राजस्थान की अशोक गहलोत की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने एक और नया दांव खेला है, हमेशा अपने उलट-पुलट बयानों के कारण चर्चा में रहने वाले अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार ने ‘इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योजना’ के नाम से शहरों में मनरेगा की तर्ज पर गारंटी सहित रोजगार देने की योजना शुरू करी है।
पहले से ही भारी कर्जों के नीचे दबी हुई राजस्थान सरकार को इस योजना के कारण 800 करोड़ रुपये का और भार आएगा। हाल ही में आई रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान देश में अपनी क्षमता से अधिक कर्जे लेने वाले राज्यों में से एक है।
इसके अतिरिक्त भारत में रोजगार समबन्धी आंकड़े देने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इन्डियन इकॉनमी (CMIE) के वर्तमान आंकड़ों के अनुसार राजस्थान भारत में बेरोजगारी के मामले में दूसरे स्थान पर है। संस्था के अनुसार राजस्थान में बेरोजगारी दर 31.4 % है।
क्या है योजना?
राजस्थान की गहलोत सरकार ने आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए इस साल के बजट में इस योजना का एलान किया था। इस योजना को बीते 9 सितम्बर 2022 को मुख्मंत्री अशोक गहलोत ने जयपुर में शुरू किया।
चित्र साभार : दी हिन्दू
इस योजना के अंर्तगत पंजीकृत होने वाले 18-60 से आयु के बीच के लोगों को मांगने पर 15 दिन में काम उपलब्ध कराया जाएगा। योजना के अंतर्गत सार्वजनिक जगहों से बैनर हटाना, नालों की साफ-सफाई एवं शौचालयों की सफाई जैसे कार्य दिए जाएंगे। इन कार्यों के लिए मजदूरों को रोज 259 से 283 रूपए रोज दिए जाएंगे।
योजना में भारी खामियां
इस योजना के अंतर्गत दिए जाने वाले अधिकतर रोजगार ऐसे हैं जिनके लिए पहले से ही सरकारी कर्मचारी मौजूद हैं, उदाहरण के तौर पर नालों की साफ-सफाई और शौचालयों को स्वच्छ करने के लिए पहले से ही सरकारी सफाई कर्मचारी हैं। ऐसी स्थिति में इन पंजीकृत व्यक्तियों को कहाँ समायोजित किया जाएगा यह स्पष्ट नहीं है।
दूसरी समस्या इस योजना में यह है कि जिन कार्यों के लिए यह योजना मात्र 259 रुपए देने वाली है, वैसे ही अन्य कार्यों के लिए मजदूरी निजी कार्यों में अधिक है, तथा ऐसे ही कार्य करने के लिए सरकारी कर्मचारियों को कहीं ज्यादा तनख्वाह मिलती आई है।
इसके अतिरिक्त इस योजना में धनराशि के दुरूपयोग का भी खतरा है, चूंकि यह योजना मनरेगा के आधार पर ही बनाई गई है और मनरेगा में पूर्व में देखा जा चुका है कि कई बार घोटाला हो चुका है। साथ ही कई बार मनरेगा के लिए आवंटित धनराशि के दुरूपयोग की घटनाएं भी सामने आई हैं।
इन्डियन एक्सप्रेस में अगस्त 2021 में छपी एक खबर के अनुसार, मनरेगा में 900 करोड़ रुपयों से ज्यादा का गबन चार वर्षों के दौरान हुआ था। वहीं इसका मात्र 1% ही वापस पाया जा सका।
राज्य भीषण कर्ज में, गहलोत चुनावी गणित साधने में जुटे
हाल ही में आई रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट बताती है कि राजस्थान उन राज्यों में से एक है जहाँ सरकार ने अत्यधिक कर्ज ले रखा है। रिपोर्ट में सरकार के अंधाधुंध सब्सिडी देने के फैसलों को मुख्य जिम्मेदार ठहराया गया है।
हिंदी दैनिक अमर उजाला की एक खबर के अनुसार, राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने सत्ता में आने के बाद से अब तक 1,90000 करोड़ का कर्ज लिया है, जहाँ 2019 में राज्य के प्रत्येक व्यक्ति पर 38,782 रुपये का कर्ज था, वहीं अब यह बढ़कर 70,000 के पार पहुँच गया है।
इन सब स्थितियों के बावजूद राजस्थान की गहलोत की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार अपने बड़े-बड़े विज्ञापन पूरे देश के अखबारों में इस योजना के सम्बन्ध में छपवा रही है। इस योजना का मुख्य मकसद लोगों को स्थायी रोजगार उपलब्ध कराने के बजाय उन्हें सरकारी धनराशि से अपने पाले में करना अधिक लगता है।