भाजपा ने शनिवार, 26 नवम्बर, 2022 के दिन ‘अग्रेसर गुजरात के लिए संकल्प’ नाम से गुजरात विधानसभा चुनाव का अपना घोषणा पत्र जारी किया। अपने घोषणापत्र में भाजपा ने समान नागरिक संहिता लागू करने का वादा किया है।
इसके अलावा, भारत विरोधी ताकतों और आतंकी संगठनों के ‘स्लीपर सेल’ की पहचान करने और उन्हें खत्म करने के लिए एक ‘एंटी-रेडिकलाइजेशन सेल’ (कट्टरता रोधी प्रकोष्ठ) बनाने का भी वादा किया है।
घोषणापत्र में मदरसों का सर्वेक्षण कराने और वक्फ बोर्ड की संपत्ति की जांच करने समेत ‘गुजरात सार्वजनिक और निजी संपत्ति नुकसान वसूली अधिनियम’ को लागू करने जैसे वादे शामिल है।
इन तमाम वादों के बीच इस घोषणा पत्र में जिस विषय ने सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित किया है, वह है, भाजपा का गुजरात में ओलंपिक आयोजित करने का वादा।
भाजपा ने गुजरात में वर्ष 2036 के ओलंपिक खेलों की मेजबानी के लिए ‘गुजरात ओलंपिक मिशन’ शुरू करने की घोषणा की है।
चुनावी दौर में रेवड़ी कल्चर के बीच भाजपा द्वारा ऐसी घोषणा यकीनन राजनीतिक पंडितों सहित जनता के लिए भी रोचक मानी जा रही है। रोचक इसलिए है क्योंकि अब तक के चुनावों में जनता ने जो घोषणाएँ सुनी वे अक्सर मूलभूत सुविधा जैसे, बिजली, सड़क, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर ही रही हैं।
पारम्परिक चुनावी मुद्दे गायब?
हाल के वर्षों में विभिन्न राजनीतिक दलों ने घोषणा पत्र में इन मूलभूत सुविधाओं को शामिल तो किया है लेकिन सिर्फ इन्हीं सुविधाओं के वादे के दम पर चुनाव लड़ने की परम्परा को धीरे-धीरे पीछे छोड़ा जा रहा है।
अब इन वादों की जगह स्मार्ट चुनावी वादों ने ले ली है। जैसे, स्कूली बच्चों की शिक्षा हेतु लैपटॉप, टैबलेट और सेलफोन या छात्राओं के लिए साइकिल या स्कूटी देने की घोषणा। वहीं स्वास्थ्य बीमा और आधुनिक कृषि से जुड़े मुद्दे भी घोषणा पत्र में शामिल किए जा रहे हैं।
गुजरात में अपने चुनावी भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिन मुद्दों को उठाया है, उससे साफ है कि आगामी वर्षों में पर्यावरण सरंक्षण और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों को भी राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र में जगह मिल सकती है।
नए चुनावी मुद्दों का आगमन
60 और 70 के दशक में राजनीतिक दल उस दौर की माँग के अनुसार रोटी, कपड़ा और मकान तक सीमित रहकर जनता से वोट की उम्मीद रखते थे। उसके बाद ग़रीबी हटाओ जैसे नारों और वादों के जरिए चुनावी घोषणा पत्र में कुछ नया लाने का काम किया गया। वहाँ से आगे 90 के दशक में आर्थिक सुधारों और ऋण माफ़ी को जगह मिली।
दरअसल, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का विस्तार जैसे-जैसे हुआ, राजनीतिक दल वेलफ़ेयर स्टेट की ओर जाने को तत्पर दिखे। इस राह में एक बाधा थी, जिसका उत्तर अधिकतर राजनीतिक दल और उनके नेताओं के पास नहीं था।
यह बाधा थी, संसाधनों की कमी और संसाधनों का राष्ट्र के आम नागरिक तक पहुँचाने की व्यवस्था। यही कारण था कि अधिकतर राजनीतिक दल वादों से आगे नहीं बढ़ पाते थे। उन्होंने वह सुविधा स्थापित करने की कोशिश नहीं की, जिसके बल पर देश एक वेलफ़ेयर स्टेट की ओर बढ़ता।
पिछले दस वर्षों में देश में आए बदलाव के कारण अब राजनीतिक दल यह स्वीकार करने लगे हैं कि बिजली, पानी और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएँ जनता के मौलिक अधिकार के साथ सरकार का मूल कर्तव्य भी है और जो विषय संविधान में राज्य के लिए निर्देशित किए हैं, उन विषयों पर जनता से वादे कर वोट माँगना उचित नहीं है।
गुजरात की सरकार द्वारा ओलम्पिक खेलों के आयोजन की घोषणा की गई है। क्या ओलंपिक खेलों की घोषणा से वोट मिल पाएँगे? जनता उन चुनावी मुद्दों पर वोट देती है जिनसे वह स्वयं को जोड़ पाती हैं या जिनमें आम जनता अपना लाभ देखती है। तो फिर सवाल बनता है कि गुजरात की जनता ओलंपिक खेलों की घोषणा से कैसे जुड़ पाएगी?
