स्वामी श्रद्धानन्द (1856-1926) को मतान्तरित हिन्दुओं, जिन्हें बलात् इस्लाम व इसाई मत में परिवर्तित किया गया था, वापस हिन्दू धर्म में लाने के लिए जाना जाता है।
स्वामी जी और उनके महत्तर कृतित्व से भला कौन परिचित नहीं है। ऐसे कई महापुरुष हुए, जिन्होंने हिन्दुओं की घरवापसी को लेकर कई प्रयास किए जो आज भी प्रासंगिक हैं।
शुद्धीकरण आन्दोलन का ऐतिहासिक परिदृश्य:
712 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक कब, किस जगह और किन तौर-तरीकों से मतान्तरित लोगों की हिन्दू धर्म में हुई घरवापसी का प्रामाणिक उल्लेख श्रीरंगगोडबोले ने अपनी चर्चित पुस्तक ‘शुद्धी आंदोलन का इतिहास: सन् 712 से 1947 तक’ में किया है।
इस पुस्तक में बताया गया है कि महाभारत के शान्तिपर्व के 65वें अध्याय में यवनों को वैदिक धर्म में शामिल करने सम्बन्धी प्रमाण स्पष्ट रूप में मिलते हैं। यह इस बात की ओर संकेत करता है कि हिन्दू समाज ने प्राचीनकाल से बाहरी लोगों को भी आत्मसात किया है।
110, ईसा पूर्व में निर्मित बेसनगर, विदिशा, मध्य प्रदेश के हेलियोडोरस स्तम्भ से स्पष्ट होता है कि इंटियालकीट्स के राजदूत भागभद्र ने भागवत धर्म स्वीकार कर, हिन्दू धर्म में दीक्षा ली।
प्रसिद्ध अरब यात्री व इतिहासकार अल बिलादुरी इस बात का स्पष्ट जिक्र करता है कि सिंध में मुस्लिम विजय के बाद वहाँ जो हिन्दू, इस्लाम में बलात् मतान्तरित हुए थे, उन्होंने पुन: हिन्दू धर्म अपना लिया था।
सल्तनत काल में नासिरुद्दीन खुसरो जो गुजरात के परवारी (भंगी समुदाय) जाति का व्यक्ति था, मतान्तरित होकर मुसलमान बना, अपनी योग्यता से वह खिलजी काल के अंतिम दिनों में सेनापति बन गया।
सेनापति रहते खुसरो ने अपने सुल्तान की हत्या कर, अपनी सजातीय फौज की मदद से सल्तनत के भीतर 20,000 मतान्तरित हिन्दुओं की पहली बार हिन्दू धर्म में वापसी कर, हिन्दू राज्य की स्थापना की।
नासिरूद्दीन ने राजमहल में कथित तौर पर मस्जिदों में हिन्दू देवी-देवताओं की उपासना की अनुमति और राज्य में गो-हत्या पर पाबन्दी लगा दी। इस प्रकरण का जिक्र जियाउद्दीन बरनी बड़े क्षोभ व हिकारत के साथ करता है।
स्वामी विद्यारण्य, इस्लामी आतंक काल के दौरान हरिहर और बुक्का का शुद्धीकरण करते हुए, हिन्दू साम्राज्य विजयनगर की स्थापना करते हैं, यह अविस्मरणीय है।
फिरोज शाह तुगलक के शासनकाल में बोधन नामक ब्राह्मण, जिसने मुसलमानों को हिन्दू धर्म के प्रति श्रद्धावान बनाया था, को, दंडस्वरूप जिन्दा जलाया गया था, जिसका वर्णन जियाउद्दीन बरनी के ‘फतवा-ए-जहाँदारी’ में मिलता है। धर्मांतरण से शुद्धी के लिए हिन्दू जाति के भीतर ब्राह्मण बोधन का जीवनोत्सर्ग बलिदान का प्रथम उदाहरण है।
