हल्द्वानी के अतिक्रमण मामले (Illegal encroachment in Haldwani) में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आपने तो सुन ही लिया, सुप्रीम कोर्ट ने मानवाधिकारों को आगे रखते हुए रेलवे पर किये गए अतिक्रमण पर JCB चलाने से रोक लगा दी है।
ये रोक के आदेश वहां दिए गए हैं जहाँ फैज की शायरी पढ़ने वालों ने शाहीनबाग जैसा माहौल बनाने की पूरी तैयारियां कर ली थीं, लेकिन यही सुप्रीम कोर्ट ऐसी क्यूट क्यूट दलीलें तब देना भूल गई थी जब गुजरात जैसे राज्यों में हिन्दुओं की बस्ती को खाली करवाना था।
जब बात हिंदू बस्तियों की हो तब यही सुप्रीम कोर्ट गुंडा जैसा आदेश देता है कि “साहब क्या मतलब है अतिक्रमण का, घर नहीं है तो अतिक्रमण कर लोगे? अलाना-फ़लाना!” लेकिन जब बात ‘सेक्युलर अतिक्रमण की हो, तब कोर्ट मानवता की दलीलें देता है। यह कोई हवा हवाई बात नहीं है, बल्कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ही समय-समय पर अपने विरोधाभास दर्ज करता रहा है।
हल्द्वानी में नहीं चलेगा बुलडोजर: SC ने दिया मानवता का हवाला, धामी सरकार को नोटिस जारी
आपको थोड़ा पीछे ले चलते हैं और समझाते हैं पूरी क्रोनोलॉजी।
दिसम्बर, 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात और हरियाणा के मामले में कहा था कि हमें यह सच्चाई स्वीकार करनी होगी कि आज देश के सभी बड़े शहर झुग्गी-बस्तियों में बदल गए हैं। कोर्ट ने यहाँ तक कहा कि अगर रेलवे अपनी जमीन नहीं खाली कराता तो यह करदाताओं के पैसे की बर्बादी होगी।
ध्यान देने वाली बात यह है कि यह परिवार भी यहाँ 60 साल से रह रहे थे और तब भी ऐसे ही दिसंबर की ठण्ड का मामला था जैसा आज के हल्द्वानी में है। लेकिन तब कोर्ट ने रेलवे को तुरंत इन परिवारों को नोटिस देने का आदेश दिया था, यह कहते हुए कि अगर कोई इस मामले में गड़बड़ करता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
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इन झुग्गी-झोपडी में रहने वालों को मात्र 14 दिन का समय इनको खाली करने के लिए कहा गया था गुजरात में यह सूरत-उधना रेलवे लाइन के निर्माण से जुड़ा हुआ था जिसके निर्माण में यह झुग्गी बस्तियां आड़े आ रहीं थी, तब इन झुग्गी बस्तियों में रहने वालों के लिए कोई पुनर्वास की व्यवस्था नहीं की गई बल्कि यह कह दिया गया कि वह जाकर राज्य सरकार से अपनी व्यवस्था करने को कहें।
सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान रेलवे को डाँट तक लगाते हुए कहा था कि आखिर आपने इतने दिनों तक इस जमीन को खाली कराने के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाए जबकि आपके पास अपनी पुलिस फ़ोर्स है, ऐसे में आपने जमीन को खाली कराने के लिए PUBLIC PREMISES ACT का उपयोग क्यों नहीं किया।
तब तो कोर्ट ने ये कह दिया था कि अतिक्रमण करने वालों के आवास की समस्या के चक्कर में इन्हें अतिक्रमण करने की परमिशन नहीं दे सकते। आज तो लेकिन कोर्ट कुछ और ही कह रही है। आज कोर्ट को कभी ठण्ड दिख रही है तो कभी बेचारों के पुनर्वास की समस्या दिख रही है, कभी कह रही है कि बेचारे सात दिन में कहाँ जाएंगे।
हल्द्वानी के मामले में आज सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
