पूर्व कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद की किताब आ रही है। शायद इसी सिलसिले में वे टीवी न्यूज चैनल पर साक्षात्कार देते हुए नजर आ रहे हैं। वे ऐसी बातें कर रहे हैं जो राजनीतिक हलकों में पहले से कही-सुनी जा रही हैं। कुछ राजनीति के बारे में हैं, कुछ कांग्रेस के बारे में हैं और कुछ गांधी परिवार के बारे में भी हैं।
नाविका कुमार के साथ अपने साक्षात्कार में आजाद ने अपने विद्यार्थी जीवन के एक घटना का जिक्र करते हुए बताया कि उनके एक अध्यापक ने उन्हें परीक्षा में आने वाले प्रश्नों का एक गेस पेपर दिया था जिसमें एक प्रश्न; ‘फाल ऑफ मुगल एंपायर’ के बारे में था और आजाद उस प्रश्न का जवाब न केवल रट कर गये थे बल्कि उसे परीक्षा की कॉपी में बिलकुल हुबहू उतार आये थे।
आजाद ने बताया कि कैसे उन्होंने अपनी किताब में ‘फाल ऑफ कांग्रेस’ के बारे में भी लिखा है। कांग्रेस के वर्तमान को ‘फाल ऑफ मुगल एंपायर’ से तुलना करना अनायास नहीं है। ऐसी तुलना सामान्य तौर पर राजनीति में रुचि रखने वाला आम भारतीय पिछले कुछ वर्षों से करता रहा है पर यदि यही बात गुलाम नबी आजाद जैसा नेता कहे तो वह बात महत्वपूर्ण हो जाती है और उसे सुना जाना चाहिए।

कांग्रेस पार्टी के बारे में उन्होंने जो बातें कही हैं, उन सब में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पचास वर्षों तक कांग्रेस में रहने के बाद आज आजाद कांग्रेस के पतन की शुरुआत कामराज प्लान के दिनों को मानते हैं। यह ऐसी बात है जिस पर पहले सार्वजनिक तौर पर बहुत काम कहा सुना गया है। सामान्य तौर पर इन बातों को एक कुंठित और निकाल बाहर किए गये कांग्रेसी की कुंठा बता देना आसान है पर उनकी ये बातें कांग्रेस पार्टी की कार्य प्रणाली को रेखांकित करती हैं और यह भी बताती हैं कि कांग्रेस आज जिस स्थिति में है, वहाँ अचानक नहीं पहुँच गई।
आज़ाद का यह भी मानना है कि नेहरू युग हो, इंदिरा युग हो, राजीव युग हो या फिर राहुल युग, नेहरू-गांधी परिवार हमेशा न केवल ऐसे लोगों से घिरा रहा जिन्हें चाटुकार कहा जा सकता है बल्कि इन चाटुकारों ने परिवार के लोगों से ऐसे फ़ैसले करवाये जिनका न केवल देश पर बल्कि कांग्रेस पार्टी पर दीर्घकालिक बुरे परिणाम हुए। उन्होंने राहुल गांधी के पूर्व के परिवार कें सदस्यों में कुछ न कुछ गुण देखा पर राहुल के बारे में उन्हें कोई गुण की बात नहीं की। यहाँ तक कि उन्होंने राहुल गांधी में न केवल समझ बल्कि एप्टीट्यूड की कमी का जिक्र भी किया।
आजाद ने जो कुछ भी कहा उसे यह कह कर नकारा जा सकता है कि उन्होंने ऐसा कुछ नया नहीं कहा जो पहले से सार्वजनिक नहीं था या जो दल के आंतरिक लोकतंत्र, दल पर परिवार के वर्चस्व या दल की कार्य प्रणाली को लेकर पहले नहीं कहा गया था। जो बात नकारी नहीं जा सकती, वह यह है कि दल के नीतिगत फैसलों और दल की कार्य प्रणाली पर विचार और उस पर टिप्पणी करने की आजाद की योग्यता। आजाद कोई आम कांग्रेसी नेता नहीं थे। पिछले पैंतीस वर्षों में शायद ही कोई कांग्रेसी नेता होगा जिसकी राजनीतिक हलकों में स्वीकार्यता और सरकार या दल में विभिन्न पदों पर नियुक्ति आजाद के स्तर की होगी।
आजाद ने राहुल गांधी द्वारा उनके साथ किए गए व्यवहार की चर्चा की तो उसे सुनते हुए हिमंत बिस्व सरमा की बात याद आ गई। साथ ही यह भी समझ आया कि राहुल गांधी अपने पुराने राजनीतिक आचरण से कुछ नहीं सीखते। आज़ाद की बातें यह संदेश भी देती हैं कि देश में लोकतंत्र के खात्मे का रोना रोने वाली कांग्रेस पार्टी अपने आंतरिक लोकतंत्र के विषय पर कहाँ खड़ी है। ऐसे में जब आजाद यह सवाल उठाते हैं कि; भारत जोड़ो यात्रा यदि इतनी ही सफल थी तो सूरत में क्यों नहीं हज़ारों लोग राहुल गांधी के समर्थन में जुट गए, तो इसका जवाब कांग्रेस और राहुल गांधी की ओर से आना चाहिए।
आम चुनाव अधिक दूर नहीं हैं। उसके ठीक पहले गुलाम नबी आजाद की किताब आना और चुनाव के पहले उस किताब की सार्वजनिक मंचों पर चर्चा आम राजनीतिक घटना नहीं है। यह देख कर 2014 के आम चुनाव से पहले आई पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के प्रेस सलाहकार संजय बारू की किताब की याद आ जाती है। चुनाव है यो किताब है, किताब है तो चर्चा है और चर्चा है तो उसके परिणाम भी होंगे। कांग्रेस पार्टी और उसके वर्तमान कर्ता धर्ता भी आजाद के स्कूली दिनों की तरह ही न केवल गेस पेपर तैयार करें बल्कि गेस पेपर में जगह पाने वाले सवालों का जवाब रटने भी शुरू कर दें।
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