आपने अक्सर फिल्मों में देखा होगा कि राजनीतिक रंजिशों के चलते किस तरह से कोई क़स्बा गैंगस्टर्स का अड्डा बन जाता है। ये लड़ाइयां घर-गांव में जमीन जायदाद या फिर पंचायती चुनाव में आपसी वर्चस्व की लड़ाई से शुरू होकर कई बार हत्याओं तक पहुँच जाती हैं। ऐसा ही कुछ किस्सा है उत्तर प्रदेश के धर्मेंद्र किरठल का।
बागपत के कुख्यात अपराधी धर्मेंद्र किरठल और सतेंद्र मुखिया समेत तीन को कल ही गैंगस्टर एक्ट के तहत 5-5 साल कैद की सजा सुनाई गई है। सतेंद्र मुखिया और सुभाष इस समय बागपत जेल में बंद है और धर्मेंद्र आंबेडकर जेल में। ये दो लोग धर्मेंद्र के गिरोह के मुख्य कर्ता-धर्ता रहे हैं। अपर सत्र न्यायाधीश ने सजा सुनाते हुए तीनों पर 50-50 हजार रुपये अर्थदंड भी लगाया गया है।
साल 2015 में धर्मेंद्र 12 साल के बाद अपने घर लौटा था। उसकी कहानी की पृष्ठभूमि में खून और दुश्मनी से सनी ग्रामीण राजनीति है। ये भी देखने वाली बात है कि गन्ना बेल्ट के नाम से मशहूर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपराध किस तरह से इतने वर्षों तक पनपता रहा और किस तरह से कानून व्यवस्था अब दोबारा पटरी पर लौट रही हैं। चाहे अतीक अहमद की कहानी हो, आजम खान जैसे नेता हों, या फिर अब धर्मेंद्र किरठल, एक के बाद एक ये नामी अपराधी जेल जा रहे हैं।
धर्मेंद्र के अपराधी बनने और आखिरकार सलाखों तक पहुँचने की कहानी
साल 2020 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 50 हजारी मोस्ट वांटेड अपराधी धर्मेंद्र किरठल को देहरादून से STF ने गिरफ्तार कर लिया। धर्मेंद्र किरठल के खिलाफ 50 मुकदमे दर्ज हैं जिनमें केवल हत्या के 15 से ज्यादा मुकदमे हैं। आईजी प्रवीण कुमार ने उसके ऊपर 50,000 का इनाम घोषित कर दिया था। हालाँकि उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था में एक समय वो भी था जब सबूतों के अभाव में धर्मेंद्र लगातार छूट जाते थे। पर समय बदला है तो कानून अब सभी के लिए समान है।
शामली के कैराना में हत्या के बत्तीस साल पुराने मुकदमे में अंबेडकर नगर जेल में बंद धर्मेंद्र किरठल की कैराना फास्ट ट्रैक कोर्ट में पेशी कराई गई। साल उन्नीस सौ इक्यानबे में शामली कोतवाली क्षेत्र में हुई हत्या के मामले में किरठल आरोपी है। धर्मेंद्र पर हत्या के अलावा लूट व रंगदारी के मुकदमे भी दर्ज हैं जिनमें से ज्यादातर में उसकी जमानत हो चुकी है, जबकि कुछ मुकदमे खत्म हो चुके हैं।
साल 1992 की बात है जब धर्मेंद्र किरठल ने अपराध की दुनिया में कदम रखा था। धर्मेंद्र पश्चिमी यूपी के अलावा उत्तराखंड, दिल्ली और हरियाणा में भी गिरोह बनाकर अपराध करता रहा। कभी उसने जेल में सुरंग खोदकर भागने के प्रयास किए तो कभी किरठल ने मेरठ जेल के डिप्टी जेलर नरेन्द्र द्विवेदी की हत्या तक करवा दी थी।