हल्द्वानी कई दिनों से विवादों में है, उत्तराखंड के इस शहर में अवैध अतिक्रमण को लेकर काफी दिनों से विवाद चल रहे थे। आपने देखा होगा कि शुरुआत से ही इस मामले को सार्वजनिक संपत्ति पर अतिक्रमण के बजाय “मुस्लिम समुदाय पर अत्याचार” की तरह पेश करने की कोशिश की जा रही थी।
दरअसल हाईकोर्ट के आदेश पर हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के आसपास बसे बनभूलपुरा क्षेत्र से रेलवे की करीब 78 एकड़ ज़मीन से अतिक्रमण हटाया जाना है। इस अतिक्रमण हटाने के अभियान को लेकर एक विशेष ‘सेक्युलर’ गैंग द्वारा विक्टिम कार्ड खेलकर यहाँ शाहीनबाग़ दोहराने का प्रयास भी किया गया।
इस मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अवैध अतिक्रमण पर बुलडोजर चलाने के मामले पर रोक लगाई, जिस दौरान जस्टिस संजय कौल ने कहा कि इस मामले को मानवीय नजरिए से देखना चाहिए और इस मामले में समाधान की जरूरत है।
कोर्ट में आज की सुनवाई के दौरान क्या क्या महत्वपूर्ण पॉइंट्स थे, उन पर एक नजर –
- कोर्ट का कहना है कि ये लोग 50-60 साल से यहाँ रह रहे हैं, और इन्हें सिर्फ 7 दिन में बेघर कर देने का आदेश ठीक नहीं है।
- कोर्ट ने कहा कि कुछ पुनर्वास/ Rehabilitation की योजना बनाई जानी चाहिए।
- जस्टिस ओका ने कहा कि रेलवे का अतिक्रमण और वहां से लोगों को हटाने का मानवीय नजरिये से भी देखा जाना चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि इसमें ये जरूर देखा जाना चाहिए कि क्या वे लोग पुनर्वास यानी Rehabilitation के हकदार हैं या नहीं?
- सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे के हित को देखते उत्तराखंड राज्य को भी नोटिस जारी करते हुए कहा की जिन लोगों का जमीन पर अधिकार नहीं है, उन्हें पुनर्वास योजना के साथ हटाना होगा।
- हल्द्वानी में अवैध अतिक्रमण पर सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई 7 फरवरी को होगी।
क्या है हल्द्वानी का पूरा मामला
नैनीताल हाईकोर्ट ने पिछले 26 दिसंबर को हल्द्वानी के बनभूलपुरा गफूर बस्ती में रेलवे की भूमि पर किए गए अतिक्रमण को लेकर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए थे और कोर्ट ने एक सप्ताह के भीतर नोटिस देकर इसे ध्वस्त करने के आदेश दिए हैं।
यह बनभूलपुरा इलाका जहाँ पर यह विवाद चल रहा है, यह हल्द्वानी शहर के रेलवे स्टेशन के आसपास बसा हुआ है, इस इलाके में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा है, बताया जा रहा है कि हल्द्वानी स्टेशन के बाहर का भी पूरा इलाका अतिक्रमणकारियों के कब्जे में हैं।
आपको यह भी बता दें कि इस इलाके में कोरोना महामारी के दौरान कई बार तनावपूर्ण हालात सामने आए थे और पत्थरबाज़ी की भी घटनाएं हुई, हालात के खराब होने का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इलाके में कर्फ्यू तक की नौबत आ गई थी।
रेलवे की भूमि पर कच्चे – पक्के मकान और दुकान तक बना लिए गए हैं, इलाके में रहने वाले अतिक्रमणकारियों ने स्टेशन के बाहर कबाड़ के गोदाम बना लिए हैं।
