गुजरात और हिमाचल में विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। गुजरात में 182 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव के लिए वोटों की गिनती बृहस्पतिवार शाम तक पूरी हुई। गुजरात में साल 2017 के मुकाबले इस बार दोनों ही चरणों में कम मतदान हुआ। जहां, पहले चरण में 60.20% लोगों ने वोट डाला था, तो वहीं 5 दिसंबर को हुए दूसरे चरण के मतदान में 64.39% लोगों ने मतदान किया।
शुरुआती रुझानों में भाजपा जहाँ बहुमत से कहीं आगे निकल गई थी, वहीं कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का हाल मीडिया द्वारा किए गये दावों से एकदम उलट निकले। गुजरात में साल 2002 में भाजपा को 127 सीटों पर जीत मिली थी। इस बार यह आंकड़ा 150 से भी ऊपर चला गया। चुनाव आयोग के मुताबिक, गुजरात में भाजपा ने 156, कांग्रेस ने 17, AAP ने 5 और अन्य ने 3 सीटों पर जीत दर्ज की है।
गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव के नतीजे आख़िरकार सामने हैं। हो वही रहा है जिसका अंदाज़ा था, यानी गुजरात में भाजपा की जीत और हिमाचल में भाजपा की हार, इसे मैं भाजपा की हार इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि कांग्रेस भले ही सरकार बना ले लेकिन कम से कम उसने जीतने लायक़ माहौल अपने लिए अभी तैयार नहीं किया है।
कई क़िस्म के एग्जिट पोल्स भी आपने देखे जो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पार्टी AAP द्वारा बृहस्पति ग्रह पर सरकार बना लेने का भी दावा कर रहे थे, लेकिन हुआ आख़िर में कुछ कुछ वही जो ‘टुडे चाणक्य’ ने अंदाज़ा लगाया था। वरना अक्सर एग्जिट पोल्स जो बात कह रहे होते हैं वो कह तो रहे होते हैं लेकिन उनकी ही आत्मा जान रही होती है कि ‘आएगा तो मोदी ही’। एग्जिट पोल तब अक्सर ग़लत हुआ करते हैं जब इंसान की घृणा किसी विचारधारा से नहीं बल्कि व्यक्ति विशेष से हो जाए।
Gujarat Election में BJP की रिकॉर्डतोड़ जीत, HP में OPS ने नहीं बदलने दिया रिवाज | चुनाव विश्लेषण
हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन स्कीम रहा निर्णायक
हिमाचल प्रदेश की 68 सीटों में से कांग्रेस ने 40 सीटें जीत कर भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया है। भाजपा ने 25 सीटें, जबकि तीन निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है। पहाड़ी राज्य में आम आदमी पार्टी अपना खाता तक नहीं खोल सकी और कई सीटों पर उसे नोटा से भी कम वोट मिले हैं।
हिमाचल में ओल्ड पेंशन स्कीम का मामला निर्णायक साबित हुआ, इन मतदाताओं की संख्या इस वक्त क़रीब सवा लाख है और उनके परिवारों को भी जोड़ लिया जाए तो हर विधानसभा में उनके लगभग तीन हज़ार वोट हो जाते हैं। हिमाचल प्रदेश के चुनावों के बाद भाजपा के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम एक बड़ा विमर्श साबित होने वाला है और यह भी संभव है कि साल 2024 में आने वाले लोकसभा चुनाव से पूर्व केंद्र सरकार इसके लिये कोई रास्ता तो ज़रूर निकालने पर विचार करेगी। आप देखिए कि ओल्ड पेंशन स्कीम का मामला किस हद तक चुनाव में दखल कर सकता है क्योंकि नई पेंशन स्कीम से जनता बहुत संतुष्ट नज़र नहीं आ रही है।
