भारत के उत्तराखण्ड राज्य की राजधानी है देहरादून। देहरादून में एक बैंक में कार्यरत मेरे एक साथी ने पूरा विश्व कप बस यह सोच कर नहीं देखा कि वो अगर मैच देखेंगे तो मेस्सी मैच हार जाएगा, और वो मेस्सी को हारता हुआ नहीं देखना चाहते थे। वो लगातार मैच का स्कोर चेक करते रहते, द पैम्फलेट पर हमारी मैच रिपोर्ट पढ़ कर मैच की हाइलाइट्स भी देखा करते परन्तु मैच नहीं देखा करते। वहीं आईआईटी मद्रास से पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च कर रहे एक साथी को शुरू से यकीन था कि अर्जेंटीना विश्व विजेता बन ही जाएगी।
आज इस धरा ने इतिहास बनते देखा। मेस्सी जीत गया। तमाम त्रासद व गहरे अवसाद में धकेल देने वाली हारों के पश्चात कल रात मेस्सी वाकई जीत गया। वह सदा सदा के लिए अमर हो गया। वह एक किवदंती हो गया। वह हमेशा के लिए लातिन अमेरिकी लोककथाओं का नायक हो गया।
यूँ भी मेस्सी तो त्रासदियों का नायक है। लुका कायोली ने मेस्सी पर लिखी किताब में उसे ग्रीक नायक बताया था। वहीं, एक वक्त एदुआर्दो गालीआनो ने अर्जेंटीनाई महान फुटबॉलर मेरेडोना के बारे में कहा था कि यह सर्वश्रेष्ठ होने का पाप है। इसी तरह मेस्सी फुटबॉल का एक पवित्र शोक बन चुका था जो कई अवसरों पर अकेलियस की गति को प्राप्त हुआ।
सचिन तेंदुलकर की महान पारियों का अंत भी एक विश्व कप ख़िताब के साथ हुआ था। कुछ इसी तरह मेस्सी के साथ उसके विधाता ने न्याय किया है। इन्हें किसी एक बिखरे हुए आवारा पल ने महानायक नहीं बनाया, ये सदियों के हिसाब से बिखरे पलों से पके हुए नायक हैं।
मेस्सी कई त्रासदियों से बना है। मेस्सी का नायकत्व उसकी त्रासदियों में छिपा है। त्रासदियों को साधने वाले ही नायक बनते हैं। मैं ही नहीं, आज हर दर्शक जानता था कि मेस्सी यह ख़िताब चूमेगा, वह ट्रॉफ़ी को औलाद की तरह गोद में लिए हुए है। वह ग्लेडियेटर है वह शान से लौटेगा।
रात ठीक साढ़े आठ बजे (भारतीय समयानुसार) एक बार फिर अपनी पारंपरिक अल्बीसेलेस्त (हल्की नीली व सफेद) जर्सी पहने लियोनेल स्कालोनी की अर्जेंटीना लुसैल स्टेडियम के घसियाले मैदान में उतर चुकी थी। इस बार उनका सामना होना था गत विजेता फ्रांस से।
भला वह कौन खेल प्रेमी होगा जिसने 2014 विश्व कप के फाइनल मुकाबले के बाद अपना रजत पदक लेने मंच पर जाते हुए मेस्सी द्वारा विजेता ट्रॉफी को बूझे मन से देखने पर अश्रु न बहाए हों। यह खेल जगत की सबसे उदास तस्वीरों में से एक है। जर्मन टीम द्वारा माराकाना स्टेडियम में समस्त जगत पर किया गया कोई असहनीय अत्याचार।
