कर्नाटक विधानसभा के चुनाव के लिए बुधवार 10 मई को वोट डाले जा चुके हैं और कल 13 मई को चुनाव परिणाम सामने आने हैं। इसी बीच उम्मीद के अनुसार ईवीएम (EVM) को लेकर भ्रम पैदा करने का विपक्षी खेल भी शुरू हो चुका है। आश्चर्यजनक रूप से इस बार यह काम चुनाव परिणाम आने से पहले ही किया जा रहा है।
वोटिंग से दो दिन पहले यानी 8 मई को कांग्रेस पार्टी ने आरोप लगाया कि जिन ईवीएम का इस्तेमाल कर्नाटक चुनाव में किया जा रहा है इससे पहले उनका इस्तेमाल दक्षिण अफ्रीका में किया गया था।
अब इस आरोप पर चुनाव आयोग ने अपना जवाब जारी किया है। चुनाव आयोग ने अपने पत्र में लिखा कि ईवीएम दक्षिण अफ्रीका नहीं भेजी गयी थी और वैसे भी दक्षिण अफ्रीका अपने चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल ही नहीं करता है।
ईवीएम एवं कांग्रेस
सोचिये कितना हास्यास्पद है कि स्वयं को देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का तमगा देने वाली कांग्रेस ने देश की सबसे बड़ी संवैधानिक संस्थाओं में से एक चुनाव आयोग पर ऐसा आरोप लगाया और वो भी बिना किसी सामान्य जानकारी के।
कांग्रेस को यह जानकारी होनी चाहिए कि जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा जिला स्तर पर राष्ट्रीय और राज्य मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को ईवीएम और वीवीपैट की सूची की फोटो कॉपी दी जाती है। क्या कांग्रेस को यह भी जानकारी नहीं है कि जब भी दूसरे राज्य, जिला या निर्माताओं से ईवीएम मंगाई जाती है, तो इस पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की जाती है और इसे देखने के लिए राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को बुलाया जाता है
जाहिर सी बात है कि कांग्रेस को ये सभी जानकारियां पता थीं क्योंकि चुनाव आयोग ने कांग्रेस समेत सभी राजनीतिक दलों के जिला स्तरीय प्रतिनिधियों को ईवीएम हासिल करने वाली जगह के बारे में बता दिया गया था।
ऐसे आरोप अक्सर राजनीतिक दलों द्वारा एक दूसरे के खिलाफ लगाए जाते रहे हैं लेकिन यह तब गंभीर हो जाता है जब देश के भविष्य में अहम भूमिका निभाने वाले चुनाव आयोग पर ऐसे आरोप लगाए जाएँ।
खैर कांग्रेस द्वारा ईवीएम के मामले पर यह कोई पहला आरोप नहीं है। वर्ष 2017 से कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दलों को चुनाव हारने पर रोने के लिए ईवीएम की गड़बड़ी वाले आरोप का ही कन्धा मिलता है। हालाँकि चुनाव आयोग समेत सुप्रीम कोर्ट, दोनों ही इस आरोप को सीधे तौर खारिज कर चुके हैं।
ईवीएम तो बहाना है?
तो फिर कांग्रेस की यह कौन सी रणनीति है जिसमें आधारहीन तथ्यों के साथ आरोप लगाने की परम्परा स्थापित की जा रही है। कांग्रेस पार्टी जिस हिटलर के बयान को अपना अघोषित नारा बना चुकी है वह उसके ही करीब प्रतीत हो रहे हैं कि “इतना बड़ा झूठ बोलो कि लोग सोचने लगे कि इतना बड़ा झूठ कोई कैसे बोल सकता है? फिर तो सच ही होगा!”
कांग्रेस इस झूठ को इतनी बार दोहरा चुकी है कि एक समर्थक भी अब सामान्य जीवन की डिबेट में कई बार अपनी पार्टी के बचाव में इसी कुतर्क का इस्तेमाल करता है। इन सभी कुतर्कों के बीच यह सामान्य तर्क कहीं खो जाता है जिसमें हम यह विचार करते हैं कि जिन राज्यों में कांग्रेस चुनाव जीत रही है क्या वहां ईवीएम नहीं है?
या फिर अगर कांग्रेस कर्नाटक में चुनाव जीत गयी तो क्या वे इन आरोपों पर अडिग रहेंगे? कांग्रेस पार्टी ने राजनीति के उस स्तर को हासिल कर दिया है जहाँ उनके लिए हर वो संस्था गलत है जहाँ से उनके पक्ष में परिणाम न आएं। कांग्रेस को इस रणनीति से नुकसान ही हुआ है लेकिन फिर भी वह इसी रास्ते पर चलने के लिए तैयार हैं
क्योंकि शायद उनका लक्ष्य इस मुद्दे पर एक दो चुनाव जीतना नहीं है उनका लक्ष्य दूरगामी है, उनका लक्ष्य है देश के आधारभूत संरचना में ही बदलाव करना। कि चाहे जनता अपना जनादेश जो भी दे, पक्ष में हो या विपक्ष लेकिन देश के स्तंभों पर इस प्रकार हमला करो कि बिना सत्ता के भी देश अपने मुताबिक चलाने लायक बना लिया जाए।
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