Exodus: मिस्र में यहूदियों की क्रांति और पलायन – विश्व के इतिहास पर नज़र डालने पर पता चलता है कि क्रांतियों को अक्सर गरीब और वंचित लोगों को प्रेरित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। जैसे ये संदेश देना कि अगर तुम लोगों के पास सत्ता होती तो तुम्हारा जीवन ऐसे बदल जाता। जबकि वास्तव में हर क्रांति के लिए एक भयानक क़ीमत चुकानी होती है, ये तूफ़ान से होने वाली तबाही के जैसा होता है जिससे उबरने में कई साल लग जाते हैं।
हम इस श्रृंखला में बात करेंगे मिस्र से लेकर चीन, अमेरिका आदि आदि देशों में अलग अलग समय में हुई क्रांतियों की और उनके साथ के समकालीन घटनाक्रमों पर!
इन क्रांतियों को अगर हम ध्यान से देखें और समझें तो हमें पता चलता है कि इससे तबाही के सिवाय और कुछ भी किसी के हाथ नहीं आता। कुछ क्रांतियों के परिणाम सकारात्मक ज़रूर रहे लेकिन अक्सर ये सिर्फ़ नकारात्मक नतीजों पर ही ख़त्म होते हैं।
आपने अब तक के इतिहास में पढ़ा होगा कि दुनिया में अमेरिका की क्रांति हुई, फ़्रेंच क्रांति हुई लेकिन हम इस श्रृंखला की शुरुआत करते हैं उस क्रांति से जिन्हें कई विशेषज्ञ और इतिहासकार सबसे पहली क्रांति बताते हैं, ये इसलिए सबसे अहम थी क्योंकि इसने एक धर्म को जन्म दिया और वो धर्म था यहूदी यानी Judaism।
इजिप्ट/मिस्र से निर्वासन – एक्सोडस
दुनियाभर में जितनी भी क्रांतियाँ हुई हैं उनका आप एक निश्चित पैटर्न देखेंगे। इसमें एक शक्तिशाली साम्राज्य होगा, वहाँ एक बाग़ी क़िस्म का नेता तैयार होगा, वो लोगों को सपने दिखाएगा कि क्रांति के बाद उनकी ज़िंदगी एकदम पलट जाएगी। कुछ दैवीय ताक़तों का भी इसमें आवश्यक रूप से इन्वॉल्वमेंट रखा जाता है। फिर होती है वो जनता, जिसके ज़रिए इस क्रांति को शक्ल दी जाती है।
ऐसा ही कुछ हुआ जब 1300 ईसा पूर्व मिस्र से यहूदियों ने पलायन किया और नये धर्म का जन्म हुआ। इस घटना को ही एक्सोडस कहा जाता है। यह यहूदियों द्वारा किया गया सबसे बड़ा पलायन था। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस घटना को एक काल्पनिक घटना मानते हैं क्योंकि इसका संबंध बायबिल से बताया जाता है। लेकिन यह एक्सोडस की घटना यहूदियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
मिस्र में गुलाम बनाकर रखे जाते थे हिब्रू
13वीं शताब्दी ईसा पूर्व में मिस्र से यहूदियों के पलायन की घटना हुई थी। ये तब की बात है जब मिस्र के फ़ेरो (फ़राओ) यहूदियों को ग़ुलामों की तरह रखते थे और उन पर अत्याचार करते थे। मिस्र उस वक्त एक शक्तिशाली साम्राज्य हुआ करता था। मूसा ने तब अपने लोगों को एकजुट किया और कहा जाता है कि वहाँ से पलायन कर उन्हें मुक्ति दिलाई। इसके बाद ही वो जाकर इज़रायल में बसे थे।
यहूदियों के ऐतिहासिक पलायन की ये कहानी मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीक़ा की है। जब हज़रत मूसा ने यहूदी कौम की मुक्ति के लिए 600 लोगों के साथ मिस्र को छोड़ा था। यह मिस्र में ग़ुलामी और दासता का दौर था।
मिस्र में रहने वाले हिब्रू कबीले के लोग फ़ेरो के क्रूर शासन से पीड़ित थे। उनके नेता मूसा ने फेरो से कहा कि वे उन्हें कनान में अपने घर लौटने दें, लेकिन फेरो ने ऐसी इजाज़त देने से इनकार कर दिया।
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बायबिल के अनुसार
बायबिल की मानें तो फेरो के इस आचरण के बदले ही यहूदियों के देवता ने मिस्र को 10 क़िस्म की विपत्तियाँ में झोंका, इनमें मिस्र पर अकाल का आना, नील नदी का खून के रंग से लाल हो जाना, मिस्र पर मेंढकों की बारिश, टिड्डियों का हमला, तीन दिन का अंधेरे होने और प्लेग के संक्रमण आदि आदि का ज़िक्र है।
मिस्र में यहूदियों के साथ ग़ुलामों जैसा सलूक किया जाता था। यहूदी कई वर्षों तक मिस्र में रहे थे। इस दौरान मिस्र का शासन उनसे मज़दूरी और श्रम करवाने के लिए उन्हें और मात्रा में वहाँ लाने लगा। मिस्र के पिरामिड से ले कर अन्य निर्माण यहूदियों का ही शोषण कर बनाया गया था। लेकिन जब फेरो ने अपने राज्य में देखा कि वहाँ यहूदियों की संख्या मिस्र के लोगों से ज़्यादा हो गई है तो वो घबराने भी लगा। फेरो ने यहूदियों को गुलाम बनाने का भी आदेश दिया।
