जलवायु परिवर्तन पर बढ़ती चिंताओं और स्थायी ऊर्जा स्रोतों की आवश्यकता ने दुनिया भर की सरकारों को अक्षय ऊर्जा और उत्सर्जन में कमी की रणनीतियों को प्राथमिकता देने के लिए प्रेरित किया है। इसी दिशा में भारत ने नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के आरंभ के साथ एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। ग्रीन हाइड्रोजन को बढ़ावा देकर भारत जीवाश्म ईंधनो पर निर्भरता कम करना चाहता है।
पिछले कुछ वर्षों के जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा के स्रोत के रूप में ग्रीन हाइड्रोजन को लेकर जागरूकता बढ़ी है। पेरिस समझौते के तहत भारत ने अपने उत्सर्जन को कम करने और अपने ऊर्जा स्रोतों में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाने का संकल्प लिया है। इन वादों को पूरा करने के लिए सरकार नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को लगातार बढ़ावा दे रही है और ग्रीन हाइड्रोजन सहित अन्य कई समाधानों की खोज कर रही है।
जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिए नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन के लिए प्रयास करना आवश्यक है लेकिन देश के आर्थिक विकास के लिए आवश्यक ऊर्जा जरूरतों की आपूर्ति भी उतनी ही आवश्यक है। इसी को ध्यान में रखते हुए, देश के ऊर्जा मंत्री, आर.के. सिंह नेट-जीरो लक्ष्यों और देश की ऊर्जा सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता पर जोर देते आए हैं।
नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का उद्देश्य ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन और उपयोग को बढ़ावा देना है। इस प्रकार के हाइड्रोजन को पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है, क्योंकि यह अपने उत्पादन या खपत के दौरान ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं करता है।
इस मिशन के उद्देश्यों में एक घरेलू ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के प्लांट स्थापित करना, परिवहन, उद्योग और बिजली उत्पादन सहित विभिन्न क्षेत्रों में इसके उपयोग को बढ़ावा देना और इसके लिए नया इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने जैसे कदम शामिल हैं।
वर्तमान में भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा तेल का उपभोक्ता है। वर्ष 2019 में कुल ऊर्जा खपत में 55.9% कोयला, 29.5% तेल और प्राकृतिक गैस 6.2% के साथ जीवाश्म ईंधन का ऊर्जा खपत में बड़ा हिस्सा है। हाइड्रो ऊर्जा सहित रिन्यूएबल ऊर्जा स्रोतों ने कुल ऊर्जा खपत में 8.4% का योगदान दिया है। भारत के ऊर्जा क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों में बढ़ती आबादी तक ऊर्जा की पहुंच सुनिश्चित करना, जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता कम करना और जलवायु चिंताओं के साथ आर्थिक विकास को संतुलित करना शामिल है।
भारत ने 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन से अपनी ऊर्जा का 50% प्राप्त करने का लक्ष्य रखते हुए अपने ऊर्जा परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण लक्ष्य निर्धारित किए हैं। इसमें 2030 तक बिजली उत्पादन मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी को 40% तक बढ़ाना शामिल है।
वर्तमान में भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता लगभग 180 गीगावाट है, इस क्षेत्र में देश ने हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण प्रगति की है। भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 2014 और 2021 के बीच 15.3% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ी है।
केंद्र सरकार ने जनवरी 2023 में नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी है, इसके तहत केंद्र सरकार ने शुरूआती दौर में लगभग 20,000 करोड़ रुपए की मंजूरी दी है। इसमें 400 करोड़ रुपए पायलट प्रोजेक्ट के लिए और लगभग 400 करोड़ रुपए इस क्षेत्र में रिसर्च के लिए दिए जाएंगे।
केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि मिशन के जरिए वर्ष 2030 तक देश में 5 मिलियन मीट्रिक प्रति वर्ष हाइड्रोजन उत्पादन की क्षमता सहित 125 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन की कैपिसिटी बनाई जाए।
इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में 6 लाख नई नौकरियां और 8 लाख करोड़ रुपए के निवेश का भी लक्ष्य है। इससे देश में 1 लाख करोड़ रुपए की बचत जीवाश्म ईंधनों के उपयोग के कम होने से होगी। इस मिशन के माध्यम से लगभग 50 मिलियन टन कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी।
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