फ्रांस भी घातक अटैकिंग लाइनप के संग मैदान में उतरी थी। मैच की शुरुआत होने से ठीक दस मिनट पूर्व खबर आती है कि अर्जेंटीनी लेफ्ट बैक अकून्या यह मैच नहीं खेल सकेंगे। वह वार्म अप के दौरान इंजर्ड हो गए थे। एक डर अब बारंबार मन में कौंध रहा था। कहीं कुछ वैसा ही फिर तो न होगा। कहीं एक दफा फिर मेस्सी रजत पदक पहन घर की ओर वापस कदम बढ़ाने को विवश तो नहीं हो जाएगा।
खैर, समयानुसार मैच शुरू हुआ। पोलिश रेफरी ज़िमोन मार्सिनियाक ने व्हिसल बजा कर तमाम खेल प्रेमियों को वह पल दे दिया जिसका उन्हें पिछले कुछ दिनों से बड़ा ही इंतजार था। स्टेडियम अर्जेंटीना व फ्रांस के समर्थकों से भरा पड़ा था। फ्रांस व अर्जेंटीना के तमाम बड़े नेता भी स्टेडियम के वीआईपी स्टैंड में मौजूद थे।
अर्जेंटीना ने आज कमाल ही कर दिया। मैच शुरू होते ही वह फ्रेंच टीम पर आक्रमण करने लगे। अर्जेंटीना ने अपनी 3-5-2 फॉर्मेशन की जगह एक बार पुनः 4-3-3 फॉर्मेशन के साथ मैच में उतरने की ठानी थी। फॉरवर्ड लाइन में अल्वारेज़ व मेस्सी के संग लेफ्ट फ्लैंक पर थे एंजेल डि मारिया।
एंजेल डि मारिया निश्चित रूप से बड़े मैचों का खिलाड़ी है जो अपने गोलों के बदौलत अर्जेंटीना को ओलंपिक, कोपा अमेरिका व फ़िनालिस्मा (यूरोप व दक्षिण अमेरिका के विजेता के मध्य होने वाला मैच) जिता चुके थे। 2014 का फाइनल वो नहीं खेले थे, परिणाम क्या रहा था हम सभी इससे भलीभाँति परिचित हैं।
एंजेल डि मारिया व हूलियन अल्वारेज़ लगातार अपनी गति से फ्रांस को परेशान कर रहे थे. मिडफील्ड में युवा मैक एलिस्टर व ऐंजो लगातार फ्रांस की तकलीफें बढ़ा रहे थे। एंजेल डि मारिया ने पहले हाफ के तेइसवें मिनट में एक पेनल्टी अर्जित की। कप्तान मेस्सी ने विपक्षी गोलकीपर हूगो लौरिस को छका कर गोल किया व स्कोर हो गया अर्जेंटीना 1 व फ्रांस 0।
एक दफा फिर एंजेल डि मारिया ने मैच के छत्तीसवें मिनट में एक गोल दाग दिया। अब स्कोर हो गया था: अर्जेंटीना 2 व फ्रांस 0। फ्रेंच खिलाड़ियों, सपोर्टिंग स्टाफ व समर्थकों को काटो तो खून नहीं। अर्जेंटीनी समर्थकों में हर्षोल्लास की लहर दौड़ पड़ी।
मैच के पहले तीन क्वार्टर्स (पहले पिचहत्तर मिनट) में फ्रांस एकदम नीरस नजर आई। वह मैच में कहीं थी ही नहीं। अर्जेंटीना ने उनको मानो दबोच लिया था; मिडफील्ड में चुआमेनी, राबियो व ग्रिज़मान संघर्ष करते नजर आ रहे थे। कोच दीदिएर देश्चैंप्स निराश हो कर पहले ही जीरू व डेंबेले को बाहर बुला चुके थे।
एकाएक मैच के अस्सी वें मिनट पर रेफरी ज़िमोन मार्सिनियाक ने अर्जेंटीनी डिफेंडर द्वारा फाउल किए जाने पर फ्रांस को पेनल्टी दे दी थी। कीलिएन बाप्पे ने गोल कर स्कोर 2-1 कर दिया। ठीक 97 सैकेंड के भीतर एक और तेजतर्रार शॉट लगा कर बाप्पे ने हलचल मचा दी। स्कोरबोर्ड पर अचानक ही बराबर हो गया था।