इसके बाद क़रीब 400 साल तक यहूदी शोषण और अत्याचार सहन करते रहे। यातनाओं का चरम देखिए कि यहूदी महिलाओं के ख़िलाफ़ फेरो ने फ़रमान तक जारी कर दिया कि उनके बच्चों को पैदा होते ही मार दिया जाए और उन्हें नदी में डुबो दिया जाए।
इसी सब के बीच मूसा ने जन्म लिया। वो एक दासी के बेटे थे। मूसा, जब उन्हें एक सरकंडे की टोकरी में रखकर नदी में बहाया गया तो वो फेरो की पत्नी या उनकी बेटी को मिला और वो उसे अपने साथ महल ले गई। इस तरह से मूसा फ़राओ के महल में ही पला और बढ़ा। बाद में हजरत मूसा को पता चला कि वे तो असल में यहूदी हैं और उनके महल के लोग ही यहूदीयों पर कई सदियों से अत्याचार कर उन्हें गुलाम बनाकर रख रहे हैं तो उन्होंने फेरो के ख़िलाफ़ बग़ावत की घोषणा कर दी और यहूदियों को एकजुट करने लगे।
अगर बायबिल की मानें तो मूसा को उनके परमेश्वर ने यहूदियों की आज़ादी के लिए चुना था। यहाँ पर एक कहानी भी है कि किस तरह से मूसा के आदेश पर लाल सागर दो हिस्सों में बंट गया। ये कहानी बायबिल में भी आपको पढ़ने को मिलती है कि जब मूसा के साथ चल रहे लोगों के बारे में फेरो को पता चला तो उसने अपनी सेना उनके पीछे छोड़ दी। मूसा के साथ के लोग डर गये और तभी मूसा ने अपना हाथ समुद्र की ओर बढ़ाया, समुद्र बड़ी दीवार बनकर दो हिस्सों में बंट गया और यहूदी सागर को क्रॉस कर गए जबकि वो समुद्र की दीवार मिस्र की सेना के ऊपर गिर गई।
ये मज़ेदार क़िस्सा सुनकर आप ये भी सोचिए कि इस घटना को कोई भी मायथॉलॉजी नहीं कहता है, जबकि भारत के जितने भी धर्म ग्रंथ हैं, उन्हें सब काल्पनिक या साहित्य साबित करने का प्रयास करते हैं, इस घटना की तुलना में रामायण का वो क़िस्सा देखिए जब नल और नील मिलकर वानर सेना के साथ लंका के लिए पुल बनाते हैं। उस पुल के होने के प्रमाण तक मौजूद हैं लेकिन फिर भी उसे हम एक मिथ या सिर्फ़ कहानी बताने को मर रहे होते हैं। ये उदाहरण इस कारण भी ध्यान रखा जाना चाहिए क्योंकि आजकल आदिपुरुष फ़िल्म भी विवादों में है। यानी भारत का इतिहास सब काल्पनिक कथाएँ हैं जबकि बायबिल में जो कुछ लिखा गया है वो हमें एडवेंचर लगता है।
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तो वापस लौटते हैं हज़रत मूसा पर और मिस्र से हिब्रुओं के पलायन पर। मूसा ने उस वक्त हिब्रुओं को अपने ईश्वर का हवाला हर बात पर दिया क्योंकि तब लोग दैवीय शक्तियों पर यक़ीन करते थे, वो भगवान के क़हर से डरने वाले लोग थे इसलिए उन्होंने उसकी बातें भी सुनी जिसमें लगभग हर दूसरा संदेश उन्हें यहोवा या ईश्वर के ज़रिए मिलता था।
यही वो हज़रत मूसा थे जिन्होंने यहूदी धर्म को एक नई व्यवस्था और जगह भी दी। सदियों से मिस्र में ग़ुलामी झेल रहे यहूदियों के साथ ही उन्होंने इज़रायल बसाया था। यहूदियों के कुल 12 कबीले थे जिन्हें लेकर यह मान्यता थी कि इन 12 कबीलों में से एक कबीला उनका खो गया था। कुछ लोग ये भी कहते हैं कि वही एक कबीला कश्मीर में आकर बस गया था।
मिस्र की क्रांति के परिणाम
अब मिस्र के इस रेवोलुशन की कुछ अच्छी और बुरी बातों पर गौर करें तो इसमें सिर्फ़ तबाही और नफ़रत ही नहीं मिलती बल्कि उत्पीड़न और ग़ुलामी से लोगों को आज़ादी भी मिलती है। इसके अलावा सदियों से मिस्र में अत्याचार और शोषण के साथ ग़ुलामी में जी रहे हिब्रुओं को एक प्रोमिस्ड लैंड मिलता है जिसे इज़रायल के नाम से जानते हैं। हिब्रुओं को एक नया धर्म भी मिला जिसने उन्हें नया रास्ता भी दिखाया यानी यहूदी धर्म ज्यूइज़्म या जूडाइज़्म।
लेकिन इस पूरे दौर में मिस्र ने भयानक आपदाएँ झेलीं, जैसे मिस्र में प्लेग जैसी महामारी कई वर्षों तक लोगों और जानवरों की जान लेती रही। अगर ये आज के दौर की बात होती तो क्या विश्व के ताकतवर देश इसे बायोलॉजिक हमला नहीं घोषित कर देते? जैसे अमेरिका की नज़र यूक्रेन और रुस के युद्ध पर टिकी हुई है और इसमें रुस को विलेन साबित करने के बस एक मौक़े की तलाश कर रहा है?
वहाँ कई क़िस्म की आपदाएँ भी इस दौरान आईं। इससे पहले जहां मिस्र महान और ताकतवर साम्राज्य के रूप में जाना जाता था, यह होने से ही उसके पतन का दौर भी शुरू हो गया।
मिस्र से यहूदियों के पलायन का सच | दुनिया की पहली क्रांति | Revolutions: Good/Bad?