हिमाचल में AAP के लगभग सभी कैंडिडेट की जमानत ज़ब्त हुई है और कई ऐसे प्रत्याशी हैं जिन्हें NOTA से भी कम वोट हुए, ऐसा ही CPIM और AAP के कई प्रत्याशियों के साथ उत्तराखण्ड में भी हुआ था। हिमाचल में ही CPIM का भी सूपड़ा साफ हुआ है। राजधानी शिमला की ठियोग सीट से कम्युनिस्ट विधायक राकेश सिंघा हार गए हैं। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि शिमला के कॉलेज और यूनिवर्सिटीज में कम्युनिस्टों की अच्छी खासी तादात है।
फ़िलहाल संघर्ष अब हिमाचल में कांग्रेस के सामने है। बड़ी मुश्किल से किस राज्य में सीटें आ रही हैं तो वहाँ पर कुर्सी के लिए सर फ़ुटव्वल ना मचे ऐसा हो ही नहीं सकता। कांग्रेस ने शुरुआती रुझान देखने के बाद ही केंद्र से अपने 2 नेता हिमाचल भेजे, कि जा कर रायता फैलने से रोका जा सके। संभावना है कि हिमाचल में मुख्यमंत्री पद के चुनाव के लिए भी खूब भिड़ंत हो। प्रतिभा सिंह चुनाव से पहले ही यह बोल चुकी हैं कि जिसके गुट से ज़्यादा विधायक आएँगे उसी गुट का मुख्यमंत्री भी बनेगा।
गुजरात में BJP की ऐतिहासिक जीत
गुजरात में सभी जानते थे कि बीजेपी आएगी लेकिन जिस तरह से बीजेपी आई है वह ऐतिहासक है और सभी विपक्षी दलों की हवा ख़राब करने वाला है। AAP को लोग ‘वोट कटुआ’ और बीजेपी की B टीम बता रहे हैं क्योंकि निसंदेश उन्होंने कांग्रेस को नुक़सान तो पहुँचाया ही है।
भाजपा गुजरात में पिछले 27 साल से सत्ता में है और अगले चुनाव तक भाजपा यहाँ सत्ता में अपने 32 साल पूरे कर चुकी होगी। इसका यह मतलब है कि बीजेपी आपातकाल के दौर के बाद लगातार सत्ता में रहने के वाम दलों, जिन्होंने कि पश्चिम बंगाल में 34 साल सत्ता सुख भोगा, उनके रिकॉर्ड की तरफ आगे बढ़ रही है। इसके अलावा, वह SDF यानी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के रिकॉर्ड को भी तोड़ चुकी है, जिन्होंने कि पूर्वोत्तर में स्थित सिक्किम राज्य में 24 साल तक राज किया।
गुजरात पिछले 27 साल से भाजपा का क़िला है, लेकिन इस बार की जीत काफ़ी अलग है। इस चुनाव ने गुजरात को भाजपा का ऐसा किला बना दिया, जिसे अगले एक-दो चुनाव तक भेद पाना बाकी दलों के लिए बेहद मुश्किल होगा। यहाँ दो रिकॉर्ड भी बने हैं; पहला रिकॉर्ड ये है कि गुजरात के चुनावी इतिहास में किसी भी पार्टी की यह सबसे बड़ी जीत है। दूसरा ये कि कांग्रेस का यह अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है।
गुजरात की एक ख़ास सीट पर भी इस बार सबकी नज़र थी। मोरबी पुल हादसा आपको याद होगा। इसमें में लोगों की जान बचाने वाले भाजपा के कांतिलाल शिवलाल अमृतिया ने कांग्रेस के उम्मीदवार को हराकर जीत हासिल की। आपको याद होगा कि अक्टूबर माह में ठीक गुजरात चुनाव से पहले गुजरात में एक पुल हादसा हुआ था, उसमें क़रीब 135 लोगों की मृत्यु हो गई। भाजपा नेता कांतिलाल ने पुल हादसे में नदी में कूद कर लोगों की जान बचाने का काम किया था और जानता ने उन्हें अपना स्नेह दिया।
गुजरात चुनाव 2024 की फ़िल्म का ट्रेलर भी कहा जा रहा है। हालाँकि लोकसभा चुनाव से पहले अगले साल 9 चुनाव भी होने जा रहे हैं, ऐसे में तेलंगाना जैसे राज्यों में बीजेपी अपनी दावेदारी मज़बूती से रख सकती है और जिस तरह की जीत बीजेपी ने गुजरात में हासिल की है, वह आगामी चुनाव में अन्य राज्यों में मौजूद सरकारों के लिए भी एक संदेश है।
चुनाव से पूर्व भाजपा की गोलबंदी
गुजरात चुनाव के बैकग्राउंड में अगर जाएँ तो आप देखिए कि साल 2017 जब गुजरात का चुनावी साल था तब पाटीदार आंदोलन को दो साल हो चुके थे। इसका असर यह हुआ था कि भाजपा 16 सीटों के नुकसान के साथ 99 सीटों पर आकर रुक गई। भले ही पार्टी के लिए राहत की बात बस यही थी कि उसका वोट शेयर 2% बढ़कर 50% हो गया था। इस वजह से इस साल 2022 के विधान सभा चुनाव पर सबकी नजर थी और यह बेहद अहम भी था।
