‘बहु संस्कृतिवाद’ यानी Multiculturalism के चलते यूरोप पिछले कुछ समय से हिंसक घटनाओं का केंद्र बना हुआ है। फ़्रांस में हो रहे दंगों के बारे में आप जो कुछ भी देख या सुन रहे हैं, वह कहीं ना कहीं इसी का परिणाम है। कभी यह फीफा में हारने पर मोरक्को के शरणार्थियों के उत्पात का शिकार बनता है तो कभी यह किसी कट्टरपंथी शरणार्थी की वजह से भड़क उठता है। ब्रिटेन में तो ग्रूमिंग गैंग जैसे अपराध के ख़िलाफ़ अब लोग एकजुट हो रहे हैं।
जिस यूरोप ने विश्व के प्रवासी संकट को अपने आर्थिक नीतियों के लिए आपदा में अवसर की तरह देखा था, आज कहीं ना कहीं वही अवसर यूरोप के लिए आपदा बन चुका है।
फ्रांस पिछले कुछ दिनों से भीषण हिंसा की चपेट में है। इसके अलग-अलग शहरों में लोग सड़क पर हैं। मामला नियंत्रण से इतना बाहर हो गया कि प्रदर्शनकारियों ने वहाँ की एक बड़ी लाइब्रेरी तक जला डाली। फ़्रांस की सड़कों पर लोग आगजनी कर रहे हैं और साथ ही, गाड़ियों, सरकारी एवं निजी भवनों को निशाना बना रहे हैं। इसके बाद से समस्त यूरोप में प्रवासियों के संकट पर एकबार फिर बहस छिड़ गई है। फ़्रांस में ये सब तब हो रहा है जब आने वाले एक वर्ष में फ़्रांस ओलंपिक गेम्स की मेजबानी करने जा रहा है।
यह सब बीते मंगलवार को शुरू हुआ,जब यातायात रोकने के दौरान अफ्रीकी मूल के नाहेल एम की गोली लगने से मौत हो गई। नाहेल की उम्र 17 साल थी। फ्रांस की मीडिया का कहना है कि यह युवक पुलिस को चोट पहुँचाने के इरादे से पुलिसकर्मियों की ओर गाड़ी ले जा रहा था।
इस घटना के बाद पूरे फ्रांस में लोगों ने जमा होकर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया।फ्रांस की राजधानी पेरिस समेत तमाम दूसरे शहरों में दंगे भड़क उठे हैं। अब तक 800 से ज़्यादा लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं जबकि करीब 200 पुलिस अफसर घायल हुए हैं। वर्तमान में स्थिति संभालने के लिए सरकार ने 40,000 पुलिसकर्मियों को तैनात किया हुआ है। भीड़ को रोकने के लिए आँसू गैस का इस्तेमाल किया जा रहा है।
लोग नाहेल के लिए मार्च निकालने लगे और देखते ही देखते यह हिंसक प्रदर्शन में तब्दील हो गया। सोशल मीडिया पर इस हिंसक प्रदर्शन के कई वीडियो भी सामने आ रहे हैं। एक वीडियो में फ्रांस में दंगाई मार्सिले शहर की सबसे बड़ी सार्वजनिक लाइब्रेरी को आग लगाते हुए भी देखे गए। पुस्तकालय के जलाए जाने की घटना से लोग बेहद आहत भी हैं क्योंकि एक पुस्तकालय किसी राष्ट्र की सदियों पुरानी संस्कृति, ज्ञान और धरोहर का संरक्षण भी करता है। और फिर यह कोई आम पुस्तकालय भी नहीं था। इसके अलावा पेरिस ओलिम्पिक के पहले एक निर्माणाधीन तैराकी सेंटर में भी आग लगा दी गई। पेरिस के बाज़ारों में लूटी हुई दुकानों को देखा जा सकता है।
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फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने इस घटना पर आपातकालीन बैठक की और अभिवावकों से अपने बच्चों को घरों से न निकलने देने की सलाह दी है। एक ख़ास बात जो इन दंगों में सामने आई है वो है दंगों के लिए तकनीक के बदलते तरीक़े। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने दंगों के लिए ‘वीडियो गेम’ को जिम्मेदार ठहराया। एक बैठक के दौरान मैक्रों ने कहा कि ऐसा लग रहा है कि युवक वीडियो गेम्स की कॉपी कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “कभी-कभी ऐसा लगता है कि कुछ युवा सड़कों पर उन वीडियो गेम्स को जीने की कोशिश कर रहे हैं, जिनके नशे की चपेट में वो हैं।”
राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा कि दंगों के लिए गिरफ्तार किए गए लोगों में से एक तिहाई ऐसे हैं, जिनकी उम्र 14 से 18 साल के बीच है। दंगों के लिए स्नैपचैट और टिकटॉक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ऑनलाइन मीटिंग हो रही थीं। दंगों के दौरान वीडियो बनाकर उन्हें सोशल मीडिया पर फैलाया गया। इससे दंगा भड़काने में इन्हें मदद मिली। उन्होंने सोशल मीडिया कंपनियों से ऐसे कंटेंट हटाने के लिए कहा है।
इस बीच एक ट्वीट, जो सभी का ध्यान आकर्षित कर रहा है, वह है पोलैंड के प्रधानमंत्री माट्यूज़ मोराविकी (Mateusz Morawiecki) का – उन्होंने फ़्रांस की सड़कों के वीडियो शेयर करते हुए लिखा कि हमारी योजना यूरोप की सुरक्षित सीमाओं की है। सुरक्षा और क़ानून व्यवस्था, यही वो दो बातें हैं जहां से हर चीज शुरू होती है।
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ज़ाहिर सी बात है कि प्रवासी संकट से जूझ रहे फ़्रांस समेत पूरे यूरोप के लिए यह एक बड़ा संदेश हो सकता है। ये वही पोलैंड है जिसने पिछले वर्ष एशिया और अफ्रीका के हजारों प्रवासियों को बेलारूस से प्रवेश करने से रोकने के लिए लगभग 190 किलोमीटर लंबी दीवार खड़ी की थी।