यहाँ से मैच एकदम रोचक हो गया। फ्रेंच कोच दीदिएर देश्चैंप्स ने बेहद सटीक सब्सटीट्यूशन्स किए। कोलो मुआनी, थुर्रम व कामाविंगा ने अनुभवी को मान के संग मिलकर अर्जेंटीनी खेमे की नाक में दम कर दिया। बाप्पे लगातार फ्रेंच लड़ाकू विमान राफेल की भांति विपक्षी के इलाके में खलबली मचा रहा था। अब अर्जेंटीनी खिलाड़ी थक चुके थे, उनके पास बाप्पे की कोई काट नहीं थी।
जो मैच नब्बे मिनट के निर्धारित समय के भीतर खत्म हो जाना चाहिए था वह एक्सट्रा टाइम में चला गया। इसकी एकमेव वजह था पेरिस का तूफान कीलिएन बाप्पे। कीलिएन बाप्पे आज कुछ भी गलत नहीं कर रहा था। उसने अकेले ही फ्रांस को एकाएक लड़ने का हौसला दे दिया था।
एक्सट्रा टाइम के दूसरे हाफ में जब मेस्सी ने अपने खेल के उलट पोच करते हुए गोल दाग अपनी टीम को बढ़त दिलाई तो लगा अब तो यह एक ऐसी कथा हो गई जिसे स्वयं उपर बैठा कोई भगवान ही लिख रहा है। एक्सट्रा टाइम में गोल दाग मेस्सी ने अर्जेंटीना के लिए जीता विश्व कप। अहा!! यह कितना खूबसूरत होने जा रहा था। परन्तु पेरिस का तूफान अभी भला कहाँ थमा था।
118 वें मिनट में एक विवादास्पद पेनल्टी फ्रांस को मिलती है और एक दफा फिर बाप्पे स्कोर बराबर कर देते हैं। मैच के अंतिम क्षणों में फ्रेंच टीम अटैक पर अटैक कर रही थी। अचानक कोलो मुआनी गेंद को अर्जेंटीना के गोलपोस्ट के ठीक सामने पाते हैं। उनके सामने मात्र अर्जेंटीनी गोलकीपर था। वह तेज शॉट लगाते हैं। मगर एक दफा फिर अर्जेंटीनी गोलकीपर एमिलियानो ‘दीबू’ मार्टीनेज़ ने मैच के अंतिम अटैक को असंभव तरीके से सेव कर लिया था। यह कैसे हुआ कोई नहीं जानता। अगर वह सेव न होता तो आगे की कहानी कुछ और ही होती।
पेनल्टी शूटआउट
अब वो होने जा रहा था जो किसी के लिए भी आसान नहीं होता। फाइनल मुकाबले का फैसला पेनल्टी शूटआउट द्वारा होने जा रहा था। अब सभी की धड़कनें तेज हो गई थीं।
यहाँ मगर एक दफा फिर अर्जेंटीनी गोलकीपर एमिलियानो ‘दीबू’ मार्टीनेज़ ने सेव कर मैच अर्जेंटीना की झोली में डाल दिया। अर्जेंटीना विश्व विजेता हो गया था। रोसारियो की सड़कों का नन्हां लड़का मेस्सी विश्व विजेता हो गया था।
टूर्नामेंट के सबसे बेहतरीन खिलाड़ी आंके गए लियोनेल आंद्रेस मेस्सी आगे आकर अर्जेंटीना के कप्तान के तौर पर विजेता को दी जाने वाली जूल्स रिमे ट्रॉफी को ग्रहण करने मंच पर आते हैं। वह लगातार स्वर्णिम जूल्स रिमे ट्रॉफी को किसी बच्चे की भांति निहारते हैं। उनकी आंखों में एक चमक थी जिसको मुझ मूर्ख के शब्द कभी बयां न कर सकेंगे। उनका चेहरा बता रहा था कि उन्होंने कितनी शिद्दत से इस एक लम्हें के ख्वाब देखे थे। उन्होंने बेहद तन्मयता के संग सर्वप्रथम उस बेश्किमती ट्रॉफी को चूमा।
