गोधरा का जिक्र जब भी आता है तब साबरमती एक्सप्रेस के जले हुए डिब्बे आँखों में तैरने लगते हैं। आज भी गोधरा रेलवे स्टेशन के पिछले हिस्से में एक सन्नाटा सा पसरा रहता है। 59 कारसेवकों की चीख-पुकार आज भले सुनाई ना देती हो लेकिन S6 कोच के वो जले हुए डिब्बे बताते हैं कि वह मंजर कितना भयावह रहा होगा।
गोधरा नरसंहार को आज 21 वर्ष पूरे हो गए हैं। 25 फरवरी, 2002 को अयोध्या से हजारों कारसेवक अहमदाबाद जाने के लिए साबरमती एक्सप्रेस पर सवार हुए थे। 27 फरवरी को ट्रेन गोधरा स्टेशन पहुंची। बाकी के डिब्बे तो अपने गन्तव्य तक पहुंच गए लेकिन S6 और S7 हमेशा के लिए यहीं खड़े रह गए।
पूरी तरह तबाह हो चुके इन कोचों की रखवाली के लिए पुलिस के जवान चौबीसों घंटे आज भी तैनात रहते हैं। आज भी जब गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस का नया S6 कोच ठहरता है तो लोगों की आँखे भी पुराने S6 पर ठिठक जाती हैं।
जब भी गुजरात दंगों की बात होती है तो पिछले 2 दशक से भी अधिक समय से बना हुआ यह पैटर्न सामने आ जाता है कि गुजरात दंगों की बात राष्ट्रीय या अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर तो होगी पर गोधरा नरसंहार पर एक दम चुप्पी साध लेना है।
गुजरात दंगों को लेकर सभी ने अपने-अपने हिस्से का दु:ख बताया, अपने हिस्से का रोना रोया तो वहीं मीडिया ने अपने हिस्से की बातें बताई और आज भी बता रहा है। हालिया उदाहरण बीबीसी का है। मीडिया या सोशल मीडिया देखें तो आज भी भारत का बुद्धिजीवी अपने हिस्से का रोना रो रहा है और अपने हिस्से की बातों को ही सच साबित करने में लगा है।
साबरमती एक्सप्रेस में लगी आग की न्यायिक जांच के लिए नानावटी आयोग गठित किया गया था। नानावटी आयोग ने साबरमती एक्सप्रेस के S6 कोच में लगी आग को सोची-समझी साजिश ठहराया था।
हालाँकि नानावटी आयोग की रिपोर्ट की छीछालेदर करवाने के लिए पूर्व UPA सरकारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। आज जब एक वर्ग को गुजरात दंगों पर प्रलाप करते हुए देखते हैं तो यह भी याद करना चाहिए कि कैसे कॉन्ग्रेस ने संस्थागत तरीके से गुजरात दंगों का राजनीतिकरण करने का कुत्सित प्रयास किया।
UC बनर्जी कमेटी और लालू यादव
वर्ष 2005 में UPA सरकार में रेल मंत्री रहे लालू प्रसाद यादव ने गुजरात दंगों की जाँच कर रहे आयोग से इतर एक अलग आयोग बनवा लिया था।
लालू प्रसाद यादव ने जबरदस्ती रेलवे अधिनियम का उपयोग करके यूसी बनर्जी कमेटी बना दी थी। इस कमेटी ने 17 जनवरी, 2005 को एक रिपोर्ट सौंपी थी। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि आग दुर्घटनावश लगी थी और कोच में किसी ने आग नहीं लगाई गई थी।
लालू यादव द्वारा गठित आयोग की रिपोर्ट में जबरन कहलवाया गया था कि कोच में साधु थे जो नशे वाली चीजों का धूम्रपान कर रहे थे और उससे आग लग गई।
लालू प्रसाद यादव और यूसी बनर्जी आयोग के इस झूठ को अहमदाबाद की रहने वाली गायत्री पाँचाल जो इस घटना में बच गईं थी, वे बताती हैं कि बनर्जी आयोग की रिपोर्ट बिलकुल गलत है।
गायत्री पाँचाल जो साबरमती एक्सप्रेस में सवार थी जिन्होंने अपने माता-पिता को इस हादसे में खोया, वे बताती हैं कि आग दुर्घटनावश नहीं लगी और ना ही S6 कोच में कोई खाना बना रहा था।
उन्होंने आउटलुक को दिए इन्टरव्यू में कहा कि “भीड़ ने काफी देर तक कोच पर पथराव किया और फिर जलते हुए चीथड़े फेंके और कुछ ज्वलनशील पदार्थ भी डाला ताकि कोच में आग लग जाए। मुझे इस बारे में जहाँ भी बयान देने के लिए बुलाया जाएगा, मैं वहाँ जाऊँगी।”
तकरीबन एक दशक तक चली इस जांच और लंबी सुनवाइयों के बाद फरवरी 2011 में अदालत ने इस मामले में 31 लोगों को दोषी ठहराया और 63 लोगों को रिहा कर दिया। ये 31 लोग कौन थे यह किसी से छुपा नहीं है।
गोधरा नरसंहार एक समुदाय की निर्ममता और क्रूरता का सबसे बड़ा उदाहरण बनकर आज भी हमारे सामने खड़ा है।
बावजूद, राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर लिबरल सेकुलर और वाम, बुद्धिजीवी वर्ग बीबीसी जैसे मीडिया संस्थान गुजरात दंगों को लेकर झूठ फैलाने की कोशिश में लगे रहते हैं।
यह वर्ग गुजरात दंगों को आधार बनाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को घेरने के उद्देश्य से और देश में बने शान्ति के माहौल को सांप्रदायिक हिंसा के माहौल में बदलना चाहता रहा है परन्तु उसके लिए जिम्मेदार गोधरा नरसंहार को अपनी सहूलियत के अनुसार पीछे फेंकता रहा है।
ऐसा करने के पीछे उद्देश्य क्या है? यह जानने के लिए किसी शोध की आवश्यकता भी नहीं है।