दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल शीशमहल के भीतर तो उनके मंत्रीगण राजनिवास के बाहर नए अध्यादेश को लेकर बैठकी लगा रहे हैं और अब तैयारी महारैली की भी हो रही है?
अरविन्द केजरीवाल यह समझ नहीं पा रहे हैं कि दिल्ली मात्र एक राज्य नहीं है यह राष्ट्र की राजधानी है और केंद्र शासित प्रदेश भी। इसके लिए संविधान में अलग से प्रावधान हैं जो उप-राज्यपाल को विशेषाधिकार देता है।
विशेषाधिकार जैसे, अनुच्छेद 239AA (4) में जिन शब्दों का प्रयोग किया गया है वो बताते हैं कि दिल्ली के प्रशासन की प्राथमिक जिम्मेदारी उप-राज्यपाल के पास है।
ऐसे में संविधान के विरुद्ध यह लड़ाई राज्य लड़ रहा है ऐसा दिखता नहीं है बल्कि एक व्यक्ति यानी केजरीवाल लड़ रहे हैं और इस लड़ाई के मूल में उनका ईगो है। यह लड़ाई व्यक्तिगत क्यों है? इसे समझने के लिए इतिहास की ओर चलते हैं।
दिल्ली के पहले और सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश मुख्यमंत्री बने थे। उनका कार्यकाल मात्र 2 वर्ष 332 दिन का रहा क्योंकि केन्द्र में कॉन्ग्रेस की तत्कालीन सरकार ने उन्हें पद से हटाकर गुरुमुख निहाल सिंह को मुख्यमंत्री बना दिया था।
उनका पद से हटने का कारण था, दिल्ली के चीफ कमिश्नर, जो उस वक्त तक दिल्ली के मुखिया हुआ करते थे और जो मुख्यमंत्री और मंत्रियों के सुझावों पर फैसले लेते थे। तत्कालीन चीफ कमिश्नर तत्कालीन गृह मंत्री गोविंद वल्लभ पंत के विश्वस्त थे।
अब चीफ कमिश्नर और सीएम के बीच लगातार तनातनी होती थी। दोनों की कई फैसलों को लेकर सहमति नहीं बन रही थी। परिणामस्वरूप चौधरी साहब को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। अब यह तो पार्टी या दिल्ली बनाम केन्द्र की लड़ाई नहीं थी।
इसी तरह साल 1993 में भाजपा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल किया तो मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री बने। उस समय केन्द्र में कॉन्ग्रेस की सरकार थी। शीला दीक्षित के मुख्यमंत्री रहते हुए केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार रही। इस दौरान तो Coordination को लेकर इस तरह की कोई समस्या नहीं आई जो आज देखने को मिल रही है।
आज भी असल जो बात है वो संविधान को आधार बनाकर Coordination बनाने की है। इसीलिए केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश में अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफर से जुड़े मामलों के लिए जिस सेवा प्राधिकरण के गठन की बात की है उसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री, GNCTD के मुख्य सचिव और केंद्रीय गृह मंत्रालय के प्रमुख सचिव को शामिल करने की बात कही गई है।
लेकिन समस्या यह है कि केजरीवाल और उनका गैंग Constitution और Coordination के महत्व को समझते ही नहीं। यदि वे समझते तो 2014 में गणतंत्र दिवस पर दिल्ली को जाम करने की बात न करते।
केजरीवाल की अपनी निजी समस्याएं हैं जो उनके बेलगाम शासन और नक्सली मानसिकता का परिणाम है। इन दोनों से दिल्ली में अभूतपूर्व भ्रष्टाचार दिखाई दिया है और केजरीवाल अफ़सरों की नियुक्ति और उनके ट्रांसफ़र पर नियंत्रण इसीलिए चाहते हैं।
केजरीवाल और उनके मंत्रियों के घोटालों की जांच कर रहे अधिकारियों को केजरीवाल ने कोर्ट का फैसला आते ही प्रताड़ित करना शुरू किया और न केवल प्रताड़ित किया बल्कि आदतन उनके खिलाफ प्रपंच भी रचे गए।
सोचिए फैसले को मात्र 10 दिन हुए थे और अधिकारियों को उत्पीड़न इस स्तर पर हुआ कि उन्होंने उप-राज्यपाल के पास शिकायत दर्ज करवा दी।
शिकायत करने वाले अधिकारियों में IAS, IPS, IRS और DANICS यानी दिल्ली, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप, दमन और दीव तथा दादरा और नगर हवेली (सिविल सेवा कैडर) के अधिकारी शामिल हैं।
सोचिए अन्य केन्द्र शासित प्रदेशों से आए वो अधिकारी जिनकी पोस्टिंग लगभग 3 से 5 वर्षों के लिए दिल्ली में होती है और उसके बाद वे कहीं बाहर जाते हैं। इन अधिकारियों के साथ केजरीवाल सरकार का Coordination कितना है, किस स्तर का है यह मात्र 10 दिनों के भीतर सामने आ गया है।
ऐसे में जिस Coordination की बात हो रही है वो केजरीवाल सरकार Allow ही नहीं करती है इसलिए यहां केन्द्र सरकार की भूमिका बेहद अहम हो जाती है।
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