बढ़ता राजकोषीय घाटा हमेशा से ही सरकार के लिए चिंता का विषय रहा है। कोरोना के बाद बढ़े सरकारी खर्चे के कारण इसमें और तेजी आई। हालाँकि, अब सरकार लगातार इसे घटाने का प्रयास कर रही है, जिसमें वह काफ़ी हद तक सफल होती दिख रही है।
मंगलवार, 27 दिसम्बर को वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि चालू वित्त वर्ष 2022-23 की पहली छमाही के दौरान सरकार का खर्च राजकोषीय घाटे के सम्बन्ध में कम रहा।
रिपोर्ट में बताया गया है कि पूरे साल के अनुमान का मात्र 37.3% ही चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही अप्रैल-सितम्बर के दौरान खर्च हुआ। सरकार ने इस वर्ष GDP के 6.4% राजकोषीय घाटे का अनुमान लगाया था।
क्या होता है राजकोषीय घाटा?
राजकोषीय घाटे को अगर सरल शब्दों में समझा जाए तो यह वह खर्चा है जो सरकार उधार लेकर करती है। सामान्य शब्दों में, जब कोई भी राज्य सरकार या केंद्र सरकार बाजार या अन्य माध्यम से पैसा उधार लेकर अपने खर्च को पूरा करती है तो इसे राजकोषीय घाटे का नाम दिया जाता है।
वर्ष 2003 में पास हुए आर्थिक जिम्मेदारी (FRBM) कानून के अनुसार, किसी भी सरकार का राजकोषीय घाटा GDP का 3% से अधिक नहीं होना चाहिए। हालाँकि अलग-अलग परिस्थितयों में इसमें छूट दी जा सकती है।
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क्यों घट रहा है सरकार का घाटा?
जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने इस वर्ष के बजट के लिए 16.6 लाख करोड़ रुपए राजकोषीय घाटे का प्रावधान किया था जो कि GDP का 6.4% होता परन्तु पहली छमाही के अंत तक सरकार ने राजकोषीय आँकड़े की राशि का मात्र 37% ही खर्च किया।
बढ़े कर संग्रह और तेजी से बढती आर्थिक विकास के कारण सरकार का राजकोषीय घाटा पहली छमाही में पूरे साल के अनुमान का 37.3% रहा, सामान्य परिस्थितयों में इसे 50% के आस-पास होना चाहिए था। हाल ही में आए एक आंकड़े के अनुसार, सरकार की प्रत्यक्ष कर( आयकर और कोर्पोरेट कर) से होने वाली कमाई में बड़ा उछाल आया था।
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वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किए गए एक आँकड़े के अनुसार, अप्रैल 2022 से 15 दिसम्बर 2022 के बीच सरकार का प्रत्यक्ष कर संग्रह 11.35 लाख करोड़ पहुंच गया, जो कि इस साल के कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह के अनुमान का 80% है।
गरीबों को मुफ्त राशन, बड़े पैमाने पर खाद्य सब्सिडी और कोरोना महामारी के बाद बढ़े हुए खर्च ने सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़ा दिया है। इसके अतिरिक्त रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण बढ़ी ऊर्जा की कीमतों ने भी इसमें अपना योगदान दिया है। अब इन आँकड़ों से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले समय में सरकार अपने राजकोषीय घाटे को घटाने में सफल रहेगी।
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