बहुत दिनों बाद जॉर्ज सोरोस का भारत पर बयान वाला एक वीडियो सामने आया। जाहिर है सोरोस भारत पर कुछ बोलेंगे तो भारत के लोकतंत्र की आड़ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर ही बोलेंगे। उन्होंने निराश भी नहीं किया। सोरोस ने कहा है कि “मोदी और बिजनेस टाइकून अडानी एक-दूसरे के सहयोगी हैं और दोनों की नियति आपस में जुड़ी हुई है। अडानी एंटरप्राइज ने स्टॉक मार्केट से फंड रेज करने की कोशिश की लेकिन कंपनी असफल रही। कंपनी के स्टॉक की कीमत भरभरा के गिर गई। मोदी इस विषय में चुप हैं लेकिन उन्हें जवाब देना होगा, विदेशी निवेशकों को भी और भारत के संसद में भी। इससे भारतीय सरकार पर मोदी की पकड़ ढीली होगी और भारत में संस्थागत सुधारों के लिए रास्ता खुलेगा। मेरी बात भले ही सरल लगे लेकिन मेरा विश्वास है कि इससे भारत में लोकतंत्र फिर से स्थापित होगा।”
सोरोस का यह बयान भारत के बारे में उनके और उनके जैसे और लोगों की सोच को उजागर करता है। यह उस अमेरिकी सोच का ही विस्तार है जिसके तहत अमेरिका पूरी दुनिया को बताता रहा है कि ‘लोकतंत्र होता क्या है, दिखने में कैसा होता है और कैसे जूते पहनता है। वह पिछले लगभग सत्तर वर्षों से दुनिया के तमाम देशों को बताता आया है कि तुम्हारे यहाँ जो डेमोक्रेसी है उसकी बस दो ही टाँगे हैं। हम तुम्हारे लिए जो डेमोक्रेसी लेकर आए हैं, उसकी चार टाँगे हैं। तुम अपनी डेमोक्रेसी को कूड़े में फेंको और उसे रखो जो हम लेकर आए हैं। ऐसा नहीं करोगे तो अपनी कांख में दबाकर लाई गई इस डेमोक्रेसी को तुम्हारे घर में घुसाने के लिए हम कुछ भी कर गुजरेंगे। तुम तो जानते ही हो, डेमोक्रेसी का ही नहीं बल्कि डेमोक्रेसी इंडेक्स का आविष्कार भी हमने ही किया था।’
सोरोस की सोच ऐसी नहीं होती तो उन्हें पता रहता कि एक उद्योग समूह से पूछे गए प्रश्नों का उत्तर वह समूह देगा ना कि भारत के प्रधानमंत्री। भारत में लोकतांत्रिक और प्रशासनिक संस्थाओं का विकास उतना हुआ है जिससे वे तय कर सकते हैं कि कोई उद्योग समूह कैसे बढ़े और कितना बढ़े। सोरोस ने यह कैसे मान लिया कि किसी कॉर्पोरेट ग्रुप से किए गए प्रश्नों का उत्तर देश के प्रधानमंत्री देंगे? निज से किए गए प्रश्नों का उत्तर वह कॉर्पोरेट ग्रुप देगा और वह दे भी रहा है। “मोदी को विदेशी निवेशकों को जवाब देना होगा” जैसी बात कहकर सोरोस क्या साबित करना चाहते हैं? अडानी समूह में निवेश करने का अनुरोध विदेशी निवेशकों से क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था? या इन देसी या विदेशी निवेशकों ने अडानी समूह की कंपनियों के बैलेंस शीट देखकर उनमें निवेश किया होगा?
प्रश्न यह है कि सोरोस की दिलचस्पी भारत के लोकतंत्र में तथाकथित सुधार करवाने की क्यों है? वे भारतीय सरकार पर मोदी की पकड़ ढीली होने की कामना क्यों करते हैं? या उस पकड़ के तथाकथित तौर पर ढीली होने का जश्न क्यों मनाते हैं? मोदी या अडानी के गिरने में किसी विदेशी को खुशी क्यों है? आखिर देश को सुधार की आवश्यकता है तो यह बात भारत का वर्तमान राजनीतिक विपक्ष बताएगा। या फिर नरेन्द्र मोदी को चुनाव में हरा कर सरकार बना विपक्ष सुधार खुद लागू करेगा। सोरोस कौन हैं यह बात बताने वाले? विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को सुधार देने का बोझ उन्होंने अपने बूढ़े कन्धों पर क्यों उठा रखा है? भारत में संस्थागत सुधारों के प्रति वे इतने गंभीर क्यों हैं? या फिर यह बताने के लिए इतने उतावले क्यों हो रहे हैं कि कौन सा सुधार हमारे लिए अच्छा रहेगा?
लगता है जैसे भारत के बारे में सोरोस और उनके जैसे अन्य अमेरिकियों की सोच उन तथाकथित भारतीय पत्रकारों और बुद्धिजीवियों के कॉलम और इनपुट्स के आधार पर बनी है जो अमेरिकी अखबारों में कॉलम के नाम पर कचरे का उत्पादन करते हैं।
यदि ऐसा न होता तो सोरोस को पता रहता कि उन्हें यह कहने का अधिकार नहीं है कि नरेन्द्र मोदी को संसद में उत्तर देना होगा। प्रधानमंत्री से संसद में उत्तर देने की ऐसी मांग विपक्ष के सांसद करते हैं और उन्हें यह करने का अधिकार है पर सोरोस को ऐसी मांग करने का अधिकार किसने दिया? या ऐसा तो नहीं कि सोरोस मन, कर्म और वचन से खुद की गिनती भारतीय विपक्ष के सांसद के रूप में ही करते हैं? उनकी ऐसी भाषा सुनकर तो यही लगता है जैसे उन्हें किसी ने विश्वास दिलाया है कि ‘आप खुद को भारतीय विपक्षी दल का सांसद ही मानिए’ और वे ऐसा ही मानते हैं। चूंकि वे सांसद नहीं हैं इसलिए यह भी बताएं कि जब प्रधानमंत्री मोदी संसद में उत्तर देंगे तो उनका कौन सा प्रतिनिधि उनके लिए उन उत्तरों की नोटिंग करेगा?
दरअसल सोरोस की समस्या यह है कि पिछले कई वर्षों से वे भारत को मोदी और मोदी को भारत मानते हैं। इसलिए वे मोदी से आगे खड़े भारत को देख ही नहीं पाते। वे उस भारत के बारे में सोच नहीं पाते जो नरेन्द्र मोदी ने बड़ी मेहनत से पिछले लगभग एक दशक में खड़ा किया है। या फिर शायद ऐसा है कि उन्हें वह भारत साफ दिखाई देता है और वे उस भारत को देख कर डर जाते हैं।
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