आप देखिए कि गुजरात में भाजपा की गोलबंदी कितनी मजबूत थी, सितंबर 2021 में भाजपा ने गुजरात में एंटी इनकंबेंसी (यदि ऐसा कुछ था भी) से निपटने के लिए CM-डिप्टी CM समेत पूरा मंत्रिमंडल ही बदल दिया और जो अब रुझान सामने आ रहे हैं उस से पता चल रहा है कि यह फ़ैसला कितना सही था।
लोगों ने यह फिर साबित कर दिया है कि उनके लिये सबसे प्रमुख मुद्दा केंद्र की राजनीति का है और अगर वहाँ पर मोदी जी हैं तो सब कुछ ठीक है। यह यक़ीन मोदी जी ने ख़ुद जीता है और इसके नतीजे ही गुजरात में सामने आए भी हैं। दूसरा यह भी है कि वो आज भी कांग्रेस को इस काबिल नहीं मानती कि भाजपा से कुछ मुद्दों पर नाराज़गी की वजह से वो कांग्रेस को सत्ता सौंप दे।
राहुल गाँधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का चुनाव पर प्रभाव
राहुल गाँधी सड़क पर हैं, प्रजा में प्यार बाँटने वाली कहानियाँ कैमरा वालों को सुना रहे हैं लेकिन गुजरात चुनाव ने साबित कर दिया है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का सीधा सीधा फ़ायदा भाजपा को मिल रहा है। राहुल गाँधी और भाजपा के बीच समानुपाति संबंध है, यानी राहुल गांधी जितना ज़्यादा दिखेंगे और बोलेंगे, भाजपा उतनी ही अधिक बड़ी जीत हासिल करती जाती है।
गुजरात में जो एक काम हो गया है, वो ये कि आम आदमी पार्टी ने 182 में से 181 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। इस वजह से मुकाबला थोड़ा बहुत त्रिकोणीय हो गया, लेकिन शायद त्रिकोणीय भी नहीं क्योंकि कांग्रेस की तो फिर भी कोई बात नहीं कर रहा था। अब आप केजरीवाल का मीडिया मैनेजमेंट बोलिए या फिर कुछ और लेकिन वो खबरों से कभी ग़ायब नहीं हुए। हालाँकि जिस लहर की बात वो हर दिन करते हैं वो कहीं नज़र नहीं आई।
केजरीवाल आज के समय में राजनीति में हर क़िस्म का प्रयोग कर रहे हैं, आपने उनके भाषण सुने होंगे कि केजरीवाल ख़ुद अपने IT सेल की भूमिका में उतरे हुए हैं। एक में तो ये भी कह रहे थे कि IB ने गुजरात में AAP की जीत का दावा कर दिया है। अब वो लोगों को गुमराह कर भी वोट हथिया लेने वाली स्थिति में खुलकर आ चुके हैं।
ये बात ज़रूर है कि गुजरात में AAP के हिस्से जितना कुछ आ रहा है वह नंबर भविष्य में शायद उनके काम कुछ हद तक आ जाएँ। लेकिन भाजपा के लिए यह तब भी चिंता की बात नहीं है क्योंकि उन्होंने तो पिछले ही रिकॉर्ड तोड़ कर जीत हासिल की है। गुजरात में AAP का वोट शेयर 13% के आसपास है। ये भी तय है कि AAP ने सबसे ज्यादा सेंध कांग्रेस के वोट बैंक में लगाई है। तीन राज्यों में स्टेट पार्टी का दर्जा प्राप्त AAP को गुजरात में भी यह दर्जा मिलने के साथ यह राष्ट्रीय पार्टी बन जाएगी।
मज़बूत स्थिति में होने के बाद भी BJP ने क्यों लगाई पूरी ताक़त
हर बार की तरह इस बार भी आम आदमी पार्टी ने जोर से कम, शोर के साथ अधिक चुनाव लड़ा और चुनावी परिणाम भी हर बार की तरह दल के सरकार बनाने के दावे के बिल्कुल उलट आये। दल दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू सका। भाजपा जानती थी कि आम आदमी पार्टी का कोई जनाधार नहीं है पर शायद एक वोट भी छिटक कर आम आदमी पार्टी की ओर जाना भाजपा को मंज़ूर नहीं था। ऐसा क्यों?
