सोमवार 10 जुलाई को गुजरात उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान एक वकील ने सिटिंग जज के समक्ष असंसदीय भाषा का उपयोग करने को लेकर वरिष्ठ वकील पर्सी कविना के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू की। यह पूरा मामला 7 जुलाई का है जब कविना जस्टिस देवन देसाई के समक्ष 1979 से लंबित एक मामले पर बहस कर रहे थे, इसी बीच उन्होंने न्यायाधीश के खिलाफ ‘अपमानजनक भाषा’ का इस्तेमाल किया।
जस्टिस एएस सुपेहिया और एमआर मेंगडे की डिवीज़न बेंच ने भारतीय संविधान के अनुछेद 215 और अदालत की अवमानना अधिनियम के तहत वरिष्ठ वकील के खिलाफ स्वतः संज्ञान अवमानना कार्रवाई शुरू की साथ ही कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को सभी डिटेल्स के साथ घटना की एक रिपोर्ट तैयार करने के भी आदेश दिए।
रिपोर्ट्स केअनुसार ये सामने आया है कि वरिष्ठ वकील ने ‘अरे साहब, कुछ तो शरम रखो’ कहकरआपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया। केवल इतना ही नहीं, उन्होंने सिंगल जज के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया, जो कथित तौर पर न्यायालय की महिमा और गरिमा को कम करता है। इसके बाद वकील ने जज से माफ़ी भी मांगी और यह भी स्वीकार किया की उनकी द्वारा की गई टिप्पिणियां अदालत की गरिमा को कम करने वाली थीं।
सिंगल जज ने कविना द्वारा दी गई माफी पर विचार किया, लेकिन अपने आदेश में यह दर्ज नहीं किया कि उन्होंने इसे स्वीकार किया है या नहीं। न्यायमूर्ति सुपेहिया ने कहा कि वकील ने जो कुछ भी किया वह बहुत गंभीर था और कुछ ऐसा था जिसने अदालत की गरिमा को कम किया है।
वकील पर्सी कविना ने न्यायाधीश के समाने अपने इस कृत्य के लिए माफी मांगने का प्रस्ताव रखा, लेकिन न्यायाधीश ने उनकी माफी स्वीकार करने से इन्कार कर दिया, जिसके कारण अदालत की अवमानना हुई। जस्टिस एएस सुपेहिया और जस्टिस एमआर मेंगडे की खंडपीठ ने न्यायाधीश के समक्ष असंसदीय भाषा के कथित इस्तेमाल के लिए कविना के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया।
इस मामले को लेकर न्यायालय का कहना है कि 7 जुलाई को जो हुआ, वह नहीं होना चाहिए था और वरिष्ठ वकील पर्सी कविना द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्द अपमानजनक थे। कोर्ट ने आगे कहा चूंकि स्वतः संज्ञान अवमानना कार्यवाही अभी तक शुरू नहीं हुई है। वकील कविना संबंधीत डिवीज़न बेंच से बिना शर्त माफ़ी मांगने का अनुरोध कर सकते हैं।
अब मामले की अगली सुनवाई 17 जुलाई को होगी.
यह भी पढ़े : धार्मिक स्थलों से जुड़े मामलों पर ‘वर्शिप एक्ट’ का उपयोग नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट