पाकिस्तान इस दुनिया का आखिरी देश होना चाहिए जो मानवाधिकारों की बात करे लेकिन भारत की हर सफलता पर पाकिस्तान यही राग अलापता है कि जम्मू कश्मीर में मानवाधिकारों का हनन हो रहा है।
इस बार पाकिस्तान ने G-20 सम्म्मेलन पर टिप्पणी करते हुए यह बात कही है। जब विश्वभर के अखबारों ने इस जी-20 सम्मेलन की जमकर प्रशंसा की है तब पाकिस्तानी समाचार पत्र ‘द डॉन’ ने अपने एक सम्पादकीय के माध्यम से दिल्ली में हुए इस आयोजन के सम्बन्ध में अपनी निराशा व्यक्त की है। सबसे दिलचस्प बात इस पूरे लेख में यह है कि डॉन के अपने संपादकीय में स्वीकार किया है कि पाकिस्तान अब सिर्फ एक दर्शक बनकर रह गया है। साथ ही, पाकिस्तान ने इस्लामी उम्माह से भी हताशा जाहिर की है।
पाकिस्तान के प्रमुख अख़बार ‘द डॉन’ ने अपने सम्पादकीय में लिखा है, “कश्मीर में भारत के क्रूर मानवाधिकार रिकॉर्ड के बावजूद पश्चिमी देशों के साथ-साथ हमारे मुस्लिम भाई भी चिंतित नहीं हैं और फिर भी भारत के साथ व्यापार करने के लिए उत्सुक हैं। दुखद वास्तविकता यह है कि अन्तरराष्ट्रीय क्षेत्र में आर्थिक प्रभुत्व नैतिकता पर हावी हो जाता है।”
इन पंक्तियों से स्पष्ट है कि संपादक ने आसुंओं की स्याही बनाकर भारत के प्रभुत्व को स्वीकारा है। हालाँकि मानवाधिकार रिकॉर्ड की बात लिखते समय संपादक स्वयं अपने पाकिस्तानी अख़बार के पन्ने पलटना भूल गया।
पूरे लेख में पाकिस्तानी समाचार पत्र ‘द डॉन’ अपने घरेलू आर्थिक संकट और दुनिया में भारत के बढ़ते प्रभाव से पाकिस्तान की हताशा को छिपाने का दिखावा भी नहीं कर रहा है। इसमें डॉन ने ‘भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे’ का भी जिक्र करते हुए लिखा है कि इस नए गलियारे के साथ चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) पर निशाना साधा जा रहा है, जिसमें कि पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण भागीदार है।
अल्पसंख्यकों पर बढ़ता अत्याचार
पाकिस्तान में प्रतिदिन अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के मामले सामने आते रहते हैं। कभी गिरिजाघर जलाए जाते हैं तो कभी हिन्दुओं के मंदिर। पाकिस्तान में इस कदर अल्पसंख्यक बच्चियों का धर्मपरिवर्तन करवाया जा रहा है कि इसकी संख्या के कोई ठोस आंकड़े नहीं हैं।
पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान के सिंध में हिंदू लड़कियों को जबरन धर्म परिवर्तन करवाने के मामले सामने आते हैं। पाकिस्तान में सनातन धर्म ग्लोबल मूवमेंट चलाने वाले मनोज चौहान बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, “हिंदू लड़कियों का अपहरण हो रहा है और माफ़िया हमारे मंदिरों पर क़ब्जा कर रहे हैं लेकिन सरकार ने अपनी आंख बंद कर रखी है, कुछ नहीं कर रही है।”
पाकिस्तान में ईशनिंदा के नाम पर मॉब लिंचिंग की घटनाएं आम हो चुकी हैं।
पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक़, वर्ष 2022 में देशभर में ईशनिंदा के 35 मामले दर्ज किए गए। 171 लोगों को अभियुक्त बनाया गया, जिनमें 65 प्रतिशत मामले केवल पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के थे। अल्पसंख्यक लोगों का कहना था कि इस क़ानून का दुरुपयोग भी अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के लिए किया जाता है।
स्टेट ऑफ ह्यूमन राइट्स 2022 की सालाना रिपोर्ट में पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने बताया कि पिछले साल देश में राजनीतिक और आर्थिक खलबली ने मानवाधिकार अधिकारों पर गंभीर असर डाला है।
आतंकवादी हमलों में चिंताजनक बढ़ोत्तरी देखी गई, पांच सालों में सबसे ज्यादा, 533 लोगों ने जान गंवाई। खासकर खैबर पख्तूनख्वा में, जहाँ पाकिस्तान सरकार की दमनकारी नीति के खिलाफ आजादी की मांग उठती रहती है।
इस रिपोर्ट में बलूचिस्तान में किडनैपिंग के मामलों का भी उल्लेख है। जिसमें दर्ज मामलों में से 2,210 अनसुलझे बताए गए हैं।
एचआरसीपी की रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा बदस्तूर जारी है। कम से कम 4,226 रेप और गैंगेरेप के मामलों में अपराधियों को सजा दर बेहद कम है।
अहमदिया समुदाय पर बढ़ते हमले
अहमदिया समुदाय खासतौर से खतरे में है,पाकिस्तान में पिछले महीने जुलाई के दौरान पाकिस्तानी पुलिस ने अल्पसंख्यक अहमदी समुदाय के 600 से अधिक लोगों पर मामला दर्ज किया था। कई अन्य लोगों को ईद उल अधा के दौरान नमाज अदा करने से रोक दिया गया था. पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के सदस्यों पर बहुत अत्याचार किया जाता है।
इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें अपने घरों की चारदीवारी के भीतर भी अपनी आस्था का पालन पर रोका जाता है। पूरे पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय से जुड़े लोगों के घरों को निशाना बनाया जाता है और उनके घरों पर हमला किया जाता है।
विडंबना देखिये कि इन सब मामलों के बाद भी पाकिस्तान भारत को मानवाधिकार पर नसीहत दे रहा है। खैर, वो पाकिस्तान है वो ‘कुछ भी’ बोल सकता है।