झाँसी फाइल्स पढ़ने के बाद, मेरी उम्मीद के अनुसार लोगों ने आज़ाद साहब की झाँसी वाली तस्वीर के बारे में बड़ी उत्सुकता दिखाई थी। अब होता यह है कि समाचार पत्रों में जब भी आज़ाद साहब की तस्वीरों के बारे में कोई ग़लतबयानी करता है तो मेरे मित्र उसकी कटिंग मुझ तक भेज देते हैं।
आज 27 फ़रवरी, जो कि आज़ाद साहब का शहीद दिवस है, पर बात करते हैं एक और चित्र की जो कि आमतौर पर दिखाई नहीं देता। यह चन्द्रशेखर जी के उस समय की है जब वो आज़ाद बनकर जेल से बाहर आये थे।
बेंत खाकर जब वो बाहर निकले तो जनता ने उनको कंधे पर बिठा लिया था। बाहर आते समय उनको कुछ पैसे दिए गए थे जिससे वो अपना इलाज करा सकें। आज़ाद साहब वो पैसे वहीं फेंक कर चले आये थे। सराय गोवर्धन आकर उन्होंने अपना इलाज वैद्य गौरी शंकर शास्त्री जी से करवाया था।
कुछ दिन बाद विश्वनाथ मंदिर के इलाके में चन्द्रशेखर के अभिनन्दन समारोह का आयोजन किया गया। चन्द्रशेखर जब तक गोवर्धन धर्मशाला से समारोह स्थल तक पहुँचते, वो फूल-मालाओं से लद चुके थे। लोगों ने उनको अपने कंधे पर बिठाया हुआ तो कभी अपनी गोद में उठाया हुआ। धर्मशाला से लेकर समारोह स्थल की सड़क फूलों की बारिश से पट चुकी थी।
धोती-कुर्ता पहने और माथे पर चन्दन का टीका लगाये जब चन्द्रशेखर मंच पर पहुँचे तो भीड़ ने आसमान सिर पर उठा लिया।
“महात्मा गाँधी की जय!”
“भारत माता की जय!”
”वन्दे मातरम्!”
“चन्द्रशेखर आज़ाद ज़िन्दाबाद!”
“आज़ाद ज़िन्दाबाद, आज़ाद ज़िन्दाबाद” के नारों के अलावा उस इलाके में और कुछ सुनायी ही नहीं दे रहा था।
“ऊपर उठाइये, ऊपर उठाइये।”
आज़ाद को ना देख पाने की स्थिति में भीड़ आज़ाद को गोद में उठाने की मांग कर रही थी और आख़िरकार जनसमूह के दर्शन के लिए पंद्रह साल के आज़ाद को एक मेज पर खड़ा कर दिया गया। उसी समय एक चरखे के साथ उनका यह दुर्लभ चित्र लिया गया था। इस चित्र के बारे में 1963 तक किसी को पता नहीं था। यहाँ तक कि आज़ाद साहब ने अपने साथियों से भी कभी इस चित्र की चर्चा नहीं की थी।
बात 1963 की है जब मिर्ज़ापुर में श्री बटुक नाथ अग्रवाल ने आज़ाद साहब की प्रतिमा का उद्घाटन समारोह आयोजित किया था। उस अवसर पर आज़ाद साहब के अनेक साथी जैसे भगवानदास माहौर, सदाशिव राव मलकापुरकर, विश्वनाथ वैशंपायन तथा शचीन्द्र नाथ बक्षी एकत्रित हुए थे। समारोह के पश्चात माहौर जी, मलकापुरकर साहब, वैशंपायन जी और बक्षी साहब बनारस गए थे। बनारस में माहौर साहब के एक मित्र प्रोफ़ेसर राधेश्याम शर्मा रहते थे। प्रोफ़ेसर साहब से मुलाक़ात हुई तो आज़ाद साहब की चर्चा तो होनी ही थी। शर्मा जी ने बताया कि बनारस में एक वैद्य जी हैं जो कहते हैं कि उन्होंने आज़ाद के अवशेषों का दाह संस्कार किया था।
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वो वैद्य जी थे पंडित शिव विनायक मिश्र जो उनके अभिवावक हुआ करते थे। पंडित शिव उन्नाव के रहने वाले थे और आज़ाद साहब के दूर के रिश्तेदार भी हुआ करते थे।
जब सभी साथियों की मुलाक़ात पंडित शिव से हुई तो बातों-बातों में पंडित जी ने यह भी बताया कि उनके पास एक चित्र है जो आज़ाद साहब के बचपन का है। पहले तो किसी को विश्वास नहीं हुआ क्योंकि उन सभी दोस्तों को आज़ाद साहब के मात्र दो चित्रों की ही जानकारी थी। यह वही चित्र थे जो झाँसी में मास्टर रूद्र नारायण जी यानी मेरे नाना जी द्वारा लिए गए थे। आज़ाद के साथियों को संशय में देख कर पंडित शिव एक अल्बम ले आये और वो चित्र दिखाया।
धोती-कुर्ता पहने और माथे पर चन्दन का टीका लगाये चौदह-पंद्रह बरस का एक बालक चरखे के साथ खड़ा था। सालों साथ में रहने के कारण आज़ाद साहब के साथियों को यह पहचानने में देर नहीं लगी कि यह आज़ाद साहब के ही बचपन का चित्र है। पंडित शिव ने साथियों को यह बताया कि आज़ाद साहब का यह चित्र बेंत लगने के बाद हुए समारोह के दौरान लिया गया था। मर्यादा नामक समाचार-पत्र में जब “वीर बालक” के नाम से सम्पूर्णानन्द जी ने आज़ाद साहब के उस चित्र के साथ एक प्रशंसनीय लेख लिखा था, यह चित्र उसी समय का था।
खोजवा बाजार नवाबगंज निवासी पंडित शिव ने साथियों को बताया कि बाद में आज़ाद के क्रांतिकारी हो जाने तथा उनके नाम वारंट निकलने पर उन्होंने वह चित्र अपने मंदिर में श्री राम पंचायतन चित्र के पीछे छुपा कर रख दिया था।
चित्र को इस प्रकार छुपा कर रखने का एक कारण यह भी था कि पंडित शिव उन दिनों नगर कांग्रेस कमेटी के सेक्रेटरी और बनारस के बड़े कांग्रेस नेताओं में से एक थे। घर में समय-समय पर पुलिस के छापे पड़ते रहते थे और तलाशी होती रहती थी। पुलिस के हाथ में चित्र ना लगने पाए इसके लिए उन्होंने चित्र को छुपा दिया था।
सन 1931 के समाचार पत्रों में आज़ाद के अंतिम संस्कार के जो समाचार छपे थे, पंडित शिव ने उन्हें सुरक्षित रखा हुआ था। उन अख़बारों की कटिंग को देखकर सभी साथियों को यकीन हो गया कि पंडित शिव विनायक मिश्र जी ने ही आज़ाद साहब का अंतिम संस्कार किया था।
भगवानदास माहौर, सदाशिव राव मलकापुरकर, विश्वनाथ वैशंपायन तथा शचीन्द्र नाथ बक्षी की हैरानी तब और बढ़ गयी थी जब पंडित शिव ने आज़ाद की अस्थियों के दर्शन भी उनके साथियों को करा दिए थे।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम एक ऐसे ही कुछ गुमनाम क्रांतिकारियों की गाथाएं आप क्रांतिदूत शृंखला में पढ़ सकते हैं जो डॉ मनीष श्रीवास्तव द्वारा लिखी गयी हैं।
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