एक कारण शायद यह भी था कि आम आदमी पार्टी की गुजरात इकाई के नेता पहले आन्दोलनजीवियों के साथ देखे गए थे। वर्ष 2002 के दंगों को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश की छवि को नुकसान पहुँचाने वाले और उन दंगों को आधार बनाकर वर्षों तक एक तरह का उद्योग और एनजीओ चलाने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं के साथ उनके संबंधों के कारण भाजपा ने यह प्रयास किया कि इनके विरुद्ध गंभीर प्रचार करना आवश्यक है।
पंजाब में सरकार बनाना आम आदमी पार्टी के लिए दोधारी तलवार समान है। जबसे पंजाब में दल की सरकार बनी है, राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति खराब हुई है। पंजाब की भांति ही गुजरात के साथ पकिस्तान की सीमा लगी है और आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से आतंरिक सुरक्षा की दृष्टि से जो कुछ पंजाब में हो रहा है, उसका प्रभाव गुजरात के मतदाताओं पर भी पड़ा होगा। इसके साथ ही दल द्वारा शासित राज्यों में भ्रष्टाचार के मामलों की संख्या बढ़ी। ये ऐसे कारण रहे जिन्होंने भाजपा को एक गंभीर चुनाव प्रचार के लिए प्रेरित किया।
गुजरात चुनाव: कमजोर विपक्ष के बावजूद भाजपा क्यों लगाती है चुनाव में पूरी ताकत
राज्यसभा में बहुमत पर नजर
राज्यसभा में 11 सीटों पर गुजरात का प्रतिनिधत्व है जिनमें से वर्तमान में 8 सीटें भाजपा और तीन सीटें कांग्रेस के पास हैं इस प्रचंड जीत के बाद राज्यसभा में भाजपा का आंकड़ा फिर से शतक की ओर बढ़ेगा जो अभी 92 है। साथ ही भाजपा अपने सहयोगी दलों के गठबंधन के साथ बहुमत के आंकड़े के और करीब होगा। हाल के वर्षों में राज्यसभा में बिल पारित करने के दौरान विपक्षी दलों के हंगामें में वृद्धि हुई है। बहुमत के करीब आने से भाजपा को इस चुनौती से निपटने में आसानी हो सकती है।
भाजपा को मिला जनादेश गुजरात में अब तक किसी भी दल को मिली सबसे ज्यादा सीटों का रिकॉर्ड है। यानी 1985 में माधव सिंह सोलंकी के समय कांग्रेस को मिलीं सबसे अधिक 149 सीटों का रिकॉर्ड टूट गया है। तब कांग्रेस को 55.5% वोट मिले थे।
गुजरात में इस बार भाजपा का वोट शेयर क़रीब 53% रहा है। इसका मतलब है कि अगर कांग्रेस (27% वोट शेयर) और AAP (13% वोट शेयर) के वोट शेयर को मिला भी लें, तब भी ये उस से कहीं ज़्यादा है। यानी भाजपा ने अपने वजूद में आने के बाद गुजरात में 42 साल के दौरान सबसे ज्यादा वोट हासिल करने का रिकॉर्ड बना लिया है।
इस बार गुजरात में कांग्रेस को 32 साल में सबसे कम वोट मिले हैं। पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस 41% वोट शेयर पाने में कामयाब रही थी। 1990 में जब भाजपा राम मंदिर आंदोलन चला रही थी, तब गुजरात में हुए चुनाव में कांग्रेस को 31% वोट मिले थे। इस बार उसे 1990 से भी कम यानी करीब 26% वोट मिल रहे हैं क्योंकि कांग्रेस को 50 से ज्यादा सीटों का नुकसान हुआ है।
गुजरात चुनाव में भाजपा को मिला प्रचंड बहुमत आगामी लोकसभा चुनाव की हालत बयान करता है। हालाँकि 2024 तक पुरानी पेंशन स्कीम जैसी ही और कितनी मुश्किलें भाजपा के सामने आती हैं यह देखना भी दिलचस्प होगा।