श्री केदारनाथ धाम! शायद ही कोई हिन्दू हो जो हिमालय की गोद में स्थित 12वें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ मंदिर के दर्शन न करना चाहता हो। या फिर भारत के चारधामों में से एक श्री बद्रीनाथ धाम, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। उत्तराखण्ड में स्थित दोनों तीर्थस्थलों के दर्शन का बड़ा ही माहात्म्य है।
हिंदू धर्म की ख़ूबसूरती देखिए कि ईश्वर हम सभी के घरों में हैं, फिर भी आस्था हमें इन धामों तक खींच लाती है। ऐसे दुरूह तीर्थ, एक ऐसा भी समय था जब यहाँ जाने से पूर्व यात्री अपने घर से इसे अपना अंतिम प्रस्थान मानकर निकलते थे। आज हालात कुछ और हैं। यात्री तीर्थ की ओर निकलकर समय रहते अपने घर भी लौट आते हैं। लेकिन इन यात्रा के मार्गों की कहानी क्या है।
इस वर्ष यह चारधाम यात्रा 22 अप्रैल से शुरू होने जा रही है। 22 अप्रैल को गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खुलेंगे। उसके बाद 25 अप्रैल को केदारनाथ धाम एवं 27 अप्रैल को बदरीनाथ धाम के कपाट खुलेंगे।
इस यात्रा के लिए परिवहन सेवाओं की शुरुआत हरिद्वार-ऋषिकेश से शुरू हो जाती है। या यूँ कहें कि ये स्थान चारधाम यात्रा का द्वार हैं। लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि जब सड़कों का निर्माण नहीं हुआ था, और जब आवागमन के लिए मोटरगाड़ियों का सहारा मात्र एक कल्पना ही थी, तब कैसे चारधाम यात्रा हुआ करती थी?
चार धाम के पौराणिक मार्ग का इतिहास
दरअसल, प्राचीन काल से ही ऋषिकेश से केदारनाथ तक पहुंचने के लिए पैदल मार्ग का इस्तेमाल किया जाता था।इसकी शुरुआत ऋषिकेश के निकट मोहन चट्टी से होती थी। इस मार्ग से यात्रा ऋषिकेश से गंगा किनारे-किनारे पहाड़ों से होकर देवप्रयाग, श्रीनगर होते हुए रुद्रप्रयाग पहुँचती थी। यह बेहद ही दुर्गम था।
यात्रा मार्ग दुर्गम होने के कारण यात्री भिन्न भिन्न पड़ावों पर रात्रि विश्राम के लिए रुकते और फिर मिल जुलकर सभी तीर्थ यात्री आगे बढ़ते। इन्हीं पड़ावों को चट्टी कहा जाता। इसलिए आप जब चारधाम यात्रा कर रहे होंगे तो हर धाम तक पहुँचने के दौरान कई चट्टियां मिलेंगी। जैसे बदरीनाथ मार्ग पर हुनमान चट्टी, केदारनाथ मार्ग पर गरुड़चट्टी, जंगलचट्टी आदि।
इस रुट से यात्रा दुर्गम होने के बावजूद तीर्थयात्री देश भर से आते थे लेकिन वर्ष 1928 आते आते ऋषिकेश से कीर्तिनगर तक मोटर मार्ग बन चुका था और फिर इस पैदल मार्ग का प्रयोग लगभग बंद हो गया।
गंगा पदयात्रा: पौराणिक मार्ग को पुनर्जीवित करने की पहल
अब इसी ऋषिकेश से केदारनाथ तक के पौराणिक मार्ग को जीवंत किया जा रहा है। पौड़ी जिलाधिकारी डॉक्टर आशीष चौहान ने इसको पुनः मूल स्वरुप में लाने की पहल की है। इस योजना को गंगा पदयात्रा नाम दिया गया है।
इस योजना के अनुसार इस वर्ष से ऋषिकेश से देवप्रयाग तक पैदल चार धाम यात्रा शुरू होगी। आपको बता दें, ऋषिकेश से देवप्रयाग तक सड़क मार्ग से दूरी 73 किलोमीटर है। और इस पैदल से मार्ग से यह दूरी 67 किलोमीटर की होगी।
यह मार्ग ट्रेकिंग एवं एडवेंचर के शौक़ीन लोगों को भी आकर्षित करने के लिए तैयार किया गया है। पौड़ी जिलाधिकारी श्री चौहान के अनुसार उन्होंने गंगा पदयात्रा शुरू किए जाने की योजना तैयार की है और वे खुद इस मार्ग पर 22 किलोमीटर की पदयात्रा कर चुके हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि इस मार्ग पर प्रकृति और अध्यात्म का अनूठा संगम होगा। यात्री मां गंगा एवं प्रकृति की विविधता के एहसास को आत्मसात करते हुए यात्रा का आनंद उठा सकेंगे।
इससे रोजगार और स्वरोजगार के नए अवसर भी विकसित होंगे। इस यात्रा की शुरुआत साधु संतों के पहले जत्थे से की जायेगी।
यात्रा मार्ग की स्थिति
गंगा पदयात्रा का यह मार्ग 06 फीट चौड़ा होगा। यात्रा ऋषिकेश से लक्ष्मणझूला, गरुड़ चट्टी, फूल चट्टी, मोहन चट्टी, बिजनी, नौंठखाल (न्योडखाल), बंदर चट्टी (बांदर भ्येल), महादेव चट्टी, सिमालू (सेमल), नांद गांव, व्यासचट्टी (व्यासघाट), उमरासू, सौड़ व रामकुंड होकर देवप्रयाग पहुंचेगी।
यात्रा मार्ग कई जगह पर बदहाल स्थिति में है। कई स्थानों पर उसके विकास की आवश्यकता है जिसके लिए पहले चरण में 16 किमी का सुधारीकरण का कार्य होगा।
यात्रा मार्ग में कोटलीभेल नामक एक पड़ाव में करीब 200 मीटर का ट्रैक चट्टान पर है जिसे उत्तरकाशी के गरतांग गली की तर्ज पर लकड़ी का पैदल मार्ग तैयार कर नये स्वरूप में विकसित किया जाएगा।
ऐतिहासिक तथ्य
स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवनकाल में कई बार उत्तराखंड की यात्रा की थी। इस दौरान उन्होंने बद्रिकाश्रम क्षेत्र की यात्रा का भी लक्ष्य रखा था। उन्होंने इसी रूट से पदयात्रा शुरू की थी। लेकिन उस दौर में हैजा की महामारी चरम पर थी इसलिए उन्हें श्रीनगर से यात्रा बीच में ही छोड़कर लौटना पड़ा था। दूसरी बार भी वे आये लेकिन इस बार वे स्वयं बीमार पड़ गए और कर्णप्रयाग से लौट गये थे।
अब यह ‘गंगा पदयात्रा’ योजना चारधाम यात्रा में एक नया अध्याय जोड़ने का कार्य करेगी। साथ ही इस कदम से यात्रा की मूल अवधारणा के पुनर्जागरण को भी बल मिलेगा।
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