धर्मेंद्र पर आरोप है कि उसने बीते साल 12 दिसंबर, 2020 को बागपत के किरठल गांव में चुनावी रंजिश को लेकर इरशाद अली की हत्या कर दी थी। उस वक्त वो अपने गन्ने के खेत में गन्ने छिल रहा था। ये इरशाद असल में ग्राम प्रधान कृष्णपाल के घर पर काम करने वाला किसान था। धर्मेंद्र जब 2011 में जमानत पर छूटकर बाहर आया तो उसके बाद ग्राम प्रधान कृष्णपाल से चुनाव के संबंध में दुश्मनी हो गई थी। उसने कृष्णपाल पर भी जानलेवा हमला किया था जिसमें कृष्णपाल बाल-बाल बचा। इसके बाद धर्मेंद्र ने 2013 में न्यायालय में आत्मसमर्पण किया और फिर 2014 में बाहर भी आ गया। शासन के निर्देश पर पुलिस ने धर्मेंद्र की पैंसठ लाख कीमत की संपत्ति कुर्क कर दी थी।
धर्मेंद्र की कहानी में उसकी माँ और पत्नी भी शामिल हैं जो वहां की जनता के लिए किसी गॉडफादर से कम नहीं हैं। साल 2015 के पंचायत चुनाव में धर्मेंद्र किरठल की मां सुरेश देवी जिला पंचायत सदस्य और पत्नी सुदेश देवी ग्राम प्रधान बनी थीं। 20 अगस्त 2004 का दिन था जब इस परिवार के राजनीतिक दुश्मनों ने सुरेश देवी के परिवार के ही सात लोगों को मौत के घाट उतार दिया।
धर्मेन्द्र किरठल वर्ष 2002 में वह किरठल गाँव का प्रधान था, जिसके चलते किरठल के ही रहने वाले नरेन्द्र और सुरेन्द्र से उसकी दुश्मनी हो गई थी। इसी दुश्मनी के चले वर्ष 2004 में सुरेंद्र के बहनोई ने धर्मेन्द्र किरठल के घर पर हमला किया था। बताया जाता है कि धर्मेंद्र के घर पर 20 से अधिक गुंडों ने ऑटोमेटिक हथियारों से एकसाथ हमला बोल दिया था। ये गिरोह सुरेश देवी के परिवार की पंचायती चुनाव में हुई जीत से बौखलाया हुआ था। इस हमले में धर्मेंद्र के पिता, उनके भाई, उनकी पत्नी और चाचा मारे गए।
इस हमले से धर्मेंद्र घबराकर यहाँ-वहाँ छिपता रहा। यही वो समय था जब धर्मेंद्र की माँ सुरेश देवी ने इस हत्याकांड का बदला लेने के लिए प्रेरित किया। यहाँ से दोनों गिरोह आमने-सामने आ गए। धर्मेंद्र ने चुन चुनकर इन हत्यारों को ठिकाने लगाया। जहाँ पुलिस की नजरों में धर्मेंद्र एक कुख्यात अपराधी है, वहीं किरठल के लोगों की नजरों में ये परिवार उनका मसीहा है। जमीन से लेकर आपसी मनमुटाव के मामलों का फैसला इसी परिवार के जरिए होता है। जब धर्मेंद्र वहां मौजूद नहीं थे, तब धर्मेंद्र की माँ सुरेश देवी लोगों के लिए हर फैसले लेती और उनका सम्मान वहां की जनता की नजरों में बहुत बढ़ता चला गया।
साल 2015 के पंचायत चुनाव में धर्मेंद्र किरठल की मां सुरेश देवी जिला पंचायत सदस्य और पत्नी सुदेश देवी ग्राम प्रधान बनी थीं। उसके बाद एकबार फिर उसके परिजन चुनाव लड़ने की फिराक में थे, लेकिन पुलिस के लगातार दबाव के चलते वह ऐसा नहीं कर पाए। पिछले दिनों चुनाव के दौरान धर्मेंद्र किरठल के गांव के आसपास गतिविधियों की सूचना पुलिस को मिली थी। तब पुलिस ने ड्रोन कैमरों से जंगल को खंगाला था, लेकिन उसका कोई सुराग नहीं मिला था। आईजी मेरठ प्रवीण कुमार ने रेंज के सभी फरार बदमाशों पर इनाम की घोषणा भी की थी। और ऐसे अपराधियों की धरपकड़ के लिए लगातार पुलिस एसटीएफ काम कर रही है।
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