दिवाली पर दिल्ली में प्रदूषण कम होता था कि अब इसकी हवा कनाडा तक पहुँच गई है। दरअसल, ‘एनवायरोमेंट कनाडा’ ने विशेष रूप से 24 अक्टूबर की शाम एक स्टेटमेंट जारी कर कहा कि दिवाली के चलते वायु प्रदूषण बढ़ने की संभावना है।
हालाँकि, इस दौरान न जाने आँकड़ों में क्या फेर-बदल हुआ कि उन्होंने अपना वास्तविक बयान वापस लेकर नया स्टेटमेंट जारी किया, जिसमें दिवाली का जिक्र न करते हुए वायु प्रदूषण की बात की। आश्चर्य की बात तो यह है कि एनवायरोमेंट कनाडा ने दिवाली को संदर्भ में लेते हुए ऐसी रिपोर्ट पहली बार जारी की है।
कनाडा की संघीय एजेंसी और ओंटारियो के पर्यावरण मंत्रायल ने इस बारे में एक संयुक्त बयान जारी किया था। बयान के अनुसार, दिवाली पर अपेक्षित आतिशबाजी के चलते सोमवार रात ‘वायु प्रदूषण के उच्च स्तर’ रह सकता है। इस रिपोर्ट के जरिए टोरंटो, ब्रैम्पटन, मिसीसागा, हैमिल्टन और डरहम सहित कुछ शहरों में चेतावनी जारी की गई थी।
दिवाली पर किसी को अस्थमा हो जाता है, कहीं की ‘स्वस्थ’ हवा प्रदूषित हो जाती है। लैंड पॉल्यूशन, एयर पॉल्यूशन, जानवरों को नुकसान और न जाने क्या-क्या होता है।
अब इन सब परेशानियों की जड़ दिवाली ही है या पर्यावरण का मुद्दा इस पर अलग से बात कि जा सकती है, लेकिन फिलहाल बता दें कि कनाडा में विक्टोरिया डे और कनाडा डे, नए साल की शाम पर जमकर आतिशबाजी की जाती है, क्रिसमस का नाम हम नहीं लेंगे क्योंकि किसी सिर्फ त्योहार को केंद्र में रखकर हमारा पर्यावरण खराब नहीं होता है।
वायु प्रदूषण विश्व के लिए एक बड़ा खतरा है। हर वर्ष दुनियाभर में करीब 70 लाख लोग अस्वस्थ वायु के चलते अपनी जान गवाँ देते हैं, जिनमें 6 लाख बच्चे भी शामिल हैं। हालाँकि, यहाँ ये साफ कर दें कि ये आँकड़ा मात्र किसी हिंदू त्योहार के अंतर्गत एकत्रित नहीं किया गया है।
वायु प्रदूषण के मामले में कनाडा की स्थिति अन्य देशों से काफी बेहतर स्तर पर है। विश्व वायु प्रदूषण सूचकांक में यह 95वें नंबर पर आता है। कनाडा हाल ही के दिनों में अपनी व्यवहारिक नीतियों के चलते विस्थापित लोगों की पहली पंसद बन कर उभरा है। यहाँ की आबादी का करीब 1.45 प्रतिशत हिंदू और 1.4 प्रतिशत का सिख प्रतिनिधित्व करते हैं।
हालाँकि, इसी बीच इस तरह ‘वोकवाद’ से ग्रस्त बयान एक बड़े वर्ग की भावनाओं पर सवाल खड़े करते हैं जो कि देश में सामाजिक और उससे ज्यादा आर्थिक मोर्चे पर फायदा पहुँचा रहे हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो से पीएचडी कर रही नताशा गोयल का कहना है कि यह लगता है कि कनाडा में विविधताओं को बढ़ावा देना एक दिखावा है अगर सिर्फ एक त्योहार पर ऐसे पक्षपात भरे बयान सामने आते हैं।
बात सटीक है और सीधी है कि अगर आपको धर्मनिरपेक्ष और विविधताओं से भरा देश बनना है तो आप किसी भी विशेष धर्म के प्रति ऐसा नैरेटिव नहीं चला सकते।
कनाडा में हिंदू अम्ब्रेला संगठन के अध्यक्ष पंडित रूपनाथ शर्मा का कहना है कि पहले ये स्टेटमेंट परेशान करने वाला था लेकिन, इसमें सुधार स्वागत योग्य है। साथ ही, बिना किसी ठोस आँकड़ों के ऐसे बयान जारी करना दुर्भाग्यपूर्ण है।