भाजपा द्वारा ओलंपिक खेलों के आयोजन के वादे से कहीं न कहीं जनता भी समझती है कि ओलंपिक खेलों का आयोजन होगा तो सभी राष्ट्र इस महाकुंभ के आयोजन के जरिए गुजरात की धरती पर कदम रखेंगे। इससे अवश्य ही विश्वपटल पर भारत, गुजरात राज्य एवं गुजराती अस्मिता को नया स्थान मिलेगा।
गुजरात की जनता ने यह सोच कैसे विकसित की है?
इसका जवाब है गुजरात मॉडल। गुजरात मूलभूत सुविधाओं के मुद्दे को बहुत पहले काफी पीछे छोड़ चुका है। भुज के भूकंप और उसके बाद दंगों की आग से पीड़ित होकर निकला गुजरात मॉडल से कोई अनभिज्ञ नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी गुजरात के विकास का देश सहित विदेशों में भी अनेक मंचो पर उल्लेख कर चुके हैं।
गुजरात की जनता ने अपने राज्य में अंतरराष्ट्रीय निवेश से लेकर समुद्री तटों के विकसित होने के कारण बढ़ते व्यापार को देखा है। जहाँ देश के अन्य राज्यों में जाति मतगणना सरीखे मुद्दे चर्चा में रहते हैं, उस दौर में गुजरात सौर ऊर्जा, इरीगेशन मॉडल जैसे मुद्दों पर क्रियान्वन कर रहा है।
कई राज्यों में साधारण पानी के लिए लड़ने की तस्वीरें आम हो चली हैं। वहाँ कच्छ की जनता ने 400 किलोमीटर कैनाल के जरिए नर्मदा के पानी से अपनी भूमि को सिंचित होते देखा है।
गुजरात के अलावा भी यदि देश के अन्य हिस्सों में यदि मूलभूत सुविधाओं की बात की जाए तो 2014 में मोदी सरकार आने के बाद ग़रीबी रेखा से नीचे के लोगों का मुख्य आर्थिक धारा में समावेश हो या देश के हर घर में बिजली पहुँचाने का काम, यह वर्तमान भारत सरकार ने सफलता पूर्वक किया है।
हर घर नल जैसी महत्वाकांक्षी परियोजना और उसका सही क्रियान्वयन सरकार की सफलता की सूची में शामिल होने जा रही है। इसके साथ ही सरकार जिस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सफल रही है, वह है संसाधनों की व्यवस्था। जो पहले की सरकारों के लिए ऐसी समस्या थी जिसका समग्र समाधान खोजने की कोशिश सरकारों ने नहीं किया।
हाँ, यह कहा जा सकता है कि केन्द्र की वर्तमान मोदी सरकार ने इन समस्याओं का जो समाधान खोजा, उसकी नींव मोदी की गुजरात सरकार में ही डाली गई थी।
देखा जाए तो चुनाव उन्हीं मुद्दों पर लड़े जाते हैं, जिन पर राजनीतिक दलों को जनता का झुकाव दिखता है और गुजरात की जनता ने मुफ्त बिजली और मुफ्त पानी के रेवड़ी कल्चर से ऊपर उठकर अपनी राजनीतिक दृष्टि का एक स्तर कायम किया है।
इस दृष्टि को पोषित करने का कार्य भाजपा के 27 वर्षों के शासन ने किया है। शायद यही कारण है कि विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणा पत्र में भाजपा प्रदेश में बारह वर्ष बाद ओलंपिक करवाने का वादा करना अफ़ोर्ड कर सकती है।