गुजरात हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) रद्द हो जाने के बाद मीडिया को FIR दर्ज होने वाली ख़बरों को हटा देना चाहिए, क्योंकि वे उस व्यक्ति की प्रतिष्ठा और सद्भावना को नुकसान पहुंचा सकते हैं जिसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।
मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की खंडपीठ एक NRI व्यवसायी द्वारा दायर पेटेंट अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसका नाम अक्टूबर 2020 में दर्ज एक FIR में था।
उक्त व्यवसायी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से मांग की, जिसमें बताया गया कि टाइम्स ऑफ इंडिया ने उसके खिलाफ दर्ज हुई FIR से संबंधित लेख छापे हैं और अब उन लेखों को हटाया जाए। वकील ने तर्क दिया कि उक्त लेखों के निरंतर प्रसार से उनके मुवक्किल के ‘भूल जाने के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है।
इस तर्क का टाइम्स ऑफ़ इंडिया के वकील केएम अंतानी ने विरोध किया, जिन्होंने कहा कि न्यायालय को कोई भी आदेश पारित करने से पहले प्रेस की स्वतंत्रता पर विचार करना चाहिए।
दलीलों को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश अग्रवाल ने मौखिक रूप से कहा, “एक बार जब एफआईआर रद्द कर दी जाती है, तो कुछ भी नहीं बचता है और यदि लेख प्रसारित होता रहता है, तो यह धारणा बनती है कि एक आपराधिक मामला लंबित है जो एक व्यक्ति के खिलाफ है – वह एक व्यवसायी, एक व्यक्ति आदि हो सकता है – जो उनकी प्रतिष्ठा और सद्भावना को नुकसान पहुंचाएगा। प्रेस ऐसे मामलों में किसी भी प्रकार की छूट का दावा नहीं कर सकता।”
व्यवसायी ने कहा उनके खिलाफ एफआईआर रद्द होने के बाद उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया और गूगल को उनके नाम का उल्लेख करने वाले समाचार लेखों के सभी यूआरएल हटाने के लिए कानूनी नोटिस जारी किया।
हालाँकि समाचार आउटलेट्स ने ‘गोलमोल’ प्रतिक्रियाएँ दीं, जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया।
व्यवसायी के वकील ने बताया कि जस्टिस केएस पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि ‘भूल जाने का अधिकार’ ‘निजता के अधिकार’ का एक पहलू है। पीठ ने राय दी कि बड़े मुद्दों पर ध्यान देने के बजाय मीडिया, संबंधित लेखों को हटाकर विवाद को सुलझा सकते हैं।
हालाँकि मीडिया पक्ष के वकील ने बताया कि एफआईआर रद्द होने के तुरंत बाद समाचार पत्र ने इस खबर के लेख प्रकाशित किए।
इसके जवाब में सीजे अग्रवाल ने कहा,“कोई भी लोगों से दोनों लेखों को एक साथ पढ़ने की उम्मीद नहीं कर सकता है। लोग केवल प्रारंभिक लेख पढ़ सकते हैं और दूसरा नहीं पढ़ सकते हैं। इसलिए, एक बार मामला रद्द हो जाने के बाद, शुरुआती लेख को हटाना प्रेस का कर्तव्य है। क्योंकि, जब प्रेस के लिए स्वतंत्रता है तो उसे पारदर्शी होना भी आवश्यक है। वह जनता के लिए जो प्रकाशित करता है उसके लिए जवाबदेह है।”
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