बहरहाल, दिवाली पर इस तरह के बयान, रिपोर्ट और चिंताएँ हमने पहली बार तो नहीं सुनी है। मानने वाली बात है कि जिस देश में एक रात में करोड़ों रुपए के पटाखे जलाए जाते हैं वहाँ उस रात की वायु की गुणवत्ता में गिरावट आना संभाविक है और ऐसा ही नए वर्ष की रात, शादियों और कई अवसरों पर होता है, भले ही इनकी बात नहीं की जाती हो।
बात सिर्फ कनाडा तक की नहीं है। इसकी शुरुआत तो दिल्ली और देश के कई हिस्सों में बहुत पहले से हो रही है। जहाँ पिछले कुछ वर्षों में तो दिवाली पर देश के कई हिस्सों में पटाखे बैन भी कर दिए जाते हैं, जिनमें दिल्ली रॉल मॉडल बन कर उभरी है। अदालत के द्वारा बयान सामने आते हैं कि पटाखे हिंदू त्योहार का हिस्सा नहीं है। युवाओं के रोल मॉडल हाथ में सिगरेट लेकर कहते हैं कि पटाखे मत चलाओ इससे प्रदूषण फैलता है।
वायु प्रदूषण के मामले में भारत 180 देशों की सूची में निचले पायदान में 5वें स्थान पर आता है। देश में अंधाधुंध प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, बढ़ती आबादी एवं उद्योग और मुख्य रूप से संचार के साधन वायु प्रदूषण का कारण है।
राजधानी में अक्टूबर माह के दौरान वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी देखी जाती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इसका कारण एक दिन पटाखे चलाना नहीं है। दरअसल, अक्टूबर माह उत्तर भारत में मानसून का निर्वतन काल होता है अर्थात हवाओं की दिशा पूर्व से बदलकर उत्तर पश्चिम हो जाती है।
सर्दियों में दिल्ली की हवा का 72 प्रतिशत भाग इन्हीं उत्तर पश्चिमी हवाओं का होता है जो अपने साथ राजस्थान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान की धूल मिट्टी भी साथ लेकर आती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 2017 में सामने आया था जब इराक, सऊदी अरब और कुवैत में आए तूफान से दिल्ली की वायु गुणवत्ता को गंभीर नुकसान पहुँचा था।
आईआईटी कानपुर की एक रिपोर्ट में सामने आया है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण का कारण आतिशबाजी है ही नहीं। इसके अनुसार, राजधानी दिल्ली में पटाखों से नहीं बल्कि बायोमास बर्निंग से प्रदूषण बढ़ रहा है। इस रिपोर्ट के अनुसार, आतिशबाजी का असर सिर्फ 12 घंटे ही रहता है।
वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, जिसका इलाज ट्वीटर पर #Ban_crackers लिखना नहीं है बल्कि असल कारणों के प्रति जागरूकता एवं सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों में सहयोग करना है।
वायु प्रदूषण के लिए सरकार द्वारा ‘ग्रीन गुड डीड्स’ कार्यक्रम चलाया जा रहा है। साथ ही, सार्वजनिक परिवहन नेटवर्क को बढ़ावा, बायोमास जलाने पर प्रतिबंध, पेट्रोल में इथेनॉल की मात्रा बढ़ाना, स्वच्छ गैसीय ईंधन को बढ़ावा देना और वायु गुणवत्ता के लिए निगरानी नेटवर्क की स्थापना की गई है।
प्रदूषण हर रूप में घातक है चाहे यह वायु का हो या जल, भूमि से संबंधित। इनको नियत्रिंत करने के लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक है। मात्र सरकार पर जिम्मेदारी थोपने या दिवाली पर पटाखों पर प्रतिबंध लगाने से न तो ये पहले रुका था न आगे रुकेगा।
इसके लिए तो ‘त्योहारी’ नहीं बल्कि वर्षभर सक्रियता की जरूरत है, जिसके लिए शायद हमारा ‘विकासवादी’ समाज तैयार नहीं है।