आज से ठीक 1 हफ्ते पहले का रविवार, एक ऐतिहासिक दिन पूरे फुटबॉल जगत के लिए! मुकाबला था फ़्रांस बनाम अर्जेन्टीना। मौका था फाइनल का। दाँव पर थी फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप की ट्रॉफी। मित्रमंडल के साथ घूमते हम देहरादून के घंटाघर से रोबर्स केव की ओर निकले। देखते ही देखते सभी मित्र उस रिज़ॉर्ट पहुँचे, जहाँ पर बड़ी स्क्रीन पर फुटबॉल का यह मुक़ाबला देखना तय हुआ था।
अर्जेन्टीना के समर्थकों के बीच हम फ़्रांस के समर्थक गिनती में कुछ कम ही थे। वजह एक ही थी – अर्जेन्टीना का जादूगर मेस्सी! हम खेल की ओर थे। हम सभी ने फुटबॉल के नाम पर ज़ोर-शोर से नारे लगाए। चूँकि फ़्रांस के पास भी एमबापे जैसा मारक स्ट्राइकर था, यकीन मानिए जैसे-जैसे खेल की गति बढ़ी, यह मुक़ाबला भी ‘एमबापे बनाम मेस्सी’ में तब्दील हो चुका था। इतना रोमांचक फीफा फाइनल मुक़ाबला अब तक की अपनी उम्र में शायद ही हमने देखा हो।
पहले हाफ में 2-0 की बढ़त बनाती अर्जेन्टीना; दूसरे हाफ में मिनट में दो गोल मारकर बराबरी करती फ़्रांस। एक्स्ट्रा टाइम में फिर 3-3 स्कोर और फिर फाइनल पेनल्टी स्कोर मे निराश करती फ़्रांस।
उधर अर्जेन्टीना विश्व विजेता बन चुका था तो वहीं फ़्रांस लगातार 2 वर्ल्ड कप जीतने का इतिहास बनाने से चूक गया। उधर मेस्सी को कंधे पर उठाते अर्जेन्टीनाई खिलाड़ी, यहाँ एमबापे को दिलासा देते फ्रेंच राष्ट्रपति मैक्रों। आँखें इधर भी नम थीं। सिर्फ फ़्रांस के लिए ही नहीं, बल्कि एक नायक के लिए भी। जिसने शृंखला की शुरुआत से ही फ़्रांस के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया था। जिसके बिना फ़्रांस की फाइनल पहुँचने के परिकल्पना करना भी शायद मुश्किल होता। जिसने फ़्रांस के लिए अपना खेल स्थान तक परित्याग कर दिया था । वो नाम? ग्रीज़मन्न, ‘अंत्वान ग्रीज़मन्न’! (Antoine Griezmann)
अभिशाप तोड़ता अंत्वान ग्रीज़मन्न
यह बहस क़तर विश्व कप से पहले से ही चल पड़ी थी। विश्व कप के उस अभिशाप की चर्चा, जिसकी शुरुआत फ़्रांस की 1998 फीफा कप की जीत से ही शुरू हुई थी। वो अजीब सिलसिला जिसके बाद से गत चैंपियन टीम आगामी कप को बचाना तो दूर, ग्रुप स्टेज में ही बाहर हो रही थीं।
यह प्रकोप दिखने लगा जब डिफ़ेंडर राफेल वरेन यकायक स्टार मिड्फील्ड जोड़ी – पॉल पोगबा – निगोलोकान्ते, युवा नकुंकू, बेनजेमा समेत तमाम दिग्गज चोट के कारण विश्व कप से चंद दिन पहले ही बाहर हो गए।
एक पूरी बी टीम प्रतीत होती फ़्रांस के साथ अकेले पड़ते दिख रहे थे उसके महानतम मैनेजर – दीदिएर देश्चैंप्स। इसमें कोई दो राय नहीं थी कि फ़्रांस की बेंच स्ट्रेंथ अब भी मजबूत थी। भले ही मिड्फील्ड में अब भी खालीपन झलक रहा था। इसी बीच, वर्ल्ड कप से पहले देश्चैंप्स ने हैरतअंगेज निर्णय लिया। एक फॉरवर्ड प्लेयर ग्रीज़मन्न को मिड्फील्ड में रख दिया।
