प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस समय अमेरिका के दौरे पर हैं। संभवत: यही कारण है कि पूरा इकोसिस्टम न केवल भारत बल्कि अमेरिका की छवि को झूठ के सहारे धूमिल करने का हर संभव प्रयास कर रहा है।
NDTV के पूर्व पत्रकार रवीश कुमार (Ravish Kumar) ने इसी तरह का कार्य करने का एक प्रयास किया है। रवीश ने पीएम मोदी की अमेरिकी यात्रा की मीडिया कवरेज को “गोदी मीडिया का गोबर कवरेज” बताया है। उन्होंने अपने यू-ट्यूब चैनल पर एक वीडियो में बताया है कि “अमेरिका चीन से फेंटेनाइल (Fentanyl) नामक एक दवाई की भीख माँग रहा है।”
रवीश कुमार ने क्या झूठ फैलाया?
रवीश कुमार अपने वीडियो में कह रहे हैं कि “इस खबर की चर्चा नहीं हुई है कि अमेरिका के विदेश सचिव दो दिन के लिए चीन में थे। चीन ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग से उन्होंने मुलाकात की है। इसी वॉल स्ट्रीट जर्नल ने प्रधानमंत्री (मोदी) के इंटरव्यू से पहले छापा है कि अमेरिका चाहता है कि चीन के साथ तनाव कुछ कम हो, चीन के साथ सहमति बने, रिश्तों में सुधार हो और उच्चस्तरीय संवाद कायम हो। दोनों देशों के बीच हवाई उड़ानों की संख्या बढ़े और चीन, अमेरिका को फेंटेनाइल नाम की दवा की सप्लाई करता रहे। दवा माँगने गए हैं, चीन से।”
तथ्य क्या है?
अमेरिका बीते कई वर्षों से फेंटेनाइल जैसे खतरनाक ड्रग को खत्म करने का हर संभव प्रयास कर रहा है। एक समय था, जब अमेरिका की सड़कों पर अवैध रूप से फेंटेनाइल का बेतरतीब उपयोग किया जाता था जिससे ड्रग से मरने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा था। हालाँकि, बीते कुछ सालों में फेंटेनाइल का अवैध प्रयोग कुछ हद तक कम हो गया है।
अमेरिका में ड्रग्स को लेकर कितने गंभीर हालात हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2021 में राष्ट्रपति जो बायडेन ने वैश्विक अवैध ड्रग व्यापार में शामिल विदेशी व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाने को लेकर नेशनल इमरजेंसी घोषित की है।
आज रवीश कुमार जिस फेंटेनाइल को दवाई बता रहे हैं और कह रहे हैं कि अमेरिका फेंटेनाइल की अधिक माँग कर रहा है। वह सरासर भ्रामक है।
रवीश कुमार ने अपने बयान के सपोर्ट में जिस आर्टिकल की कटिंग का उपयोग उसे हाईलाइट करते हुए किया है उसमें साफतौर पर देखा जा सकता है कि अमेरिका अधिक फेंटेनाइल की माँग नहीं कर रहा है बल्कि चीन से अमेरिका के बाज़ार में फेंटेनाइल के अवैध प्रवाह को रोकने के लिए कह रहा है।
क्या है फेंटेनाइल?
यूएस सेंटर फॉर डिसीज कण्ट्रोल एण्ड प्रिवेंशन के मुताबिक फेंटनाइल वो केमिकल है, जो दिमाग के एक खास हिस्से पर अपना असर छोड़ता है, और दर्द को मैनेज करने में मदद करता है। मॉर्फिन से लेकर कई ऐसे रसायन हैं, जो गम्भीर दर्द से जूझते मरीजों को या सर्जरी के बाद दर्द कम महसूस हो इसलिए दिए जाते हैं। फेंटेनाइल सिंथेटिक ड्रग है क्योंकि वो लैब में बनाया जाता है। यह मॉर्फिन से 100 गुना अधिक स्ट्रॉन्ग, जबकि हेरोइन जैसे खतरनाक ड्रग से भी 50 गुना ज्यादा तेज होता है।
आसान शब्दों में कहें तो यह एक क़िस्म की ऐसी दवा है जो अचेत करने के लिए इस्तेमाल की जाती है लेकिन इसके साथ ही यह नशे के बाज़ार का भी बहुत बड़ा उत्पाद है। लेकिन रवीश कुमार अपने वीडियो में इसे इस तरह से बताते सुने जा सकते हैं, मानो अमेरिका चीन से इसे दवा के रूप में माँग रहा हो। वो भी इस संदर्भ को ऐसे समय में चुना जाता है जब भारत और अमेरिका अपने व्यापारिक और कूटनीतिक संबंधों के लिए नज़दीक आ रहे हैं और पूरा विश्व उन्हें देख रहा है।
स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के लोगों से मिले PM मोदी
पीएम मोदी अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान अब तक मेडिकल क्षेत्र से जुड़े कई लोगों से मिल चुके हैं। उन्होंने ट्वीट कर इस बात की जानकारी भी दी है।
पीएम नरेन्द्र मोदी ने अमेरिकी दौरे पर स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में काम कर रहे विशेषज्ञों के एक समूह से भी मुलाकात की है। इस दौरान उन्होंने महामारी के मद्देनजर स्वास्थ्य सेवा की तैयारी, स्वास्थ्य समाधान खोजने के लिए तकनीक का उपयोग करने आदि पर विस्तृत चर्चा की है।
पीएम मोदी से मिलने वालों में नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ पीटर आग्रे, डॉ लॉटन रॉबर्ट बर्न्स, डॉ. स्टीफन क्लास्को, डॉ. पीटर होटेज, डॉ. सुनील ए. डेविड और डॉ. विवियन एस. ली शामिल रहे। इस दौरान पीएम मोदी ने स्वास्थ्य सेवा सेक्टर में भारत की संभावनाओं पर भी प्रकाश डाला है।
संभवत: रवीश कुमार इस बात से नाखुश हैं कि पीएम मोदी अमेरिका में स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र से जुड़े लोगों से मिल रहे हैं, भारत की उपलब्धियां बता रहे हैं, भारत के मेडिकल सेक्टर की मजबूती की पैरोकारी कर रहे हैं, इसलिए वे अमेरिका के स्वास्थ्य क्षेत्र को टारगेट करने के लिए फेक न्यूज का सहारा ले रहे हैं।
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