तारीख थी 8 सितंबर, 1980, जगह थी झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले का गुआ शहर। बिहार से अलग झारखंड राज्य समेत दूसरी माँगों को लेकर आदिवासियों ने यहाँ एक बड़े प्रदर्शन का आयोजन किया था। प्रदर्शनकारियों ने अपना मांगपत्र तत्कालीन मजिस्ट्रेट एलआरडीसी फ्रांसिस दीन को सौंप दिया। इसके बाद बाजार में एक मीटिंग तय थी।
पुलिस ने बैठक के लिए 1 घंटे का समय दिया था। बैठक के बीच में ही पुलिस ने माइक पर मीटिंग ख़त्म करने और प्रदर्शन को नेतृत्व दे रहे नेताओं को गिरफ्तारी देने का आदेश दिया।
कुछ नेताओं ने गिरफ्तारी दी लेकिन कुछ ने इससे इनकार कर दिया। पुलिस इससे आक्रोशित हो गई और 5 मिनट में ही मीटिंग ख़त्म करने को कहा।
रिपोर्ट के मुताबिक बहस बढ़ने पर प्रदर्शनकारियों ने कहा कि उन्हें जाने दिया जाए वे शांति से चले जाएंगे। पुलिस ने उनकी नहीं सुनी और लाठीचार्ज कर दिया।
देश में कांग्रेस की सरकार थी, प्रधानमंत्री थी- इंदिरा गांधी। बिहार में भी तब कांग्रेस की सरकार थी, मुख्यमंत्री थे- जगन्नाथ मिश्रा। कांग्रेस सरकार लगातार झारखंड के नाम से अलग राज्य की माँग का दमन कर रही थी।
इसी क्रम में अब एक बार फिर गुआ में प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया गया लेकिन इसके बाद जो हुआ वो स्वतंत्र भारत के इतिहास में बहुत कम हुआ था।
हुआ ये कि गुआ बाजार में पुलिस ने पहले तो लाठीचार्ज किया और फिर फायरिंग शुरू कर दी। कई आदिवासी गुआ के बीच बाजार में मार दिए गए।
इसके बाद आदिवासियों ने धैर्य खो दिया और अपने तीर-कमान से पलटवार शुरू कर दिया। 4 पुलिसवाले मारे गए लेकिन कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती बल्कि यहाँ से शुरू होती है।
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जब बवाल थमा तो घायल आदिवासियों को लेकर प्रदर्शनकारी वहाँ से लगभग आधा किलोमीटर दूर स्थित इस्को अस्पताल पहुँचे। घायलों का अस्पताल में उपचार होने लगा, और तब कांग्रेस की सरकार ने हैवानियत की हदें पार कर दी।
पुलिस ने अस्पताल के अंदर घुसकर आदिवासियों को गोलियां से भून डाला। कहा जाता है कि स्वतंत्रत भारत के इतिहास की ये पहली घटना थी जब अस्पताल के अंदर घुसकर प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग की गई।
रिपोर्ट के मुताबिक 10 आदिवासियों की मौत हो गई और दर्जनों घायल हुए। इंटरनेशनल रेड क्रॉस कानून तोड़कर अस्पताल के अंदर की गई फायरिंग पर दुनियाभर में सवाल उठे।
पूरी दुनिया ने कांग्रेस सरकार की आलोचना की। गुआ बाजार के शहीद स्थल पर आज भी उन आदिवासियों के नाम लिखे हैं जिन्हें कांग्रेस सरकार ने अस्पताल में घुसकर मार दिया था।
अब नीचे झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पोस्ट देखिए। ये पोस्ट 8 सितंबर, 2024 यानी कुल दो महीने पुरानी है। इस वीडियो में सीएम हेमंत सोरेन गुआ बाजार में बने शहीद स्थल पर गुआ अस्पताल और बाजार में जिन आदिवासियों की हत्या की गई उन्हें पुष्पांजलि अर्पित करते दिखाई दे रहे हैं।
इस तस्वीर के बाद अब नीचे एक और तस्वीर को देखिए। कांग्रेस सांसद राहुल गाँधी के सामने हेमंत सोरेन हाथ जोड़कर खड़े हैं। सिर्फ इतना ही क्यों, कांग्रेस के साथ मिलकर सोरेन राज्य में सरकार चला रहे हैं। कांग्रेस के साथ मिलकर ही चुनाव लड़ रहे हैं।
सवाल है कि जिस कांग्रेस ने गुआ में आदिवासियों पर गोलियां चलवाईं, उसके साथ सोरेन क्यों खड़े हैं? जिस कांग्रेस ने अस्पताल के अंदर घुसकर आदिवासियों पर फायरिंग करवा दी, उस कांग्रेस के साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन में क्यों है?
एक तरफ जेएमएम आदिवासियों की पार्टी होने का दावा करती है, आदिवासियों की राजनीति करने का दावा करती है। दूसरी तरफ झारखंड आंदोलन का दमन करने वाली कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ती है।
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एक तरफ हेमंत सोरेन आदिवासियों के हकों की बात करते हैं, दूसरी तरफ वही सोरेन राहुल गांधी के साथ गलबहियां करते हैं।
वरिष्ठ चिंतक प्रो. दिलीप मंडल इसको लेकर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। वे कहते हैं कि हेमंत सोरेन झारखंडियों के हत्यारों के साथ हैं।
इसके साथ ही वे सवाल उठाते हैं कि कांग्रेस के पाप को हेमंत सोरेन छिपा क्यों रहे हैं? प्रो. मंडल सवाल उठाते हैं कि कांग्रेस के साथ मिलकर हेमंत सोरेन किसके सपनों का झारखंड बनाना चाहते हैं?