4-2-3-1 के आक्रामक फार्मेशन में फ़्रांस ने खेलना शुरू किया। अब ग्रीज़मन्न अपनी स्वाभाविक भूमिका त्याग कर मिड्फील्ड की कमी को दूर करने में लगे थे। ग्रीज़मन्न कब टूर्नामेंट की शुरुआत में एक औपचारिक सहयोगी मिडफ़ील्डर से उसके अंत तक फ़्रांस के सबसे महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन गए, ये सब देखते ही बनता है। टीम के आक्रमण से लेकर डीप बैक पर डिफेन्ड करना। ग्रीज़मन्न का वर्क रेट सबसे ऊपर था। जब-जब ग्रीज़मैन के पाले में फुटबॉल आई, तब तब विरोधी टीम के फुल बैक कमजोर दिखाई दिए। जितने अवसर गोल भेदने के ग्रीज़मन्न ने बनाए पूरे वर्ल्ड कप में, शायद ही उनके समकक्ष कोई रहा हो।
यत्र तत्र सर्वत्र ग्रीज़मन्न
फ़्रांस ग्रुप ‘एफ’ में थी। पहला मुकाबला था फ़्रांस बनाम ऑस्ट्रेलिया। छुपा रुस्तम ऑस्ट्रेलिया। 4-1 के फाइनल स्कोर से फ़्रांस ने एकतरफा ये मुकाबला अपने नाम किया। यहाँ मिड्फील्ड पर ग्रीजमन्न ने राबियो के साथ साथ चाउमेनी का अच्छा साथ निभाया। एक से बढ़कर एक निर्णायक पासेज दिए। अभिशाप की अफवाओं का मानो अंत कर दिया।
जब फ़्रांस डेनमार्क सरीखी बड़ी टीम के खिलाफ उतरी तो एक अनिश्चितता का भाव भी साथ था। 85 मिनट तक गेम 1-1 की बराबरी पर दिख रहा था। किसी भी पाले में गेम जा सकता था। तभी पूरे डैनिश डिफेन्स को चौंकाते हुए ग्रीजमन्न ने एमबापे को सीधा एक ऐसा क्रॉस पास दिया, जिसे अंततः गोल में तब्दील कर देने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। और इसी गोल के साथ फ़्रांस बन गई टेबल टॉपर। यह पल नयनाभिराम था। यही उस दिन के खेल का सौंदर्यबोध था। और उस गोल से भी ज्यादा सुंदर थी ग्रीज़ू द्वारा पास की गई वह मदद!
यूँ ट्यूनीशिया के ख़िलाफ़ देश्चैंप्स ने एक ‘बी’ टीम उतारना उचित समझा। पर यहाँ ग्रीज़मन्न की कमी साफ झलक रही थी। कमी इतनी कि 0-1 से पिछड़ती फ़्रांस को ग्रीज़मन्न को 73वें मिनट में सब्स्टियूट खिलाड़ी के तौर पर लाना पड़ा। ग्रीज़ी आया और एक बार फिर बेहतर स्पेस और पोज़िशन में खड़ा दिखाई दिया।
लियोनेल स्कालोनी: अर्जेंटीना की जीत का डार्क हॉर्स, जिसे कभी माराडोना ने कहा था ‘नालायक’
90 मिनट से शायद 1 मिनट ही कम रहा होगा कि ग्रीज़मन्न ने कॉलो मुआनी को एक बेहतर पास दिया। एक लंबी रेंज का गोल मारने के लिए। मुआनी विफल रहे। फ़्रांस भी फ़ुल टाइम तक ट्यूनीशिया की दीवार भेदने में विफल रही। किंतु 17वें मिनट पुराने ग्रीज़मन्न अपनी भूमिका निभाने में ज़रूर सफल रहे।
अंतिम 16 आया। लेवन्दोस्की की पोलैंड हमेशा की तरह घातक दिख रही थी। 37वें मिनट पर ही लगातार 3 आक्रमण फ़्रांस के गोलपोस्ट पर! अलबत्ता ये सभी विफल रहे। डेप्यूटी ग्रीज़मन्न मानो पैरों पर चुंबक लगाकर आया हो। दूसरे हाफ में ग्रीज़मन्न ने एक ऊँचा हवाई पास किया। बिल्कुल गोल्कीपर जैसा। जो सीधा जिरउ के पैरों पर आया और फाइनल थर्ड पर एक और आसान गोल आया। फ़्रांस की जीत में ‘ब्रेस’ था एमबापे का, लेकिन ‘ब्रेन’ था ग्रीज़मन्न!