रेलवे की यह ज़मीन रेलवे के इस्तेमाल की है, लेकिन इसके एक बड़े इलाके में पक्के घरों का निर्माण हो चुका है। स्थानीय लोग बताते हैं कि यह अतिक्रमणकारी बाहर के इलाकों से आए हुए हैं और कई संदिग्ध गतिविधियों में भी संलिप्त हैं। जबकि, उत्तराखंड के ही पहाड़ी लोग आज भी हल्द्वानी जैसे इलाकों में किराए के मकानों में रहने को मजबूर हैं।स्थानीय लोग इन अतिक्रमणकारियों द्वारा संसाधनों की लूट से परेशान हैं।
रेलवे की जमीन के अतिक्रमण के इतिहास पर एक नजर
रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण का यह खेल 1975 से ही जारी है। 47 साल से अधिक का समय गुजर चुका है, इस बीच पक्के मकानों के साथ ही इलाके में धार्मिक स्थल भी बनाए जा चुके हैं, अधिकाँश अतिक्रमणकारियों आधार, पैन और वोटर आईडी तक बनवा चुके हैं।
दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को दिशा-निर्देश दिए थे कि अगर रेलवे की भूमि में अतिक्रमण किया गया है तो पटरी के आसपास रहने वाले लोगों को दो सप्ताह के अंदर तथा उसके बाहर रहने वाले लोगों को 6 सप्ताह में नोटिस देकर हटाया जाए।अतिक्रमणकारियों को हटाने की लम्बे समय से कोशिश चल रही है। लेकिन कई स्थानीय नेता अपने वोटबैंक के लालच में बराबर प्रशासन की कार्रवाई के खिलाफ उतर आते हैं।
देढ़ दशक पहले भी इस मामले में बड़ा अभियान चलाया गया था। पूरे इलाके को छावनी में बदल दिया गया था। दो दिन तक चले अभियान में काफी इलाकों को खाली कराने में सफलता मिली थी। कब्जा हटाने के दौरान लोगों के घरों के नीचे से रेलवे की पटरी तक निकली थी। लेकिन समय के साथ इस इलाके में अतिक्रमणकारियों ने अपना कब्जा पुनः जमा लिया, और अब हालत और गंभीर हो चुके हैं।
रेलवे की रिपोर्ट के मुताबिक, अतिक्रमण की जद में आए चार हज़ार तीन सौ पैंसठ (4,365) मामलों की रेलवे प्राधिकरण में सुनवाई हुई। तब अतिक्रमणकारी कब्जे को लेकर कोई ठोस सबूत नहीं दिखा पाए।
कोर्ट द्वारा कई आदेशों के बाद भी इन अतिक्रमणों को हटाने में इतनी समस्याएं क्यों आ रही हैं, इसका जवाब स्थानीय राजनीति और वोटबैंक की राजनीति में छुपा हुआ है।
किसकी पनाह में हुआ रेलवे का अतिक्रमण?
लगातार 47 साल से इन अतिक्रमणकारियों को नेताओं की भी पूरी पनाह मिलती रही है। जिन नेताओं ने इन अतिक्रमणकारियों को खुद की राजनीति की सीढ़ी बनाया, उन्होंने इनको न सिर्फ सरकारी भूमि पर जमे रहने का हक दिया, बल्कि इस दरियादिली के बदले वोट का अधिकार भी दिलाया।
कांग्रेस पार्टी की नेता इंदिरा हृदयेश ने वोट बैंक के लिए यहाँ के लोगों को पनाह दी, जिसके बाद हर चुनाव में उन्हें यहाँ से अच्छे खासे वोट मिलते रहे। वह लम्बे समय से इस क्षेत्र से विधायक रही हैं। उत्तराखंड के बनने से पहले वह उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्य थी और बाद में लगातार उत्तराखंड के बनने के बाद हल्द्वानी का प्रतिनिधित्व करती रहीं, लेकिन हल्द्वानी के लोगों की इस पीड़ा पर उन्होंने कभी ध्यान नहीं दिया।
इंदिरा हृदयेश के निधन के बाद उनकी राजनैतिक विरासत उनके पुत्र सुमित हृदयेश ने संभाली, जो विधानसभा चुनाव में हल्द्वानी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने, उनके विधायक बनने में इस वनभूलपूरा की गफूर बस्ती का बड़ा योगदान है, उन्हें इस बस्ती से बड़ी संख्या में वोट मिले थे।
आपको यह भी बता दें कि इस इलाके में कोरोना महामारी के दौरान कई बार तनावपूर्ण हालात सामने आए हैं और पत्थरबाज़ी की भी घटनाएं हुई हैं। हालात के खराब होने का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इलाके में कर्फ्यू तक की नौबत आ गई थी।
