमिली वेब सिरीज़ को देखेंगे तो आपको भी यह स्पष्ट हो जाएगा कि कहीं ये वेब सिरीज़ गुजराती परिवारों को ही निशाना बनाने के लिए तो नहीं तैयार की गई है, और इसके लिए एक गुजराती परिवार को ही क्यों चुना गया इसका जवाब भी शायद आपको मिल गया होगा। देश में जो सबसे आगे दिख रहा है, उसी को नोंचकर अपनी ख़ुन्नस मिटाई जाए और भविष्य के लिए के और नैरेटिव लोगों के मन में डाल दिया जाए।