व्यंग्य: अर्जेंटीना की जीत नहीं लोकतंत्र की हार, मनुवादियों के नाम रवीश कुमार का खुला खत
यह क्वाटरफाइनल नहीं आसान, बस इतना जान लीजिए…. विश्वस्तरीय इंग्लैंड की चुनौती थी, जिसे पार कर जाना था।
आज ग्रीज़मन्न सबसे ‘गहरे प्लेमेकर’ की तरह खेल रहे थे। मात्र 17 मिनट में ही चाउमेनी को ऐसा पास दिया कि वह गोल बन गया। सारी डिफेन्स लाइन स्तब्ध थी। मानो कोई उनकी साख का उपहास बना गया हो। 17 से 77 मिनट पर फिर 1-1 की स्कोरलाइन थी लेकिन ग्रीज़मन्न ने अपनी सूझ-बूझ से हाफ़-वे लाइन से सीधा पेनल्टी बॉक्स पर खड़े स्ट्राइकर को बाल पहुँच दी। नतीजा 2-1।
अंतिम समय पर इंग्लैंड का सपना चकनाचूर हो गया। फ़्रांस का ग्रीज़मन्न एक बार फिर अपने नेतृत्व में फिर जीत का नायक बना। एक बार फिर ‘मैन ऑफ दी मैच’।
यूँ तो सेमीफाइनल में मोरक्को जैसी अति रक्षात्मक टीम के डिफेन्स को भेदना आसान नहीं था, जो कि सिर्फ काउन्टर अटैक ही करती आ रही थी, लेकिन शायद मोरक्को ग्रीज़मन्न को थामने के लिए मुस्तैद नहीं थी। शायद वह भूल गए कि ग्रीज़मन्न अटलेटिको मैड्रिड क्लब के लिए खेलते हैं।
डिएगो सिमीयोनी की अटलेटिको जो खुद ‘बस पार्किंग’ जैसा खेल खेलती है। बस पार्किंग कहने का उद्देश्य वही है जैसा आप समझ रहे हैं, यानी सिर्फ़ डिफ़ेंस को ही अपनी मज़बूती मान लेना। मात्र चार मिनट के समय में ही ग्रीज़मन्न ने मोरक्को के डिफेन्स को भेदते हुए एक शानदार पास दिया, जिसे थियो हर्नांडिस ने बखूबी भुनाया। एक और जीत के साथ सेमाइफाइनल में फ़्रांस और फिर से फ़्रांस के लिए सबसे अचूक हथियार ग्रीजमन्न ही दिखे।
फाइनल के 75वें मिनट में ग्रीज़मन्न को सब्स्टिट्यूट होना पड़ा। पर उन 75वें मिनट में जिस पज़ेशन और मिड्फील्ड को उन्होंने पकड़े रखा उसका नतीजा 10 मिनट बाद लगातार 2 गोल से बराबरी में सामने आ ही गया।
मैं जीता पर किस कीमत पर
यह कहना बेईमानी नहीं होगा कि जो काम मेस्सी ने अर्जेन्टीना के लिए किया, वही काम ग्रीज़मन्न ने फ़्रांस के लिए किया। तमाम छोटी बड़ी फंतासी लीग के कप्तान/ उपकप्तान नियुक्त होते थे ग्रीज़मन्न। चाहे आक्रमण हो या जरूरत के समय डिफेन्स ग्रीज़मन्न हर जगह नजर आते।
ये पूरे कप के दौरान मैच रेफरी के विवादास्पद निर्णय रहे जहां अर्जेन्टीना को बढ़त मिली। वह 36 साल का सूखा तोड़ पाई। और मराडोना को मेस्सी का उपहार मिला। अगर अंतिम नतीजा उलट होता तो क्या ग्रीज़मन्न गोल्डन बॉल का हकदार होता जो अब मेस्सी के नाम है?
या फुटबॉल के सबसे प्रतिष्ठित पुरुस्कार – बैलन डी’ओर में अपना नाम दर्ज कर लेते, जिसके करीब यह खिलाड़ी साल 2016 के यूरो कप के अपने असाधारण प्रदर्शन में, अटलेटिकों के साथ अपने 2 चैंपियंस लीग फाइनल्स, और तो और पिछले वर्ल्ड कप की जीत मे अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए भी आया था, परंतु इसे जीतने से वंचित रह गया था।
फिलहाल गोल्ड से लेकर ब्रान्ज़ बॉल ग्रीज़मन्न को ना मिलना निराश करता है। पर यह भी समझ आता है कि ‘अंडररेटेड’ शब्द आखिरकार क्यों ईजाद हुआ है।
शुक्रिया ले पेतीत प्रिंस ग्रीज़मन्न
शुक्रिया दीदीएर देश्चैंप्स!