भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी तिथि को हुआ था। तब से आज तक मिट्टी की मूर्ति बनाकर अनेक विधियों से श्री गणेश की पूजा की जाती है। खासकर गुजरात व महाराष्ट्र में तीन दिन, एक सप्ताह या अनन्त चतुर्दशी तक गणेश पूजा की जाती है। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान लोगों को संगठित करने के लिए बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव को एक सार्वजनिक महोत्सव का रूप दिया था, जो आज बहुत बड़ा आकार ले चुका है।
हिन्दू धर्म में पाँच महाभूतों के प्रतिनिधि ब्रह्मा, विष्णु, महेश, शक्ति और गणेश, इन पंचदेवों में गणपति का स्थान है। गणपति जल तत्त्व के स्वामी हैं। उनकी माँ गौरी जहाँ तृतीया तिथि की देवी हैं, वहीं वे चतुर्थी तिथि के देव हैं, इसलिए माँ और बेटे का पूजन साथ साथ गौरी गणेश के रूप में होता है। गणेश पुराण में कहा गया है कि वेदों में प्रतिष्ठित गणेश ॐ का ही रूप हैं- ओंकाररूपी भगवान यो वेदादौ प्रतिष्ठितः (1.1.15)। यजुर्वेद में गणेश जी के लिए अनेक मंत्र आए हैं।
सबसे पहले गणेश पूजा
भगवान शिव ने लिंगपुराण में गणेश जी को यह वरदान दिया था कि तुम सभी देवों में सबसे पहले पूजित होगे। ब्रह्माण्डपुराण में माँ ललिता त्रिपुरसुन्दरी ने भी गणेशजी को सब जगह अग्रपूजित होने का वरदान दिया था। यही कारण है कि गणेश जी इन्द्र, कुबेर आदि देवताओं द्वारा भी प्रथम पूजित हैं।
हिन्दू धर्म के हर शुभकार्य में सबसे पहले गणेश जी की ही पूजा होती है। हर काम में “गणानान्त्वा गणपति” मन्त्र गूंजता रहता है। रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने भी बालकाण्ड के मंगलाचरण में वाणी और विनायक की सबसे पहले वंदना की और लिखा: –
वर्णानां अर्थसंघानां रसानां छंदसामपि।
मंगलानां च कर्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ।।
अर्थात् अक्षरों, अर्थ, रसों, छंदों और मंगल करने वाले वाणी और विनायक गणेश की मैं वंदना करता हूँ। स्पष्ट है कि वे अक्षरों, शब्दों और भाषा के देवता हैं, लेखन के देवता हैं, आखिर उन्हीं ने महर्षि वेदव्यास द्वारा सुनाई गयी महाभारत और पुराणों का लेखन किया था। श्री गणेश का विवाह ब्रह्माजी की दो पुत्रियों सिद्धि और बुद्धि हुआ था। इसलिए वे बुद्धि के भी देवता हैं। उनके दो पुत्र हैं शुभ और लाभ।
ग्रंथों में गणपति
गणपति का विवरण शिवपुराण, लिंगपुराण, देवीभागवत पुराण, गणेश पुराण, और ब्रह्मवैवर्त पुराण जैसे अनेक ग्रंथों में मिलता है पर हिन्दू धर्म के तंत्र ग्रन्थों में भी श्री गणेश का विवरण भरा पड़ा है। शाक्तागम, शैवागम, और पांचरात्र आगम की तरह गणपति आगम की विद्या और साधना अनन्त है। स्कन्द पुराण में भगवान शिव ने कहा है- मेरे आगम की ही तरह गणपति के आगम भी बहुतायत हैं। “आगमा बहवो जाता गणेशस्य यथा मम।”
ग्रंथो में उनके हरिद्रा गणपति, अर्क गणपति जैसे अनेक रूप बताए गए हैं। तंत्र में भगवान गणेश के बहुत से स्तोत्र और मंत्र हैं जो अलग अलग कार्य के लिए उपयोगी माने गए हैं। गणेशजी का सबसे प्रसिद्ध और जाना पहचाना मंत्र है “ॐ गं गणपतये नमः”। पहले भारत में वैष्णव, शैव और शाक्त की तरह गणपति के भक्तों का भी एक गाणपत्य सम्प्रदाय हुआ करता था।
गणेश प्रतिमा कैसी होनी चाहिए ?
