केंद्र सरकार ने संसद में सबको चकित करते हुए बहुचर्चित और विवादास्पद ‘निजी डेटा संरक्षण विधेयक, 2019’ (Personal Data Protection Bill, 2019) को वापस ले लिया है। सरकार ने वादा किया कि वो बहुत जल्द ही एक नया कानून पेश करेगी।
सरकार की तरफ से बोलते हुए सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव (Ashwini Vaishnav) ने वादा किया कि सरकार बहुत जल्द लेकिन मूल बिल के व्यापक गोपनीयता पहलुओं को कमजोर किए बिना और ‘निजता के अधिकार’ (Right to Privacy) से कोई समझौता किए बिना’ नया बिल लाएगी जो कि अगस्त, 2017 में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा दिए गए ऐतिहासिक फैसले के अनुरूप होगा।
‘डेटा संरक्षण विधेयक’ का ध्येय
डेटा संरक्षण विधेयक को साल 2019 में भारत की संसद में पेश किया गया था। यह विधेयक किसी भी डेटा को संसाधित और संग्रहीत करने के नियमों को निर्धारित करने के लिए लाया गया था। साथ ही लोगों की व्यक्तिगत जानकारियों के सन्दर्भ में उनके अधिकारों को प्रकाशित करने के लिए लाया गया था।
इस विधेयक में डिजिटल गोपनीयता की सुरक्षा के लिए देश में एक डेटा संरक्षण प्राधिकरण (Data Protection Authority) स्थापित करने की माँग की गई थी।
‘डेटा संरक्षण विधेयक’ का इतिहास
डेटा संरक्षण विधेयक को पहली बार न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्ण (Justice BN Srikrishna) की अध्यक्षता वाली एक विशेषज्ञ समिति द्वारा दिए गए सुझावों के आधार पर साल 2018 में तैयार किया गया था। मूल विधेयक, 5 साल लगाकर किए गए मंथन-चर्चा और सुझावों की परिणति थी।
केंद्र सरकार ने लोकसभा में साल 2019 में विधेयक का एक मसौदा पेश किया, जिसे दो साल बाद दिसंबर 2021 में संयुक्त संसदीय समिति (Joint Parliamentary Committee) के पास भेजा गया और छह एक्सटेंशन के बाद संसद में पहली बार विधेयक को पेश किया गया।
‘डेटा संरक्षण विधेयक’ की वापसी के कारण
लोकसभा सदस्यों को प्रसारित आधिकारिक बयान के अनुसार, संयुक्त संसदीय समिति ने साल 2019 के विधेयक पर विस्तार से विचार-विमर्श करने के पश्चात 99 खण्डों में से 81 संशोधन और 12 सिफारिशें प्रस्तावित की, जिसमें डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र (Digital Ecosystem) के लिए एक व्यापक कानूनी ढांचा बनाने के लिए सुझाव दिए गए हैं।
इसके अतिरिक्त, गोपनीयता विशेषज्ञों ने बिल की आलोचना करते हुए बताया कि ये विधेयक नागरिकों की गोपनीयता की रक्षा करने में असमर्थ है। इसके बहुत से पहलु कमजोर हैं और इसका फायदा देसी-विदेशी कंपनियाँ उठा सकती हैं जिनके पास लोगों के निजी डेटा मौजूद हैं।
‘डेटा संरक्षण विधेयक’ पर सरकार का पक्ष
केंद्र सरकार ने बिल पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाए गए ‘मौलिक अधिकार’ (Fundamental Rights) के फैसले के अनुरूप ही नए प्रावधानों का निर्माण किया जा रहा है।
सूचना-प्रद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया, “हमने नए बिल का मसौदा तैयार करना शुरू कर दिया है, जो अपने अंतिम चरणों में है”।
बिल वापसी में हुई देरी के सवाल पर अश्विनी वैष्णव ने कहा, “मैं तरह से समझता हूँ कि इसमें देरी हुई, लेकिन यह विषय बहुत जटिल था। हमें बिल वापसी से पहले थोड़ा विचार-विमर्श की जरूरत थी”।
एक से ज्यादा बिल आने की सम्भावना?
सूचना प्रद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर (Minister of state for IT Rajeev Chandrasekhar) की मानें तो सरकार इस सन्दर्भ में अब एक से अधिक विधेयक ला सकती है। उन्होंने कहा, “सरकार एक नया डेटा कानून चाहती थी जो केवल उपयोगकर्ता की गोपनीयता पर केंद्रित हो।”
उन्होंने आगे कहा, “डेटा की गोपनीयता से संबंधित अन्य पहलुओं से निपटने के लिए अलग-अलग लेकिन जुड़े हुए कानून, जैसे- आईटी कानून और राष्ट्रीय डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क नीति लाई जाएगी।”
‘डेटा संरक्षण विधेयक’ एक नज़र में
- अगस्त 2018: श्रीकृष्ण समिति ने रिपोर्ट सौंपी
- दिसंबर 2019: विधेयक पहली बार संसद में पेश किया गया
- दिसंबर 2019: विधेयक की जांच के लिए जेपीसी का गठन किया गया
- नवंबर 2020: जेपीसी ने डेटा सुरक्षा के दायरे को बढ़ाने का प्रस्ताव रखा
- नवंबर 2021: जेपीसी ने डेटा संरक्षण विधेयक पर रिपोर्ट स्वीकार की
- अगस्त 2022: सरकार ने विधेयक वापस लिया
प्रद्योगिकी कंपनियों की राय
शीर्ष प्रौद्योगिकी कंपनियाँ और उद्योग जगत, सरकार द्वारा प्रस्तावित व्यक्तिगत डेटा संरक्षण बिल का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, क्योंकि यह सभी प्रमुख इंटरनेट कंपनियों के भारतीय उपभोक्ताओं के डेटा को संसाधित करने, संग्रहीत करने और स्थानांतरित करने के तरीके को बदलने की सहूलियत देता है।
गूगल, मेटा, अमेज़ॅन, ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया कंपनियों ने प्रस्तावित विधेयक में दर्ज कुछ सिफारिशों के बारे में चिंता व्यक्त की थी क्योंकि यह डेटा संग्रह के संबंध में उनकी साइबर नीतियों के खिलाफ थी।