जैसे द्रोणियों से बहती हुई हर छोटी-बड़ी नदियाँ और जलधाराएँ अन्त में समुद्र में ही जा मिलती हैं। ऐसा ही कुछ आज भारतीय राजनीति में भी देखने को मिल रहा है। जिन्होनें कभी कॉन्ग्रेस की नीतियों के खिलाफ या निष्पक्ष होकर अपनी जमीन तलाशी थी, वे भी आज अपनी सेवा देने को आतुर देखे जा रहे हैं। इस कड़ी में नेता से लेकर अर्थशास्त्री तक सभी शामिल हैं।
भारतीय राजनीति स्पेक्ट्रम में एक खास विचारधारा के चहेते अर्थशास्त्री और आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन, जिनका कार्यकाल सितम्बर 2013 से सितम्बर 2016 के बीच था। कयास लगाए जा रहे थे कि मोदी सरकार उनके तीन वर्ष के कार्यकाल को और विस्तार देगी लेकिन ऐसा हो न सका। उनके अनुसार भारत की ‘डूबती अर्थव्यवस्था’ को अपनी नीतियों की पतवार से पार लगाने के दावों को भी सम्मान नहीं दिया गया। इसके बाद अगले 6 वर्षों से रघुराम राजन ने वर्तमान सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था से जुड़े कई निर्णयों को गलत बताते हुए उसके गम्भीर दुष्परिणामों की चेतावनी दी लेकिन इस निष्ठुर सरकार ने माननीय की एक न सुनी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार एक-एक कर भारत में आर्थिक फैसले लेती गई और राजन जी के शंकाओं को पानी में बहाती गई। जिनमें नोटबंदी से लेकर जीएसटी, जनधन से लेकर पीएम कल्याण योजना आदि शामिल है।
भारत जोड़ो यात्रा वैचारिक से कहीं ज्यादा अस्तित्व की लड़ाई है, जिसे निर्णायक और देशव्यापी दिखाने का भी पुरज़ोर प्रयास जारी है। ऐसे में हर उस चेहरे को राहुल गाँधी के साथ देखा जा रहा है जिनका पोषण कॉन्ग्रेस ने किया था या जिन पर उनके बड़े उपकार रहे हैं। बहरहाल, यह सही समय है अपनी कृतज्ञता दिखाने का।
इसी कारण अपना सर्वस्व न्योक्षावर करते हुए रघुराम भी आ गए, राहुल गाँधी के साथ। बरसों से निष्पक्ष होने का ढोंग करते हुए न जाने कितनी छोटी-छोटी किश्तें भरी हों, अपनी कृतज्ञता की और न जाने इस दौरान कितनी ही बार उन्हें औंधे मुँह गिरना पड़ा हों लेकिन एक बार भी उफ़ तक न किया। अब बड़ा अवसर है, बड़े स्टेज पर अपनी मौजूदगी से संभवत: कुछ लाभ दे सकें। वैसे भी क्या उस प्रतिष्ठा का रघुराम आचार डालेंगे जो उनके स्वामी के काम न आए।
एक और विषय है, जिस पर बात नहीं हो रही है। राहुल गाँधी ने अपनी पकी हुई दाढ़ी को लेकर इतने आश्वस्त और आत्मविश्वास से ओत-प्रोत देखे जा रहे हैं। धर्म से लेकर शास्त्र हर तरह का ज्ञान उन्होनें ठेला है, अपनी यात्रा के दौरान। यहाँ बताना जरुरी है कि यह अधपके दाढ़ी के कांसेप्ट का श्रेय एकमात्र योगेंद्र यादव को दिया जाना चाहिए। उन्होनें ही बताया होगा इंसान के ज्यादा संजीदा दिखने में अधपके दाढ़ी का महत्व। यह उनका आज़माया हुआ नुस्खा है, वर्षों से वह भी इसी वेश में कितनों का स्वराज के नाम का चूरन बेच रहे हैं। अब देखने वाली बात है कि राहुल गाँधी इसका पालन कर कब तक अपनी बुद्धिमता पर उठते सवालों को रोक पाते हैं।