मयमतं में गणेश जी प्रतिमा के लक्षण बताए गए हैं – 1. हाथी का मुख। 2. बाहर निकला हुआ एक दांत। 3. तीन नेत्र। 4. लाल रंग। 5.चार भुजाएं। 6. विशाल उदर। 7.सर्प का जनेऊ कंधे से लटकता हुआ। 8. मजबूत जाँघ और घुटना। 9. बायां पैर फैला और दाहिना मुड़ा हुआ। 10. बायीं ओर मुड़ी हुई सूंड।
उत्तर भारत और दक्षिण भारत में अलग अलग ओर होती है सूंड
भगवान गणेश की सूंड़ बायीं ओर होनी चाहिए या दाहिनी ओर, इस बारे में काफी चर्चा होती है। उत्तरभारत की गणेश मूर्तियों की सूँड़ दाईं ओर मुड़ी होती हैं, जबकि दक्षिण भारत की मूर्ति में सूंड बायीं ओर होती है। इसका कारण है कि दक्षिण भारतीय परम्परा में वास्तु और प्रतिमा लक्षणों का मुख्य ग्रन्थ “मयमतम्” है। वहाँ बताया गया है कि बायीं ओर मुड़ी सूंड वाली गणेश प्रतिमा की पूजा कामनाओं को पूरा कर सांसारिक सुख प्रदान करती है। जबकि दायीं ओर सूंड वाली प्रतिमा की पूजा व्यक्ति को मोक्ष से जुड़ा पारमार्थिक लाभ देती है।
गणेश जी को क्या पसंद है ?
श्रीगणेश को दूर्वा बहुत पसंद है। यह एक तरह की घास होती है। ग्रन्थों में दूर्वा को नरकनाशक, और वंश, आयु व तेज बढ़ाने वाला कहा गया है। महर्षि कौण्डिन्य ने दूर्वा से भगवान गणेश की पूजा करके उनका दर्शन पाया था। दूर्वा को ज्योतिष में राहु ग्रह से सम्बन्धित माना गया है, इसलिए गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने से राहु जैसा ग्रह भी शान्त होता है। गणेश जी को शमी और मंदार के पुष्प भी प्रिय हैं।
ज्योतिष में भगवान गणेश बुध ग्रह का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए उन्हें बुधवार प्रिय है। हरा रंग भी उन्हें प्रिय है। जब वर्षा ऋतु में उनका आगमन होता है, तो प्रकृति भी सब ओर दूर्वा घास और हरियाली फैलाकर उनका स्वागत करती है।
आपने देखा होगा गणेश जी की मूर्ति पर हमेशा सिन्दूर लगा होता है। क्योंकि शिवपुराण में बताया है कि जब भगवान शिव ने गणेश के सिर पर हाथी का सिर लगाकर उनको जीवित किया था तब वह सिर सिंदूर से लेपित था। माँ पार्वती भी गणेश के सिर को हाथ में लगे सिंदूर से सहलाती थीं इसलिए वे सिंदूर वर्ण के लगते थे। हाथी का सिर भी वैसा ही निकल आया तब माता पार्वती ने कहा तुम अपने भक्तों से हमेशा सिंदूर से लेपित होते रहोगे–
आनने तव सिन्दूरं दृश्यते साम्प्रतं यदि।
तस्मात्वंपूजनियो$सि सिन्दूरेण सदा नरै:।।
– शिवपुराण 2.4.18.9
ऐसे ही स्कन्दपुराण में देवी पार्वती ने एक बार गणेश को अमरत्व देने के लिए लड्डू में अमरत्व भर दिया। उसे गणेश जी साथ साथ एक चूहा भी खा गया और अमर हो गया। तब भगवान गणेश को लड्डू पसंद हैं और उन्होंने चूहे को अपना वाहन बना लिया। -स्कन्दपुराण ७/३/३२–श्लोक- २०,२१