अब इन्हीं लोगों का समर्थन स्थानीय विधायक सुमित हृदयेश कर रहे हैं, सुमित हृदयेश ने कॉंग्रेस नेता सलमान खुर्शीद, “एक बदले चार को मारने” जैसे बयान देने वाले इमरान प्रतापगढ़ी के साथ मिलकर अतिक्रमणकारियों के समर्थन में इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
हल्द्वानी उत्तराखंड का दूसरा सबसे बड़ा शहर है और कुमाऊं क्षेत्र का प्रवेश द्वार भी है और यहाँ की ऐसी स्थिति न सिर्फ रेलवे बल्कि उत्तराखंड के स्थानीय लोगों और पर्यटन के लिए भी हानिकारक है।
ऐसे में कुछ हजार वोटों के लिए अवैध अतिक्रमण को समर्थन देने की कांग्रेस नेताओं की यह परम्परा प्रदेश और प्रदेश की स्थानीय पहाड़ी जनता के लिए खतरनाक है।
सिर्फ सुमित हृदयेश ही नहीं, ‘उत्तराखंडियत’ वाले उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी इस मामले में अतिक्रमणकारियों के पक्ष में खड़े दिखाई दे रहे हैं। रावत ने कहा है कि प्रशासन की मिलीभगत से लोगों के 60-70 साल पुराने आशियाने तोड़े जा रहे हैं, जबकि इस मामले में अतिक्रमण हटाने का आदेश हाईकोर्ट ने दिया है।
अवैध अतिक्रमण के साथ-साथ वक़्फ़ की संपत्ति भी चर्चा में
हल्द्वानी में अतिक्रमण के मुद्दे के चर्चा में आने के साथ ही वक़्फ़ भी ट्रेंड करने लगा है। दरअसल उत्तराखंड में बदलती डेमोग्राफी एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। सबसे ज्यादा हैरान तो लोग रातोंरात पैदा होने वाली अवैध मजार देख कर हैं।
हल्द्वानी मामले के राष्ट्रीय खबर बनते ही ट्विटर पर उत्तराखंड राज्य की बदलती डेमोग्राफी और इस में हो रहे अवैध कब्जे पर भी बहस छिड़ गई। इसी कारण वक्फ का मामला भी फिर उठ गया। समुदाय विशेष के अनुसार, वक्फ प्रॉपर्टी वह संपत्ति है जो अब केवल धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए उपलब्ध है, और संपत्ति का कोई अन्य उपयोग या बिक्री प्रतिबंधित है। इस्लामी शरिया कानून के अनुसार, एक बार वक्फ स्थापित हो जाने के बाद संपत्ति वक्फ को समर्पित कर दी जाती है, यह हमेशा के लिए वक्फ संपत्ति के रूप में बनी रहती है।
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पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड में वक़्फ़ की सम्पत्तियाँ तेजी से बढ़ी हैं। अगर आंकड़ों को देखा जाए तो सबसे ज़्यादा वक़्फ़ सम्पत्तियाँ राजधानी देहरादून और धर्मनगरी हरिद्वार में हैं। इसके अलावा पौड़ी, अल्मोड़ा और चंपावत जैसे दूरदराज के पहाड़ी जिलों में भी वक्फ की अच्छी खासी सम्पत्तियाँ हैं। जबकि उधम सिंह नगर और नैनीताल जैसे जिले, जहाँ से उत्तर प्रदेश की सीमा निकट है वहां पर यहाँ वक्फ सम्पत्तियाँ सैकड़ो में हैं।
हल्द्वानी, जहाँ पर इस मामले को लेकर बवाल चल रहा है, यह नैनीताल जिले का हिस्सा है। आंकड़ों के अनुसार नैनीताल जिले में 451 वक़्फ़ की सम्पत्तियाँ हैं।
फ़िलहाल कोर्ट द्वारा फैलाए गये रायता के बीच हल्द्वानी प्रकरण की सफलता यह कही जा सकती है कि इस बहाने देवभूमि में अवैध अतिक्रमण का विषय ‘ग्लोबल’ बन चुका है। कोर्ट का कहना है कि 7 फ़रवरी को ही अब हल्द्वानी पर बात की जाएगी।