ख्वाजा निजामुद्दीन अहमद ने (16वीं सदी) अपनी पुस्तक ‘तबकाते-अकबरी’ में कश्मीर के भीतर बड़ी संख्या में सिकन्दर बुतशिकन के समय मतान्तरित हुए हिन्दुओं को पुन: शुद्धीकृत कर हिन्दू धर्म में वापसी का वर्णन किया है। इस महत्वपूर्ण कार्य को कश्मीर के आचार्य पण्डित कण्ठ भट्ट, निर्मल कण्ठ ने व्यवस्थित रूप से शुद्धीकरण परिषद आयोजित करके सम्पन्न किया था।
16वीं सदी में जोधपुर के राजा सूरजमल ने आक्रमणकारी पठानों द्वारा अपहृत 140 हिन्दू बालिकाओं को अपने धर्म में वापसी कराई। इस शौर्यपूर्ण कार्य के दौरान व्यभिचारी पठानों से लड़ते हुए हिन्दू जीवन धर्म अभिमान के रक्षार्थ सूरजमल बलिदान हो गए।
इसी दौरान जैसलमेर के महारावल लूणकरण ने एक विशाल यज्ञ कराते हुए गत सदियों में बलात् मतान्तरित हुए हिन्दुओं की शुद्धी करवाते हुए उन्हें पुन: हिन्दू समाज में लाने का कार्य किया।
19वीं सदी की कृति ‘दबिस्ताने मजाहिब’ के लेखक, फानी ने कई मुस्लिमों के बैरागी वैष्णव बनने की जानकारी अपनी पुस्तक में दी है। लेखक ने 17वीं सदी में होशियारपुर (कीरतपुर) के सन्यासी ‘कल्याण भारती’ के फारस में जाकर इस्लाम मत ग्रहण करने और फिर इस्लाम त्याग पुन: हिन्दू बनने का भी जिक्र किया है।
शुद्धी आंदोलन के प्रमुख प्रणेताओं में से एक संत शिरोमणि स्वामी रामानन्द (1299-1410) थे। जिन्होंने अयोध्या में विलोम मन्त्र द्वारा विधिवत समारोह आयोजित कर, मुसलमान बने हजारों राजपूतों की हिन्दू धर्म में पुर्नवापसी कराई थी।
बंगाल में चैतन्य महाप्रभु ने तो शुद्धीकरण आंदोलन की धार को प्रेम व वैष्णव भक्ति से इस कदर परवान चढ़ाया कि हजारों की संख्या में मतान्तरित हुए लोग अपने धर्म में वापस आ गए।
मराठों ने 17वीं सदी में शुद्धीकरण के लिए ‘हिन्दवी स्वराज’ के भीतर चार प्रकार की व्यवस्थाओं का ही प्रावधान कर दिया था। यह कार्य करवाने के लिए ‘पण्डितराव’ नामक एक उपाधि-धारक अधिकारी को भी नियुक्त किया गया था। जो शुद्ध हुए व्यक्ति को शुद्धीकरण का आधिकारिक प्रमाण पत्र प्रदान करता था, साथ ही उसका पंजीकरण भी स्थानीय कोतवाली में होता था।
1665 से 1670 ईस्वी के बीच पुर्तगाल शासित प्रदेशों को जीतने के बाद छत्रपति शिवाजी ने पुर्तगाली शासन के भीतर बलपूर्वक इसाई बनाए गए हिन्दुओं की पुन: धर्म वापसी कराई थी। छत्रपति की यह नीति कुछ समय तक पेशवाओं के काल मे भी जारी रही।
आधुनिक इतिहास में स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी श्रद्धानन्द, स्वामी विवेकानन्द, लोकमान्य तिलक, महामना मालवीय, लाला लाजपतराय, महर्षि अरविन्द, पण्डित लेखराम, लाला हंसराज, पण्डित ऋषिराम, लाला खुशालचन्द, पण्डित भोजदत्त, रामभज दत्त, मंगलराम, वीर सावरकर, बाबाराव सावरकर, गणेश सावरकर, गजानन भास्कर वैद्य, विनायक महाराज मसूरकर, डॉ हेडगेवार आदि ने इस कार्य के लिए जीवन ही समर्पित कर दिया।