गणेश चतुर्थी को चन्द्रमा का दर्शन वर्जित
एक बार अपनी सुन्दरता पर गर्वित हो चन्द्रमा ने लम्बोदर गणेश का मजाक उड़ाया तो गणेश जी ने चन्द्रमा को शाप दिया कि मेरी तिथि पर तुम्हारा दर्शन नहीं होगा। जब चन्द्रमा ने क्षमा मांगी तो गणेश जी ने उन्हें कहा- जाइए अदर्शन तो नहीं होगा पर अपवाद होगा। यानि जो भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को तुम्हारा दर्शन करेगा वह कलंक का भागी बनेगा।
इसलिए आज भी गणेश चतुर्थी पर चन्द्रमा का दर्शन नहीं किया जाता। इसी कारण श्रीकृष्ण पर स्यमंतक मणि की चोरी का झूठा आरोप लग गया था। कहा गया है अगर इस दिन चन्द्र का दर्शन हो जाए तो कडवे वचन और गाली सुनकर व्यक्ति कलंक से बच जाता है। हालाँकि बिहार के मिथिला क्षेत्र में इस दिन चन्द्रमा की धूमधाम से पूजा की जाती है।
काशी में हैं 56 विनायक
भगवान शिव ने अपनी प्रिय पुरी काशी की रक्षा के लिए यहाँ अनेक आवरण में गणपति को स्थापित किया था। हर आवरण में आठ-आठ विनायक होते हैं, इसलिए कुल आवरण 7 हैं। इन सभी 56 विनायकों के विग्रह भी अलग अलग स्वरूप के होते हैं। आज भी वाराणसी में ये छप्पन विनायक विराजते हैं जो काशी के धार्मिक वैभव को बनाए रखते हैं।
प्रथम आवरण- यह आवरण काशी में अभक्तों के प्रवेश को रोकने के लिए है जिसमें यह आठ विनायक हैं- अर्क, दुर्ग, भीम, देहली, उद्दंड, पासपाणी, खर्व, और सिद्ध विनायक।
द्वितीय आवरण- यह आवरण भक्तों की रक्षा के लिए है जिसके विनायक हैं- लंबोदर, कूटदन्त, शालकंट, कूष्माण्ड, मुंड, विकट, राजपुत्र, और प्रणव विनायक।
तृतीय आवरण- यह आवरण क्षेत्र की रक्षा के लिए है जिसके आठ विनायक हैं- वक्रतुंड, एकदंत, त्रिमुख, पंचास्य, हेरम्ब, विघ्नराज, वरद, और मोदक विनायक।
चतुर्थ आवरण- इसमें आठ विघ्नराज विनायक हैं- अभय, सिंहतुण्ड, कूणिताक्ष, क्षिप्रप्रसाद, चिंतामणि, दंतस्त, पिचंडील, व उद्दण्डमुण्ड विनायक।
पंचम आवरण- इस आवरण के आठ विनायक हैं- स्थूलदंत, कलिप्रिय, चतुर्दन्त, द्विमुख, ज्येष्ठ, गज, काल, और नागेश विनायक।
षष्ठ आवरण – इस आवरण के आठ विनायक हैं- मणिकर्णिका, आशा, सृष्टि, यक्ष, गजकर्ण, चित्रर्घन्टा, मङ्गल, व मित्र विनायक।
सप्तम आवरण- इस आवरण के आठ विनायक हैं- मोद, प्रमोद, सुमुख, दुर्मुख, गणनाथ, ज्ञान, द्वार, अविमुक्त विनायक।
इस साल गणेश चतुर्थी का मुहूर्त्त
इस साल गणेश चतुर्थी 31 अगस्त को बुधवार के दिन होने से और भी शुभ हो गयी है। इस दिन दोपहर 13:42 तक चतुर्थी तिथि है, इसलिए उसके पहले गणेश जी की पूजा का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त्त है।