उन्होंने अंततः वह स्वर्णिम ट्रॉफी अपने हाथों में ले ही ली। वह लगातार जूल्स रिमे ट्रॉफी को यूँ प्रेम से पुचकार रहे थे जैसे कोई नया नवेला पिता अपने नवजात शिशु को बाहों में लेकर प्रेम से खिलाता है।
थियागो, माटियो व सी़रो अपने पिता के गले लग कर उनसे प्रेम का इजहार कर रहे थे। उन्हें नहीं मालूम उनका पिता एक जीता जागता भगवान हो गया था। बुरे से बुरे वक्त में भी मेस्सी के साथ खड़े रहने वाली ऐंटोनेला की खुशी व आंसू बता रही थी यह जीत कितनी बड़ी है। लुसैल स्टेडियम की दर्शक दीर्घा में बैठे तमाम खेल प्रेमी अर्जेंटीना की जीत पर टीम के लिए खुशी के गीत गा रहे थे। यह बेहद अद्भुत था। एक जादुई अहसास, एकदम यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह वाकई घटित हो रहा है।
यह सिर्फ लियोनेल आंद्रेस मेस्सी की जीत नहीं थी। इस जीत के उतने ही बड़े नायक हैं एमिलियानो मार्टीनेज़ जिन्होंने पिछला विश्व कप मात्र एक दर्शक के तौर पर देखते हुए अपने भाई से वायदा किया था कि वह अगले विश्व कप में अर्जेंटीना के गोलपोस्ट की रक्षा करता दिखाई देगा। इस जीत के उतने ही बड़े नायक हैं मैक एलिस्टर जो स्वयं एक ऐसी टीम से खेलते हैं जो कभी कोई लीग खिताब नहीं जीती है।
इस जीत के उतने ही बड़े नायक हैं अल्वारेज़, मोलीना, ऐंजो, अकून्या, लाऊतूरो, कूटी रोमेरो, डिफेंस के अनुभवी नेतृत्त्वकर्ता कर्नल ओटामेंडी, ताग्लियाफीको, मौंटील व तमाम अन्य अर्जेंटीनी खिलाड़ी। इस जीत के उतने ही बड़े नायक हैं कोच लियोनेल स्कालोनी व उनका सपोर्ट स्टाफ! स्कालोनी को जब कोच पद पर नियुक्त किया गया था तो संपूर्ण जग ने उनकी जगहंसाई की थी। मगर वह सदैव शांति से अपना काम करते रहे। उन्हें सदैव अपनी टीम पर यकीन था। आज वो वाकई हमारे नायक हैं।
साथ ही साथ इस जीत के उतने ही बड़े नायक हैं वह तमाम दर्शक जो इतने सालों में, जब मेस्सी किसी वनवास की सी यातना से गुजर रहे थे, मेस्सी के साथ बने रहे। वह तमाम दर्शक जो जर्मनी द्वारा 2014 के फाइनल में मिली हार, कोपा अमेरिका में चिली से लगातार मिली हार के पश्चात भी मेस्सी व अर्जेंटीना के साथ खड़े रहे।
एक बार फिर लातिन अमेरिकी मैजिकल रियेलिज़म जीत गया। उसने सबको अपने आगोश में ले लिया।
ब्यूनस आयर्स से लेकर बॉम्बे तक आज लोग सड़कों पर झूम रहे हैं। कतालून्या से लेकर कोलकाता तक आज लोग आज जश्न मना रहे हैं। यह उन सभी की जीत है। यह जीत है लगातार लक्ष्य की दिशा में बढ़ते हुए मिल रही हारों से न घबराने के जज़्बे की। यह जीत है कभी भी हार न मानने के जज़्बे की।
हम वाकई बेहद खुशनसीब हैं कि हमने पहले क्रिकेट के भगवान, फिर टेनिस के जादूगर और अब फुटबॉल के देवता को जग जीतते हुए देखा।
शुक्रिया नन्हें जादूगर..
शुक्रिया स्कालोनी..
शुक्रिया अर्जेंटीना..
शुक्रिया कतर..
शुक्रिया फुटबॉल!